Sunday, May 24, 2009

तालों की मुस्तैदी ....


लहूलुहान मनसूबे हो गए, घायल हुई उमंग

जीवन यू हिचकोले लेता जैसे कटी पतंग


मुस्कानों में छिपा रहे ये ज़हरीले दांतों को

आस्तीनों में रहने वाले शातिर बड़े भुजंग


बच के आए दोराहे से चौराहे ने पकड़ लिया

गली-कुचे भी मुसकाकर करने लगे हैं तंग


बहुत भरोसा मत करना इन पहरेदारों पर

बतियाते दिख जायेंगे शातिर चोरों के संग

.

लूटने वाले वाकिफ़ हैं तालों की मुस्तैदी से

हर घर से जोड़ दिया है जाने कितनी सुरंग


पल में तोला, पल में माशा, फेकेंगे ये पासा

पल-पल कैसे बदल रहे हैं गिरगिट जैसे रंग


सौगातों के पीछे देखो खंज़र छुपा हुआ है

शान्ति संदेशों पर मत जाना, छेड़ेंगे ये जंग

7 comments:

शारदा अरोरा said...

बहुत अच्छी रचना , एक सुझाव है अगर आप ठीक समझें तो कर लें ,' घायल हुआ उमंग ' को 'घायल हुई उमँग 'कर लें और इस पंक्ति ' हर घर से जोड़ दिया है जाने कितनी सुरंग 'को 'घर घर से जोड़े बैठे हैं जाने कैसे सुरंग ' कर लें , मैंने अपनी राय दी है , कृपया अन्यथा न लें |

M Verma said...

धन्यवाद बहुमूल्य सुझाव के लिये

Yogesh Verma Swapn said...

verma ji main aapka fan ban gaya hun , aur zyada kya kahun, badhai sweekaren.

वीनस केसरी said...

मान्यवर आपने बहुत ही अच्छी कह की गजल कही है

मगर इतनी अच्छी गजल पढने में लय की कमी खल रही है क्योकी गजल बहर में नहीं है
गजल व बहर के विषय में कोई भी जानकारी चाहिए हो तो सुबीर जी के ब्लॉग पर जाइये
www.subeerin.blogspot.com
इसे पाने के लिए आप इस पते पर क्लिक कर सकते हैं।


आपका वीनस केसरी

योगेन्द्र मौदगिल said...

abhyas evm nirantarta jaari rakhe....

Sajal Ehsaas said...

harek pankti me kamaal ki naveenta nazar aa rahee hai...bahut achha lagaa....

Girish Kumar Billore said...

अति सुन्दर
बधाइयां
जारी रहे
सादर