Sunday, October 11, 2009

वह मगर भीगा नहीं ~~

~~
बारिश हुई
कभी मूसलाधार तो
कभी रूक-रूक कर
सब कुछ भींग गया
वजूद का ओर-छोर भी;
नयन के कोर भी
टूट गये तटबन्धी विश्वास;
बह चला एहसास
कुछ खोया; कुछ पाया
एक जलजला सा आया
अपने आगोश में ले लिया
सख्त से सख्त को
समूल डुबो दिया
समस्त को; दरख्त को


जिसको भिगोने/डुबोने के लिये
यह सारी कवायद हुई थी

वह मगर भीगा नहीं
क्योंकि वह कुछ ऊँचाई पर था.
~~

28 comments:

दिगम्बर नासवा said...

gahri baat kahi hai rachna ke maadhyam se ........ aapki har rachna kuch na kuch samaajik chetna ka ehsaas karaati hai ... sundar likha hai ...

आमीन said...

wo bhi doob jayega sir,

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

जिसको भिगोने/डुबोने के लिये
यह सारी कवायद हुई थी
वह मगर भीगा नहीं
क्योंकि वह कुछ ऊँचाई पर था.

wah ! bahut hi gahri baat kahi hai aapne.......

Renu goel said...

बहुत अपनी सी लगी कविता ....जैसे मेरे ही दिल की बात कहती हो

vandana gupta said...

bahut hi gahri baat kahi......bahut sundar.

Dr. Shreesh K. Pathak said...

'शानदार कहने दीजिये मुझे, बिना किसी लाग-लपेट के,,,,वाकई...'...बधाई....

समयचक्र said...

बेहतरीन रचना कम शब्दों में . .. बधाई .

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

जिसको भिगोने/डुबोने के लिये
यह सारी कवायद हुई थी
वह मगर भीगा नहीं
क्योंकि वह कुछ ऊँचाई पर था.

बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति है।
बधाई!

Yogesh Verma Swapn said...

जिसको भिगोने/डुबोने के लिये
यह सारी कवायद हुई थी
वह मगर भीगा नहीं
क्योंकि वह कुछ ऊँचाई पर था.

wah verma ji bahut sunder abhivyakti. badhai.

Gyan Dutt Pandey said...

जिसे भीगना नहीं होता वह ऊंचाई पर हो या सागर की गहराई में - भीगता नहीं!
नलिनीदलगतजलमतितरलम!

रश्मि प्रभा... said...

jo dharti par hota hai,wah bheeg jata hai,jo uncha hai......gahri baat hai

Razia said...

वह मगर भीगा नहीं
क्योंकि वह कुछ ऊँचाई पर था.
यही तो त्रासदी है.
बेहतरीन अभिव्यक्ति और सुन्दर भाव

वाणी गीत said...

जिसको भिगोने को सारी कवायद हुयी ...वह भीगा नहीं ...क्योंकि बहुत ऊँचाई पर था ...कई बार बारिश में पोर पोर भीगने के बाद मन जो सूखा रह जाता है अलगनी पर लटका सा ....
बहुत गहरी बात कह दी आपने ..!!

Kusum Thakur said...

बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति .

Unknown said...

साधु साधु.........
बारिश
भीगना
डूबना
और ऊंचाई जैसे सरल प्रतीक ले कर अत्यन्त गूढ़ बात कह दी आपने........

वाह वाह .......आनन्द आगया.........

इस काव्य के लिए आपको विशेष बधाई !

निर्मला कपिला said...

वर्मा जी बहुत गहरी और भावमय कविता है बहुत बहुत बधाई

अजय कुमार said...

wo nahi bheega lekin baki sab bheeg gaye

नीरज गोस्वामी said...

अद्भुत कविता है आपकी...अति सुन्दर...वाह
नीरज

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

सब कुछ भीग गया
वजूद का और-छोर भी
नयन के कोर भी...
बहुत ही मार्मिक भावः वर्मा साहब !

योगेन्द्र मौदगिल said...

वाह............. साधुवाद..

ज्योति सिंह said...

जिसको भिगोने/डुबोने के लिये
यह सारी कवायद हुई थी
वह मगर भीगा नहीं
क्योंकि वह कुछ ऊँचाई पर था.
bahut gaharai liye ye rachana mujhe bahut achchhi lagi .

डॉ टी एस दराल said...

वाह, लाज़वाब.
साहित्यक गहराई नज़र आ रही है.

Mumukshh Ki Rachanain said...

सब कुछ भीग गया
वजूद का ओर-छोर भी
नयन के कोर भी
टूट गए तटबन्धी विश्वास
बह चला अहसास


जिसको भिगोने/डुबोने के लिये
यह सारी कवायद हुई थी
वह मगर भीगा नहीं
क्योंकि वह कुछ ऊँचाई पर था.

बहुत खूब, गहरी बात. आज तक सरकारी कृपा वास्तविक हकदारों तक शायद पहुँच ही नहीं ओई और सारी कवायद अब तक विफल रही...............

चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com

Urmi said...

वाह वाह बहुत खूब! अत्यन्त सुंदर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! बधाई!

मनोज भारती said...

जिसको भिगोने/डुबोने के लिये
यह सारी कवायद हुई थी
वह मगर भीगा नहीं
क्योंकि वह कुछ ऊँचाई पर था.

बाहर की कोई कवायद
उसे भीगो नहीं सकती
और
उसकी ऊँचाई
हमेशा कुछ ऊँची ही रहेगी
चाहे कितनी भी
ऊँचाई चढ़ लो

Prem Farukhabadi said...

अति सुन्दर भाई . बधाई!!

सदा said...

जिसको भिगोने/डुबोने के लिये
यह सारी कवायद हुई थी
वह मगर भीगा नहीं
क्योंकि वह कुछ ऊँचाई पर था.

बहुत ही सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति ।

रवि कुमार, रावतभाटा said...

एक उम्दा रचना...
जो चेताती है कि भावुक कवायदों की परिणति यही होती है...

शुक्रिया...