जाने कितनी लहरों का ज़ुल्म सहा होगा
कुशल तैराक था यूं ही नहीं बहा होगा
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गहराई ही नहीं रही होगी ईमारत की नींव की
भरभराकर वजूद इसका यूं ही नहीं ढहा होगा
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ताज्जुब क्यू फितरत के खिलाफ बयांबाजी से
निगहबानी में यकीनन कोई असलहा होंगा
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उड़ता तो है पर फिर लौट आता है परिंदा
घोंसले में शायद उसका बच्चा सो रहा होगा
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कितना दर्द नज़र आता है उसके चेहरे पर
कोई ज़ज्बा उसके दिल में अनकहा होगा
4 comments:
shandaar abhivyakti.......sundar rachna.
वन्दना जी
सुन्दर प्रतिक्रिया के लिये धन्यवाद्
vermaji, sarahniya rachna ke liye badhai sweekaren.
पहले तो आपका बहोत बहोत शुक्रिया..
आप मेरे लफ्जों तक आये उन्हें पढ़ा,
सराहा और मेरा हौसला बढाया ...
आपकी इस रचना की पहली चार पंक्तियाँ बहुत दिलकश और पुरमानी रही
आपको पढना ख़ुशी की बात है..
neerakela@gmail.com
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