धुप्प अँधेरे में
खुद को तलाशने की कोशिश में
स्वयं के एहसासों के अवशेषों से
कई बार टकराया
निःशब्द स्व-श्वासों की आहट से
कई बार चकराया
दिग्भ्रमित करने के लिए
तैनात हो गए
मेरे ही खंडित सपने
आक्रोशित से खड़े मिले
तथाकथित मेरे अज़ीज़, मेरे अपने
सबने मेरी गुमशुदगी का इल्जाम
मुझ पर ही लगाया
मकड़ी के उलझे जालों के बीच से;
अवगुंठित अनगिन सवालों के बीच से,
खुद का हाथ पकड़कर
खुद के करीब लाया
खुद को फिर भी प्रतिपल
खुद से और दूर पाया
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ReplyDeleteआपकी लिखी रचना आज ," पाँच लिंकों का आनंद में " बुधवार 20 मार्च 2019 को साझा की गई है..
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in/
पर आप भी आइएगा..धन्यवाद।
जीवन की कशमकश कहाँ दूर होती है ...
ReplyDeleteअभी लगता है हम करीब हैं दुसरे पर मुद्दतों दूर हो जाते हैं ...
मन के भावों की गहरी अभिव्यक्ति ...
तथाकथित मेरे अज़ीज़, मेरे अपने
ReplyDeleteसबने मेरी गुमशुदगी का इल्जाम
मुझ पर ही लगाया
बड़ी गहरी जज्बात ,बहुत खूब ,होली की हार्दिक शुभकामनाये
गहन एवं गूढ रचना...बहुत सुन्दर..।
ReplyDeleteमन के भावों की गहरी अभिव्यक्ति .
ReplyDeleteकभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
शब्दों की मुस्कुराहट
http://sanjaybhaskar.blogspot.com