Saturday, October 24, 2009
मुझे गोली मार दो ~~
~~
तुम मुझे गोली मार दो
क्योकि मै जिन्दा ही कहाँ हूँ
और फिर
मरा हुआ फिर से तो नही मर सकता
मैं तो तभी मर गया था
जब तुमने मेरे हक की रोटी पर
पहली बार कब्जा किया था
और --
और मैनें प्रतिकार की जगह
परोस दी थी --
तुम्हारे सामने अपनी अस्मिता भी;
जब अपने वजूद की नींव पर
मैं तुम्हारी अट्टालिकाएँ बना रहा था
और खटकने लगी थी तुम्हें
मेरी झोपड़ी इसके बगल में;
मैं तब भी मरा था
जब तुमने
सूरज की रोशनी की आपूर्ति
मुझ जैसों के लिये
प्रतिबन्धित कर दी थी
और तुम्हारा कहा मानकर
सूरज तुम्हारे लिये ही रोशनी बिखेरने लगा था;
तुम समेटते रहे
मेरे अस्तित्व की तमाम संभावनाओं को
और मुझे मोम से ढक दिया था
अपलक देखते रहने को;
इससे पहले कि
हवाएँ भी तुम्हारे झाँसे में आकर
आक्सीजन की आपूर्ति बन्द कर दें
तुम मुझे गोली मार दो !
~~~
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कविता
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49 comments:
यह ताकत का खेल वर्तमान का सच है। आज गरीबी नहीं गरीब को समाप्त किया जा रहा है। बधाई अच्छी रचना के लिए।
विशद भाव को समेटे हुये रचना ........ आज की सच को आइना दिखा रही है ......सादर
ओम आर्य
अच्छा लिखा है, विषय स्पष्ट है
http://dunalee.blogspot.com/
बढिया!!
सच है, जिसने अस्मिता बेच दी, वो तो मरा हो ही गया!!
सच्चाई से रूबरू करती मार्मिक रचना. मरा हुआ फिर क्या मरेगा. बहुत गहरे भाव की रचना
बहुत बढिया लिखा .. आजकल ताकतवालों की ऐसी जीत .. जंगलराज दिखाई देता है !!
bahut hi achhi rachna.....shabd-shabd dahak rahe hain
verma ji,
bahut hi sundar bhav. badhai to aapke ke liye banti hi hai vo bhi dil se.
मैं तो तभी मर गया था
जब तुमने मेरे हक की रोटी पर
पहली बार कब्जा किया था
bahut hi samvedanpoorn panktiyan hain.....
bahut hi bhaavpoorn shabdon ke saath likhi gayi ek sunder kavita....
तुम मुझे गोली मार दो
क्योकि मै जिन्दा ही कहाँ हूँ
और फिर
मरा हुआ फिर से तो नही मर सकता
वाह.....!
प्रजातन्त्र की प्रजा का
इससे बढ़िया चित्रण और क्या होगा!
सर्वप्रथम सबका आभार प्रेरणा प्रदान करने के लिये.
प्रेम जी ने मार्गदर्शन किया विशेष आभार.
"तुम मुझे गोली मार दो
क्योकि मै जिन्दा ही कहाँ हूँ
और फिर
मरा हुआ फिर से तो नही मर सकता"
बहुत ही रचना है ।
मैं तो तभी मर गया था
जब तुमने मेरे हक की रोटी पर
पहली बार कब्जा किया था
काश यह कविता मन्मोहन की सरकार मै बेठे नेता पढते जिन्होने गरीबो की रोटी छिन ली है.... या फ़िर वो नेता पढते जो स्विस बेंको मै अपने सात पुश्तो के लिये धन जमा करते है गरीबो के मुंह से कोर छीन कर
धन्यवाद
बहुत सुन्दर, मार्मिक कविता
जिन्होंने रोटी छीन ली वो शायद ऐसे कहेंगे: यह तो बहुत चालू मुर्दा है, देखो तो, मरा हुआ है फिर भी हमारा एक कारतूस खर्च कराने पर तुला है।
इसे कहते हैं शब्दों की जादूगरी..बहुत ही बढ़िया!!!
VARMA SAHAB AAPKI BAAT AUR JAJBAAT KA TARIKA BAHUT HI KHUB HAIN
बुंदेलखंड में घास की रोटियां खाने से बेहतर यही है एक बार गोली
खा ली जाए...
जय हिंद...
dhanyavaad
ye goli...rooh tak pahunchti hai.
आज के जंगलराज पर दृष्टि दाल रही है
यह कविता ...
पर कुछ नकारात्मक सन्देश भी दे रही है...!!
अपना हक संगदिल ज़माने से छीन पाओ तो कोई बात बने ...हमारा तो आदर्श वाक्य यही है ..!!
ये जीना भी कोई जीना है ।
दर्दनाक
हाँ आज भी यही है हमारे समाज का सच
सफल अभिव्यक्ति
बहत ही खूबसूरत दर्द है आपकी पंक्तियों में
न हन्यते हन्यमाने शरीरे!
har sadharan nagrik(comman man) ka dard likh diya aapne...
lajawab..
Jai Hind
मरे हुए को मारें
दीवाने तो हैं
पर इतने दीवाने भी नहीं ...
वैसे पहले से मरा हुआ
बार बार मरता जाए
और मारने वाले को बुलाता जाए
मारने वाला खुद ही न मर जाएगा
खुदा न सही
यमराज का काम आसां हो जाएगा।
yah vartmaan ka sach hai ....... log gandhi ji ke marg par chalte chalte ahinsa ke gun gaate gaate kab napunsak ho gaye pata hi nahi chala ........... virodh bagavat sab gayab ho gaye
aur dusre log uska faayda uthate chale gaye .....
बधाई अच्छी रचना ...
असीम गहराई समेटे सुन्दर रचना…
सत्य को आईना दिखा दिया………………………तारीफ़ के लिये शब्द कम पड रहे है।
apki sabhi rachnaye bahut achchi hai . uaha gaur
गहरे जज्बात हैं वर्मा जी .......... सच में मजबूर इंसान तो उस वक़्त ही मर जाता है जब उसकी मजबूरी का सौदा हो जाता है ........ बहूत ही गहरी संवेदना है आपकी रचना में ......
" tarif ke liye alfaz nahi ...bahut hi umda , behtarin "
----- eksacchai{ aawaz }
http://eksacchai.blogspot.com
सुन्दर भाव को समेटे हुए एक सार्थक रचना.. बधाई!
बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
मै तो तभी मर गया था
जब तुमने मेरे हक़ की रोटी पर कब्जा किया था !
बेहतरीन शब्द !
man ko chu jaataa hai aaj ki yeh dard bharee sachai sunder rachna.
very good poem, emotional and deep.
तुम मुझे गोली मार दो
क्योकि मै जिन्दा ही कहाँ हूँ
और फिर
मरा हुआ फिर से तो नही मर सकता
बहुत सही
जिन्दा इन्सानो मे वो गरूरत नहीम
तू जी कर भी है मरा हुया
मौत ढूढने की जरूरत नहीं
बहुत सही और सटीक अभिव्यक्ति है आज की व्यवस्था पर बधाई
बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने !
इतने क्रांतिकारी विचार सुनकर स्तब्ध हूं।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को प्रगति पथ पर ले जाएं।
इससे पहले कि
हवाएँ भी तुम्हारे झाँसे में आकर
आक्सीजन की आपूर्ति बन्द कर दें
तुम मुझे गोली मार दो !
अच्छी लगी ये पंक्तियाँ !
shukriya !
इससे पहले कि
हवाएँ भी तुम्हारे झाँसे में आकर
आक्सीजन की आपूर्ति बन्द कर दें
तुम मुझे गोली मार दो !
yatharth ko bayan karti rachna
मैं तो तभी मर गया था
जब तुमने मेरे हक की रोटी पर
पहली बार कब्जा किया था
और --
और मैनें प्रतिकार की जगह
परोस दी थी --
तुम्हारे सामने अपनी अस्मिता भी;
Masterstroke !!
Flawless !!
Dost bahut accha likha hai aapne . Aur ye baat aao bhi jaante hain...
...nahi to jaan lijiye !!
Aur kahi prakashit karwaien isko !!
ग़रीबी अभिशाप है .अमीरी क्या है , यह आपने कविता में बता ही दिया है .यह वक्त की हक़ीकत है . पर वह सुंदर समय भी आयेगा जब सब बराबर होंगे .
बहुत सुंदर और मार्मिक भी ।
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