हालात पर
नज़र रखने का
वायदा था
समुंदर की सतह
पर
इस देश को
रखकर
हम नज़र रक्खे
हैं कि नहीं?
कीमतें कम
करने पर
सवाल आखिर
क्यूँ?
डालर की तुलना
में
रूपये का कीमत
हम कम रक्खे
हैं कि नहीं?
किये वायदे से
हम
मुकर तो नहीं
रहे हैं
उन्हीं वायदों
को फिर से
घोषणापत्रों
में
हम रक्खे हैं
कि नहीं?
स्वयम्भू हैं
हम
हमसे तुम डरना
और ज्यादा
सवाल मत करना
वरना क्या पता
हम
रात आठ बजे
टीवी पर आकर
कह दें ठहाका लगाकर
“ये जो तुम्हारे बगल में
तुम्हारी
पत्नी बैठी है
आज रात बारह
बजे के बाद ........”
तुम्हीं बताओ
तुम्हारी सोच
में
हम बम रक्खे
हैं कि नहीं?
तुम्हें बेशक
रूला दिया
पर
अपनी आँखों को
भी
हम नम रक्खें
हैं कि नहीं?
समुंदर की सतह
पर
इस देश को
रखकर
हम नज़र रक्खे हैं कि
नहीं?
बहुत ही ज़ोरदार व शानदार समसामयिक रचना!👌
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (29-04-2019) को "झूठा है तेरा वादा! वादा तेरा वादा" (चर्चा अंक-3320) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद
Deleteगज़ब ... कड़ा प्रहार और सामयिक व्यंग है आज के हालात पर ...
ReplyDeleteकई तीखे सवालों के जवाब ऐसे ही दे दिए जाते हैं ...
जी धन्यवाद
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