लिखने के लिए
ज़रूरी
नहीं है कलम;
अनछुआ-सा कोई स्पर्श भी
काग़ज़
रहित दिलों पर
लिख
जाता है
एक
अति नाज़ुक
नज़्म.
भाषा परिभाषित करे
भी कैसे
एहसासो के अनुवाद को
अनुच्चरित शब्द भी कैसे
गढ लेते हैं संवाद को
सुनने के लिए ज़रूरी नहीं है
कानों की मौजूदगी;
कभी-कभी सन्नाटा भी
वह कह जाता है जो
शोर की भीड़ में अकसर
अनसुना रह गया.
देखने के लिए ज़रूरी नहीं है –
आँखों का खुला होना;
उन्होंने
बस हल्के से
पलकें
झपकाई—
और
उस एक क्षण में
लूट
ली
पूरी
महफ़िल, पूरी बज़्म.
और फिर इसी के साथ
बिना कागज़-कलम
पूरी हो गई नज़्म.

5 टिप्पणियां:
अत्यंत रूहानी
जी शुक्रिया
Wah!
Thanks 😊
एहसास में भीगी अति हृदयस्पर्शी रचना सर।
सादर।
-----
नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शनिवार २० दिसम्बर २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
एक टिप्पणी भेजें