वैयाकरण’ की साजिश
तुमने कहा --रूको, मत जाओमैनें समझा --रूको मत, जाओऔर मैंचुपचाप चला आया था -- उस दिनबिना किसी शोरबिना किसी तूफानकितना भयानकज़लज़ला आया था -- उस दिनकाश !तुमने देखा होताचट्टान का खिसकनाकाश !तुमने भी देखा होतावह मंजरजब एक मकानढहा था अधबनाऔरउड़ने को आतुर एक कबूतरदब गया थाशायद यह --‘वैयाकरण’ की साजिश थी
Waah sir
ReplyDeleteधन्यवाद
ReplyDeleteसुन्दर कविता
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteओह्ह्ह.. वाहह्हह... हृदयस्पर्शी रचना।
ReplyDeleteबिंब तो क़माल का है... 👌👌
शुक्रिया
Deleteवाह क्या खूब कहा...
ReplyDeleteशुक्रिया
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