Tuesday, October 13, 2009

सलवटों की चाहत में ~~


~~
अक्सर मैं
जिन्दगी के आपाधापी के बीच
बिस्तर पर करवट बदलना भी
भूल जाता हूँ
मेरे बदले
हर सुबह बिस्तर खुद
सलवटों की चाहत में
करवट बदल लेता है.

किताबें बाट जोहती हैं
मेरा
कि शायद मैं उसके पन्ने पलटूंगा
थक हार कर अकस्मात
वे खुद ही
अपने पन्ने पलट लेते हैं


बहुत दिनों तक जब
कोई कुंडी खड़काने नहीं आता
किवाड़ बन्द रहने से उकताकर
हवाओं के हाथों से
खुद ही
कुंडियाँ खड़का देती हैं

अक्सर मैं
रोटियों के पीछे भागते-भागते
रोटियाँ खाना भी
भूल जाता हूँ
और इंतजार करता हूँ कि
शायद रोटियाँ तुम्हारे हाथों के सहारे
मेरे मुँह तक ----
~~

34 comments:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

मेरे बदले
हर सुबह बिस्तर खुद
सल्वातो की चाहत में
करवट बदल लेता है !

क्या बात है, बहुत सुन्दर भाव !

महेन्द्र मिश्र said...

अक्सर मैं
रोटियों के पीछे भागते-भागते
रोटियाँ खाना भी
भूल जाता हूँ
और इंतजार करता हूँ कि
शायद रोटियाँ तुम्हारे हाथों के सहारे
मेरे मुँह तक

बहुत सटीक रचना ,,,, आभार

vandana gupta said...

bahut hi khoobsoorat jazbaton se bharpoor kavita.

रश्मि प्रभा... said...

bistar khud salwaton ki chahat liye karwaten leta hai,....bahut bhaw bhari kalpana

Yogesh Verma Swapn said...

अक्सर मैं
रोटियों के पीछे भागते-भागते
रोटियाँ खाना भी
भूल जाता हूँ
और इंतजार करता हूँ कि
शायद रोटियाँ तुम्हारे हाथों के सहारे
मेरे मुँह तक .............

ek khoobsurat abhivyakti.

अमित said...

पहला खंड बहुत ही खूबसूरत ,ताजा और बढिया है !बाकी इसी का भाव विस्तार तो कर रहे हैं पर पहले वाली बात नहीं है !
पूरी कविता एक नएपन के साथ है !बहुत बधाई !

Mishra Pankaj said...

बहुत दिनों तक जब
कोई कुंडी खड़काने नहीं आता
किवाड़ बन्द रहने से उकताकर
हवाओं के हाथों से
खुद ही
कुंडियाँ खड़का देती हैं

सुन्दर!!!

Udan Tashtari said...

ओह!! बहुत गहरे..वाह! सुन्दर रचना.

Anonymous said...

हर सुबह बिस्तर खुद
सलवटों की चाहत में
करवट बदल लेता है.
अत्यंत भावपूर्ण रचना. उहापोह की जिन्दगी और समयाभाव की त्रासदी ----

Khushdeep Sehgal said...

अक्सर मैं रोटियों के पीछे भागते-भागते
रोटियां खाना भी भूल जाता हूं...

यही आज हम सबके जीवन का सबसे बड़ा सच बन गया है

दीवाली आपके और पूरे परिवार के लिेए मंगलमय हो...
जय हिंद...

Sudhir (सुधीर) said...

बहुत दिनों तक जब
कोई कुंडी खड़काने नहीं आता
किवाड़ बन्द रहने से उकताकर
हवाओं के हाथों से
खुद ही
कुंडियाँ खड़का देती हैं


वाह वर्मा जी, आधुनिक जीवन का रेखाचित्र और आज की बेवजह मसरूफियत से जूझता मनुष्य...अच्च्छे बिम्ब उतारे हैं आपने साधू!!

निर्मला कपिला said...

हर सुबह बिस्तर खुद
सलवटों की चाहत में
करवट बदल लेता है.
अत्यंत भावपूर्ण रचना.
अक्सर मैं
रोटियों के पीछे भागते-भागते
रोटियाँ खाना भी
भूल जाता हूँ
और इंतजार करता हूँ कि
शायद रोटियाँ तुम्हारे हाथों के सहारे
मेरे मुँह तक बहुत ही भावमाय कविता है जीवन की कशमकश ऐसी ही होती है आभार्

Science Bloggers Association said...

बहुत गहरे भाव हैं। यथार्थ परक कविताओं को इतने सुंदर ढंग से अभिव्यक्ति प्रदान करना मुश्किल होता है।
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rashmi ravija said...

बड़े गहरे भाव हैं ,कविता के.....कमोबेश सबो की कहानी है...अक्सर मैं
रोटियों के पीछे भागते-भागते
रोटियाँ खाना भी
भूल जाता हूँ
एक नज़र इधर भी डालें..एक ज्वलंत विषय पे कुछ लिखा है...

http://mankapakhi.blogspot.com/

अजय कुमार said...

sundar bhaav, achchhi lagi

shikha varshney said...

वाह बहुत ही गहरी बात कह दी आपने..बहुत खूब

रंजू भाटिया said...

बहुत दिनों तक जब
कोई कुंडी खड़काने नहीं आता
किवाड़ बन्द रहने से उकताकर
हवाओं के हाथों से
खुद ही
कुंडियाँ खड़का देती हैं

बहुत सुन्दर लगी आपकी यह रचना

दिगम्बर नासवा said...

अक्सर मैं
रोटियों के पीछे भागते-भागते
रोटियाँ खाना भी
भूल जाता हूँ .......

KAMAAL KI BAAT HAI ... AKSAR INSAAN ROJMARRA KE JEEVAN MEIN ITNA PIS JAATA HAI KI JEEVAN KE SUNAHRE PALON KO BHOOLNE LAGTA HAI ... ROTI CHEE BHI TO AISI HAI JO SAB KUCH KARVA DETI HAI .... KAMAAL KI RACHNA HAI ...

Puja Upadhyay said...

बहुत ही खूबसूरत है तनहाइयों का ये चित्र...बेहद प्यारा

स्वप्न मञ्जूषा said...

अक्सर मैं
रोटियों के पीछे भागते-भागते
रोटियाँ खाना भी
भूल जाता हूँ
और इंतजार करता हूँ कि
शायद रोटियाँ तुम्हारे हाथों के सहारे
मेरे मुँह तक ----
kitna bada sach...
ye to roj ka masla hai..
bahut khoob..
sahi aur sateek..

Mumukshh Ki Rachanain said...

मेरे बदले
हर सुबह बिस्तर खुद
सल्वातो की चाहत में
करवट बदल लेता है !

गहन भावों को प्रतिबिंबित करती बढ़िया कविता.

हार्दिक बधाई

दीपावली के इस मंगलमय पवन पर्व पर आपको मेरी हार्दिक शुभकामनाएं.

चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com

Arshia Ali said...

जिंदगी की करवटों को आपने बहुत सलीके से सहेज दिया है।
धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

अक्सर मैं
रोटियों के पीछे भागते-भागते
रोटियाँ खाना भी
भूल जाता हूँ
और इंतजार करता हूँ कि
शायद रोटियाँ तुम्हारे हाथों के सहारे
मेरे मुँह तक ----
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वर्मा जी!
आपका नवगीत बहुत सुन्दर है।
धनतेरस, दीपावली और भइया-दूज पर आपको ढेरों शुभकामनाएँ!

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

अक्सर मैं
रोटियों के पीछे भागते-भागते
रोटियाँ खाना भी
भूल जाता हूँ
और इंतजार करता हूँ कि
शायद रोटियाँ तुम्हारे हाथों के सहारे
मेरे मुँह तक ----

in panktiyon ne dil chhoo liya........

bahut gahre bhaav ke saaath ek achchi rachna.....

राज भाटिय़ा said...

बहुत ही सुंदर रचना, हर लाईन अपने आप मे एक हीरा है जी. धन्यवाद
आप को ओर आप के परिवार को दिपावली की शुभकामनाये

Ambarish said...

मेरे बदले
हर सुबह बिस्तर खुद
सलवटों की चाहत में
करवट बदल लेता है.
se lekar
अक्सर मैं
रोटियों के पीछे भागते-भागते
रोटियाँ खाना भी
भूल जाता हूँ
और इंतजार करता हूँ कि
शायद रोटियाँ तुम्हारे हाथों के सहारे
मेरे मुँह तक ----
tak sab kuch ati sundar.. bejod prastuti...

gazalkbahane said...

हर सुबह बिस्तर खुद
सलवटों की चाहत में
करवट बदल लेता है---
बहुत खूब कल्पना है बधाई

दीपों सा जगमग जिन्दगी रहे
सुख की बयार चहुं मुखी बहे
श्याम सखा श्याम

राकेश जैन said...

behtareen hai apka andaz.

सदा said...

हर सुबह बिस्तर खुद
सलवटों की चाहत में
करवट बदल लेता है.

बहुत ही भावमय प्रस्‍तुति बधाई के साथ दीपावली की शुभकामनाएं ।

वन्दना अवस्थी दुबे said...

सुन्दर रचना.
दीपावली की बहुत-बहुत शुभकामनायें

संजय भास्‍कर said...

अक्सर मैं
रोटियों के पीछे भागते-भागते
रोटियाँ खाना भी
भूल जाता हूँ
सभी को दिवाली की शुभ कामनाएं ........


SANJAY KUMAR
HARYANA
http://sanjaybhaskar.blogspot.com

Urmi said...

बहुत ही सुंदर रचना लिखा है आपने ! आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें !

Gyan Dutt Pandey said...

अब कई दिनों से कुछ पढ़ न रहा था। आज आपकी यह पोस्ट सामने है और टिप्पणी करवा रही है।
कुछ ऐसा ही होता है। पोस्ट बुलवा लेती है!

मनोज भारती said...

अति व्यस्त जीवन के न्यस्त स्वार्थों ने हमसे क्या छीना है, इसका यथार्थ चित्रण हुआ है आपके जज़्बातों में ।

बधाई स्वीकार करें ।