मंगलवार, 1 दिसंबर 2009

रोटियाँ उदास हैं ~~

बहुरूपिये खयाल हैं

फेंकते जाल हैं

.

ज़मीर बेच दिया

अब ये मालामाल हैं

.

रोटियाँ उदास हैं

रूठ गये दाल हैं

.

फुसफुसा रहे दरख़्त

गहरी कोई चाल है

.

डूब गये खेत-घर

सूख गये ताल हैं

.

बेअसर हर बात से

बहुत मोटी खाल है

.

इंसान की फितरत

अनसुलझा सवाल है

~~

52 टिप्‍पणियां:

राज भाटिय़ा ने कहा…

ज़मीर बेच दिया

अब ये मालामाल हैं
वर्मा जी बहुत ही सुंदर कविता ओर सच से भरपुर.
धन्यवाद

डॉ टी एस दराल ने कहा…

ज़मीर बेच दिया
अब ये मालामाल हैं .
वाह वर्मा जी, सही व्यंग कसा है।
सामयिक रचना।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

दीवाना आदमी को बनाती है रोटियां
अब चांद पर भी नज़र आती है रोटियां

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

ज़मीर बेच दिया अब ये मालामाल हैं . रोटियाँ उदास हैं रूठ गये दाल हैं .

वाह! बहुत सुंदर और सामयिक रचना....

vandana gupta ने कहा…

इंसान की फितरत अनसुलझा सवाल है
sirf ek shabd-----------umda.

Khushdeep Sehgal ने कहा…

सूरज ज़रा, आ पास आ
आज सपनों की रोटी पकाएंगे हम
ए आसमां तू बड़ा मेहरबां
आज तुझको भी दावत खिलाएंगे हम
सूरज ज़रा, आ पास आ
 
चूल्हा है ठंडा पड़ा
और पेट में आग़ है
गर्मागर्म रोटियां
कितना हसीं ख्वाब है
सूरज ज़रा, आ पास आ
आज सपनों की रोटी पकाएंगे हम...

जय हिंद...

लता 'हया' ने कहा…

shukria'
dil ko sparsh kar gayin ......rotiyan aur sparsh.

Urmi ने कहा…

आपने बहुत ही सुन्दरता से सच्चाई को बयान करते हुए उम्दा रचना लिखा है! बहुत अच्छी लगी आपकी ये शानदार रचना !

Sudhir (सुधीर) ने कहा…

वर्मा जी ,

बड़ा साधा हुआ व्यंग है..मजा आ गया...पूरी की पूरी कविता दिल को भा गयी है...साधू !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत करारा प्रहार है जी!

जिन्दगी का गीत रोटी मे छिपा है।
साज और संगीत, रोटी में छिपा है।।

रोटियों के लिए ही, मजबूर हैं सब,
रोटियों के लिए ही, मजदूर हैं सब।

कीमती सोना व चाँदी, तब तलक,
रोटियाँ संसार में हैं, जब तलक।

खेत और खलिहान सुन्दर, तब तलक,
रोटियाँ उनमें छिपी हों, जब तलक।

झूठ, मक्कारी, फरेबी, रोटियों के रास्ते हैं,
एकता और भाईचारे, रोटियों के वास्ते हैं।

हम सभी यह जानते है, रोटियाँ इस देश में हैं,
रोटियाँ हर वेश में है, रोटियाँ परिवेश में है।

रोटियों को छीनने को , उग्रवेशी छा गये हैं,
रोटियों को बीनने को ही, विदेशी आ गये हैं।

याद मन्दिर की सताती, रोटियाँ जब पेट में हों,
याद मस्जिद बहुत आती, रोटियाँ जग पेट में हों।

राम ही रोटी बना और रोटिया ही राम हैं,
पेट की ये रोटियाँ ही, बोलती श्री-राम हैं।

रोटियों से, थाल सजते, आरती के,
रोटियों से, भाल-उज्जवल भारती के।

रोटियों से बस्तियाँ, आबाद हैं,
रोटियाँ खाकर, सभी आजाद हैं।

प्यार और मनमीत, रोटी में छिपा है।
जिन्दगी का गीत, रोटी मे छिपा है।।

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बेहतरीन और सटीक...


शास्त्री जी ने चार चांद लगा दिये.

मनोज कुमार ने कहा…

रचना जीवन की अभिव्यक्ति है।

वाणी गीत ने कहा…

जमीर बेच कर मालामाल हुए इंसान की फितरत को तो अनसुलझा सवाल होना ही है ....!!

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

बहुत बढ़िया , वर्मा साहब , एक-एक शब्द गहरे दर्द को समेटे हुए है !

अजय कुमार ने कहा…

अच्छा प्रहार

रश्मि प्रभा... ने कहा…

रोटियों की उदासी और दाल का रूठना......
ज़िन्दगी के अनसुलझे ख्याल ही हैं.......वाह !

अनिल कान्त ने कहा…

waah !!

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

bahut sadha hua vyangye...zameer bik jane ke baad kuchh bhi mehetevpoorn kaise reh sakta hai.

shikha varshney ने कहा…

Jameer bech dia ,ab ye malamal hain..



bahut sateek .

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

क्या सशक्त प्रतीक हैं और क्या गहरे भाव! मान गये!

रंजू भाटिया ने कहा…

बहुत सुन्दर भाव लगे इस के बेहतरीन रचना शुक्रिया

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

रोटियाँ उदास हैं
रूठ गए दाल हैं
फूस फुसा रहे दरख्त
गहरी कोई चल है ...

ये मयंक जी जो सारी रोटियाँ पका गए ....कहीं ये उदासी इस वजह से तो नहीं .....?

shama ने कहा…

"zindagee ke ansulajhe khayalat..." zindagee ko kaun samajha..jo zameer bechte hain...malamal bante hain,wo to kabhi nahi..! Behtareen rachna hai!

http://shamasansmaran.blogspot.com

http://kavitasbyshama.blogspot.com

http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

सब कुछ सवाल है,
पर कविता बेमिशाल है,
खूबसूरत संदेश है,
शब्द भी कमाल है,

बहुत बहुत धन्यवाद

शरद कोकास ने कहा…

रोटियों को लेकर अलग अलग बिम्बों मे अनेक कविताये रची गई है लेकिन निर्जीव रोटी के भीतर सम्वेदना महसूस करते हुए उसे यह उदासी का बिम्ब देना बहुत अच्छा लगा ।

सुरभि ने कहा…

इंसान की फितरत
अनसुलझा सवाल है

बहुत खूबसूरत शब्दों में व्यंगय किया गया है. आभार

सदा ने कहा…

हर शब्‍द दिल को छूता हुआ, सत्‍यता के बेहद निकट यह अभिव्‍यक्ति बहुत ही बेहतरीन, आभार ।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

रोटियाँ उदास हैं
रूठ गये दाल हैं
फुसफुसा रहे दरख़्त
गहरी कोई चाल है ....

आपने तो छोटी बहर को भी बाखूबी निभाया है वर्मा जी .... और कमाल के शेर कहे हैं ...... रोजमर्रा के जीवन की सत्य घटनाओं से निकली हुई रचना है ...... बेमिसाल ..........

Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…

वर्मा जी, बहुत खूब.
सत्य!
वाह वाह!!

(शास्त्री जी की रोटी महिमा लुभा गयी)

-Sulabh Jaiswal

Kusum Thakur ने कहा…

बहुत ही अच्छी पंक्तियाँ हैं , धन्यवाद !

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

हाँ हमारी तरह गालियाँ ये कहाँ से पाएंगे
आप चाहें तो उन्हे कुछ सिखला सकते हैं
एक बात की तारीफ तो करनी ही पड़ेगी कि
इतनी गालियाँ देने के बाद भी वे लोग आपस में
लड़ते नहीं हैं।

Dr. kavita 'kiran' (poetess) ने कहा…

छोटी बहर की अच्छी ग़ज़ल

Arshia Ali ने कहा…

जीवन की स्थितियों पर तीखा व्यंग्य किया है आपने।
------------------
सांसद/विधायक की बात की तनख्वाह लेते हैं?
अंधविश्वास से जूझे बिना नारीवाद कैसे सफल होगा ?

Girish Billore Mukul ने कहा…

बेअसर हर बात से बहुत मोटी खाल है . इंसान की फितरत अनसुलझा सवाल है ~~वाह!वाह!वाह!

rashmi ravija ने कहा…

बहुत ही सुन्दर कविता...पर सच यही है...
बेअसर हर बात से
बहुत मोटी खाल है

अमित ने कहा…

बहुत खूब लिखा है !
कहीं कहीं कुछ अखर रहा है जैसे "रूठ गये दाल हैं" ... दाल मेरी समझ के अनुसार स्त्रीलिंग है !
रचना शानदार है!

daanish ने कहा…

डूब गये खेत-घर
सूख गये ताल हैं .

ज़मीर बेच दिया
अब ये मालामाल हैं .

itne km shabdoN meiN
itni gehree aur sachchee baateiN
keh daali haiN...
waah !!

Peeyush Yadav ने कहा…

बहुरूपिये खयाल हैं
फेंकते जाल हैं

डूब गये खेत-घर
सूख गये ताल हैं

बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ हैं, श्रीमन.. धन्यवाद

आपको अपने ब्लॉग पर भी जोड़ रहा हूँ
- पीयूष

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar ने कहा…

रोटियाँ उदास हैं
रूठ गये दाल हैं .
फुसफुसा रहे दरख़्त
गहरी कोई चाल है

बहुत सुन्दर पंक्तियां----खूबसूरत शब्दों में लिखी गयी।
हेमन्त कुमार

रंजना ने कहा…

Atisundar saarthak prabhaavshalee abhivyakti.....

Mugdh kar liya aapki is rachna ne....Waah !!!

रचना दीक्षित ने कहा…

बहुत खूब प्रशंसनीय.

जो बचा हुआ कुछ अनाज है
बनानी उसकी अब शराब है
ठेका उनको मिल गया है
सब उनके ही रिश्तेदार हैं
दाने दाने पर लिखा है
पीने वाले का जो नाम है

नीरज गोस्वामी ने कहा…

ज़मीर बेच दिया
अब ये मालामाल हैं

बहुत ही अच्छी रचना, सच्चाई को लफ्ज़ लफ्ज़ बयां करती हुई...बधाई...
नीरज

संजय भास्‍कर ने कहा…

इंसान की फितरत
अनसुलझा सवाल है

बहुत खूबसूरत शब्दों में व्यंगय किया गया है. आभार

Asha Joglekar ने कहा…

बहुत बढिया व्यंग । और ये तो बहुत ही......बढिया
ज़मीर बेच दिया
अब ये मालामाल हैं ।

प्रवीण शुक्ल (प्रार्थी) ने कहा…

bhut hi behtreen yek vyangatmak rachna aaj ke samaaj par aur uske ansuljhe pahlu par meri badhaayi swikaar kare
saadar
praveen pathik
9971969084

महेन्द्र मिश्र ने कहा…

बहुत सटीक रचना सर आभार

Prem ने कहा…

ek sach bayan karti ,manko chu lete hain yeh bhav ,shubhkamnayen

شہروز ने कहा…

क्या अंदाज़ है साहब! बहुत खूब!लिखते रहिये, कहते रहिये

शरद कोकास ने कहा…

क्म शब्दो मे गहरी बात।

Pushpendra Singh "Pushp" ने कहा…

बहुत ही अच्छी रचना
बहुत-२ आभार

समय चक्र ने कहा…

बहुत ख़ूबसूरत रचना अभिव्यक्ति . बधाई

समय चक्र ने कहा…

बहुत ख़ूबसूरत रचना अभिव्यक्ति . बधाई