थपकियाँ दे-देकर हमको ये सुलाए हैं
ज्वालामुखी पर शहर फिर रख आए हैं
इनके मुँह पर लगा खून कह रहा है
दोपाये के वेश में छुपे ये चौपाए हैं
क़त्ल करके अट्टहास लगा रहे थे जो
मातमपुर्सी में आज वे नज़र आए हैं
ये तो ढूढने गए थे अपने अज़ीज़ो को
गुमशुदा इश्तहारों में ख़ुद ही को पाए हैं
बिके हुए लोगों को देखिये तो ज़रा
सेहरे में आज अपना चेहरा छुपाए हैं
ज्वालामुखी पर शहर फिर रख आए हैं
इनके मुँह पर लगा खून कह रहा है
दोपाये के वेश में छुपे ये चौपाए हैं
क़त्ल करके अट्टहास लगा रहे थे जो
मातमपुर्सी में आज वे नज़र आए हैं
ये तो ढूढने गए थे अपने अज़ीज़ो को
गुमशुदा इश्तहारों में ख़ुद ही को पाए हैं
बिके हुए लोगों को देखिये तो ज़रा
सेहरे में आज अपना चेहरा छुपाए हैं
5 comments:
bahut sunder verma ji,
prashansniya rachna ke liye badhai sweekaren.
स्वप्न जी
आपकी प्रतिक्रियाए प्रेरणादायी है
बहुत जबरदस्त...कल्पनाशीलता की दाद कबूलें.
इनके मुँह पर लगा खून कह रहा है
दोपाये के वेश में छुपे ये चौपाए हैं
shi kha hai
उर्वरक प्रतिक्रियाओ के लिए धन्यवाद्
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