Wednesday, August 5, 2009

तुम अरहर की दाल हो गये ---



* * *
दुर्लभ काले घोड़े की नाल हो गये
तुम अब तो अरहर की दाल हो गये

.
पहुँच हमारी नुक्कड़ की दुकान तक
तुम मँहगे और ऊँचे मॉल हो गये

.
हर सख्श की रंगत काली-पीली है
जाने क्या खाकर तुम लाल हो गये

.
गूदड़ में कट जाती है सर्दी अपनी
तुम तो पश्मीना की शाल हो गये

.
भला क्यूँ आस लगाये अब तुमसे
तुम जब अनुत्तरित सवाल हो गये

* * *

42 comments:

Anonymous said...

waah badhiya likha

Rachna

आमीन said...

tum arhar ki daal ho gaye
jitna jyada pani dala,
utne malamaal ho gaye...

garib ki thali me surakh kar kitne mote gaal go gaye
tum arhar ki daal ho gaye....

wah-wah!

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

और पता नहीं कितने जमाखोर
रातो-रात माला माल हो गए !

अरहर महादेव !

Unknown said...

MAZA AAGYA SAHEB !
KAMAAL KI KAVITA
GAZAB KA BHAV

संजीव गौतम said...

भाई वाह पहले शेर में ही आनन्द आ गया. तुम अरहर की दाल हो गये. वाह-वाह. यश मालवीय जी के गीत की याद हो आयी-
झुर्री-झुर्री गाल हो गये.
जैसे बीता साल हो गये.
भरी तिज़ोरी सरपंचों की,
तुम कैसे कंगाल हो गये.

tension point said...

बहुत अच्छा बधाई

ओम आर्य said...

bahut hi map toul ke rakhate hai .....aapani rachana ke ek ek panktiyo ko .......bahut hi sundar rachana

M VERMA said...
This comment has been removed by the author.
M VERMA said...

धन्यवाद आप सभी को

Razia said...

दुर्लभ काले घोड़े की नाल हो गये
तुम अब तो अरहर की दाल हो गये
बहुत सुन्दर सामयिक रचना
क्या बात है
मज़ा आ गया

समय चक्र said...

सुन्दर सामयिक रचना बहुत सुन्दर ...

Meenu Khare said...

मज़ा आ गया, बहुत अच्छा बधाई.

Udan Tashtari said...

दुर्लभ काले घोड़े की नाल हो गये
तुम अब तो अरहर की दाल हो गये


-वाह!! क्या बात है-उम्दा!!

Satyendra PS said...

बहुत जोरदार। इसे कहते हैं समसामयिक कविता।

निर्मला कपिला said...

वाह लजवाब तुलना सामयिक रचना राखी की शुभकामनायें आभार्

दिनेशराय द्विवेदी said...

बहुत सुंदर!

रक्षाबंधन पर हार्दिक शुभकामनाएँ!
विश्व-भ्रातृत्व विजयी हो!

Anil Pusadkar said...

वाह!क्या बात है।शानदार्।

Yogesh Verma Swapn said...

wah verma ji, jawaab nahin is rachna ka, badhaai.

shilpa said...

its was so beautifully written

सदा said...

दुर्लभ काले घोड़े की नाल हो गये
तुम अब तो अरहर की दाल हो गये

बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति बधाई ।

रंजू भाटिया said...

अरहर की दाल भी कभी इतनी ख़ास हो जायेगी सोचा न था :) बहुत खूब लगी यह पंक्तियाँ

रंजन said...

मजा आ गया...

azdak said...

नीमन बोले हैं. थोड़ा दिन बाद वइसे मूंगो पे गाना लिखे के पड़ेगा.

अनूप शुक्ल said...

जय हो। अरहर की दाल हो गये हो/एक ठो बवाल हो गये हो।

अजय कुमार झा said...

kya khoob likha aapne,
padhte padhte ham nihaal ho gaye..

shama said...

कटु व्यंग ,लेकिन कितना सत्य ! अहमदाबाद में लोगों ने मॉल बंद करवा दिए ..कि ,उन्हें मालिक समक्ष चाहिए ..! खैर ..ये तो विषयांतर हो गया ..बड़ी संजीदगी के साथ आपने अपनी बात कही है..

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Chandan Kumar Jha said...

बहुत ही उम्दा रचना. लाजवाब. आभार.

अर्चना तिवारी said...

waah bahut khoob तुम अब तो अरहर की दाल हो गये..

alka mishra said...

हे अरहर की दाल ,तुम्हारे जलवे भी आजकल समझ में नहीं आते .गीत, गजल ,कविता ,साहित्य की हर विधा में पायी जाती हो और हम बेवकूफ तुम्हें थाली में ही ढूँढे जा रहे हैं .......

Asha Joglekar said...

pahali bar aayee aapke blog par wakaee tabiyat khush ho gayee.. kamal gajalen likhate hain.

हर सख्श की रंगत काली-पीली है
जाने क्या खाकर तुम लाल हो गये
sahee hai.

Prem Farukhabadi said...

भला क्यूँ आस लगाये अब तुमसे
तुम जब अनुत्तरित सवाल हो गये

bahut kuchh kah diya apne . badhai!!!!!

Urmi said...

बहुत सुंदर और लाजवाब रचना! मुझे तो कविता का नाम बेहद पसंद आया! मज़ा आ गया आपकी इस कविता को पड़कर!

Ram Shiv Murti Yadav said...

Aji kya khub likha hai apne...tum arhar ki dal ho gaye..Interesting !!

ज्योति सिंह said...

दुर्लभ काले घोड़े की नाल हो गये
तुम अब तो अरहर की दाल हो गये
.
पहुँच हमारी नुक्कड़ की दुकान तक
तुम मँहगे और ऊँचे मॉल हो गये
.
हर सख्श की रंगत काली-पीली है
जाने क्या खाकर तुम लाल हो गये
.
गूदड़ में कट जाती है सर्दी अपनी
तुम तो पश्मीना की शाल हो गये
.
भला क्यूँ आस लगाये अब तुमसे
तुम जब अनुत्तरित सवाल हो गयेwaah kya rachana hai .saath hi arhar ke bhav ne ijjat bhi badha diya .jo ab tak bhojan ka swad badhate rahe .wo ab kavita me bhi swad badhate nazar aane lage . mahangai me inki jagah yahi banne wali hai .

प्रवीण शुक्ल (प्रार्थी) said...

वाह वर्मा जी भुत खूब क्या तुलना की है ,आप ने ,,,
बहुत ही सुन्दर और सामयिक रचना कही न ,
कही आईना दिखाती हुई ,,,,
मेरा प्रणाम स्वीकार करे
सादर
प्रवीण पथिक
९९७१९६९०८४

दिनेश शर्मा said...

वाह!क्या बात है,बहुत सुन्दर।

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

bahut hi sundar rachna..mazaa gaya padh ke......

संदीप said...

waah saheb bahut hi khoobsurat rachana,badhai! swikare

waise bhi NAREGA se roti mil jaye yahi bahut hai.......

Aparna said...

ऐसी कविता क्यू लिखी आपने..
कुछ देर को ही सही कई कवि बेख्याल हो गये...

rgds
अपर्णा

Dipti said...

बहुत ही सटीक और बेहतरीन

Arshia Ali said...

Ise kahte hain saamyik Ghazal.
{ Treasurer-S, T }

निर्झर'नीर said...

wahhhhhhhhhhhhhhhhhh kya baat hai..

kya andaj-e-bayaN or kya shabdo ka chunaav

khoobtar haqiqat se ru-b-ru
vuyangatmak ..rachna ke liye bandhai