कभी सोचा है तुमने—
कितने आईने खड़े हो जाते हैं
एक-दूसरे के आमने-सामने,
जब तुम
खुद को निहारती हो?
कभी
देखा है तुमने
आईने को शरमाते हुए—
जब तुम हल्के से
एक आँख दबाती हो,
और प्रतिबिम्ब
धीरे-धीरे मुस्कुरा उठता है?
कौन
खींचेगा यह रेखा—
कि तुम आईना देखती हो
या आईना
तुम्हें देख रहा होता है?
सच
तो यह है कि
आईना हर रोज़
तुम्हारा इंतज़ार करता है—
तुम्हारी आँखों के आईने में
खुद को देखने के लिए।
और
क्या देखा है तुमने
आईने को बिखरते हुए—
ठीक उसी क्षण,
जब तुम
मुड़कर चली जाती हो।
@ रूमानियत भी जरूरी है.

2 टिप्पणियां:
Wah!
Thanks 😊
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