गुरुवार, 25 दिसंबर 2025

अंधेरा और बढ़ेगा—

अंधेरा
अभी और गहराएगा।

अंधेरे के लिए
आदमकद अंधेरा—
दीपक को ही दोषी ठहराएगा।

ढकेल दिए जाओगे—
गहरी सुरंग में।
थाम लो अपना हाथ,
खुद को रक्खो खुद के साथ।

तुम्हारी हर गतिविधि पर—
नज़र गड़ाए तैनात हैं हादसे।
माहौल बनाया जाएगा,
माहौल बिगाड़ने के लिए।
आतुरता टहल रही है—
बस्तियाँ उजाड़ने के लिए।

खुली हवा का सपना
हवा में ही रह जाएगा।
न्याय की संभावनाएँ
भरभरा कर ढह जाएँगी।
पाबंदियाँ मार्च-पास्ट करेंगी।

हवा में उठी हर मुट्ठी को
कैद करने की तैयारी है।
आज नहीं तो कल—
तुम्हारी भी बारी है।
तुम्हारा भविष्य लिखेंगे
बलात्कारी, व्यभिचारी।

अंधेरा और बढ़ेगा—
यह सच है,
पर याद रखना—
किरण को
बहुमत की ज़रूरत नहीं होती।

2 टिप्‍पणियां:

Razia Kazmi ने कहा…

बहुत अच्छा विचार है

M VERMA ने कहा…

Thanks 😊