बुधवार, 7 अगस्त 2019

सूरज से टकराया



आतुर सुलझाने को
उलझा धागा
वह जागा
उठकर भागा,
सूरज से टकराया
चकराया, गश खाया
जीवन को दे डाला
जीवन का वास्ता
रास्ते पर वह
या उसके अंदर रास्ता?
दो पल के सुकून के लाले
खोले उसने सात ताले,
तिलिस्मी मंजर
मकडी के जाले,
गुंजायमान अट्टहास
कृत्रिम अनुबंध,
रिश्तो की अस्थिया
लोहबानी गंध,
खुद ही से मिलने पर
सख्त प्रतिबंध

सुलझाया कम
ज्यादा उलझाया
सांझ ढले
लहुलुहान वह
फिर वही लौट आया.


चित्र साभार : Google

10 टिप्‍पणियां:

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 8.8.19 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3421 में दिया जाएगा

धन्यवाद

दिलबागसिंह विर्क

Sweta sinha ने कहा…

जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ९ अगस्त २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

Rohitas Ghorela ने कहा…

कश्मकश भरी जिंदगी की पटरी को बेहतरीन शब्दो मे पिरोया है।

मन की वीणा ने कहा…

जीवन की अजीब सी आपा धापी समझ से बाहर और पहिये सी वैसे ही घूमती ।

Prakash Sah ने कहा…

"...
रास्ते पर वह
या उसके अंदर रास्ता?"

बहुत ही बेहतरीन ढंग से रचना में शब्दों को पिरोया है

Jaishree Verma ने कहा…

जीवन के उलझाव का सटीक चित्रण

कविता रावत ने कहा…

उहापोह भरी जिंदगी की उलझनों को बड़े ही सरल भाव पढ़ना अच्छा लगा

priya singh ने कहा…

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बेनामी ने कहा…

Sweet blog! I found it while browsing on Yahoo News.

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संध्या शर्मा ने कहा…

रास्ते पर वह, या उसके अंदर रास्ता
चक्रव्यूह से कम नहीं ये जीवन... बहुत सुंदर रचना