शुक्रवार, 6 जनवरी 2012

मैं इन्हें छुपा लूंगा….


आईने के सामने बैठ
खुद को पहचानने की कोशिश में
रूबरू हो गए
मेरे समस्त अन्तर्निहित
और अनाहूत किरदार.
मेरे वजूद की धज्जियाँ उड़ाते
कुछ थे रंगदार;
तो कुछ स्वयम्भू सरदार,
कोई धारदार हथियारों से लैस था;
तो किसी की निगाहों में
बेवजह तैस था,
कुछ न जाने क्या गा रहे थे;
तो कुछ लगातार खा रहे थे,
कुछ अनाचारी;
तो कुछ थे व्यभिचारी,
यही नहीं इन्हीं के बीच
अट्टहास लगाता फिर रहा था
एक किरदार बलात्कारी.
.
आईने
झूठ नहीं बोलते हैं,
पर मैं इन्हें छुपा लूंगा
मुस्कराते हुए;
खुशनुमा मुखौटों के बीच
इससे पहले कि
ये किसी और को नज़र आयें.
.
जी हाँ ! मैं इन्हें छुपा लूंगा.

39 टिप्‍पणियां:

Sunil Kumar ने कहा…

kya bat hai aaine ka sahi rup prastut kiya hai badhai

रंजू भाटिया ने कहा…

बहुत सही ..बेहतरीन

सदा ने कहा…

आईने

झूठ नहीं बोलते हैं,

पर मैं इन्हें छुपा लूंगा

मुस्कराते हुए;

खुशनुमा मुखौटों के बीच

इससे पहले कि

ये किसी और को नज़र आयें.
भावमय करते शब्‍द ।

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

badhiya rachnas.

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

बहुत सुन्दर, अफ़सोस कि इन दुराचारियों को आप वहां जाने से नहीं रोक सकते, दो सभाएं है एक से नहीं घुसे तो दूसरी से घुस जायेंगे !

Unknown ने कहा…

बहुत सुन्दर

Sumit Madan ने कहा…

nice :)

रश्मि प्रभा... ने कहा…

behtareen abhivyakti

Gyan Darpan ने कहा…

उम्दा और बेहतरीन

Gyan Darpan
..

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

आईने से क्या क्या छिपाया जाये भला..

डॉ टी एस दराल ने कहा…

इन्सान के भी कई भयानक चेहरे होते हैं ।
लेकिन लोग आईना देखते ही कहाँ हैं ।

बहुत सुन्दर रचना के लिए बधाई वर्मा जी ।

अनुपमा पाठक ने कहा…

सुन्दर!

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

behtarin rachana hai...

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

behtarin rachana hai...

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

behatarin abhivykti...

Amit Chandra ने कहा…

सही कहा आपने. आईने झूठ नही बोलते है.

बेहतरीन भावमयी प्रस्तुति.

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

आईने
झूठ नहीं बोलते हैं,
पर मैं इन्हें छुपा लूंगा

लाजवाब रचना...
सादर.

Kailash Sharma ने कहा…

लाज़वाब! बहुत सुन्दर प्रस्तुति..

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आईने के सामने खुद का विश्लेषण यूँ भी होता है .. गहन अभिव्यक्ति

Mamta Bajpai ने कहा…

man ko chhu gayi aap kii racna
badhai

Prakash Jain ने कहा…

behtareen....

www.poeticprakash.com

mridula pradhan ने कहा…

bhawpoorn......

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत शशक्त ... लाजवाब ... सोचने को मजबूर करती है रचना ...

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

sach kaha vo in sab kirdaron ko chhupa lega aur ek bar fir janta ko ullu bana lega....yahi to uska maksad hai.

sangita ने कहा…

"मैं इन्हें छुपा लूँगा" बेहतरीन पंक्तियाँ हैं | और यही तो हमारे देश का दुर्भाग्य है कि सब जानते हुए भी कुछ कर नहीं पा रहें हैं हम |

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

सुंदर प्रस्तुति,
पोस्ट में आने के लिए आभार,...इसी तरह स्नेह बनाए रखे,...धन्यबाद

vidya ने कहा…

बेहतरीन...
बहुत गहरी अभिव्यक्ति
सादर.

विभूति" ने कहा…

मन के भावो को शब्द दे दिए आपने......

Urmi ने कहा…

बेहद ख़ूबसूरत एवं उम्दा रचना ! बधाई !

संजय भास्‍कर ने कहा…

एक भाव पूर्ण रचना....सुन्दर प्रस्तुति!

रवि कुमार, रावतभाटा ने कहा…

आईना झूठ नहीं बोलता...
अंदर झांकने को प्रेरित व्यंग्य...

vikram7 ने कहा…

आईने

झूठ नहीं बोलते हैं,

पर मैं इन्हें छुपा लूंगा

मुस्कराते हुए;

खुशनुमा मुखौटों के बीच

इससे पहले कि

ये किसी और को नज़र आयें.
बेहतरीन पंक्तियाँ.


vikram7: हाय, टिप्पणी व्यथा बन गई ....

Unknown ने कहा…

बेहद ही गहन भाव युक्त शसक्त रचना

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति..

Manav Mehta 'मन' ने कहा…

वाह बहुत खूब ...

Dimple Maheshwari ने कहा…

छिपाना भी क्या इतना आसान हो पायेगा??

vikram7 ने कहा…

गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.
vikram7: कैसा,यह गणतंत्र हमारा.........

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

सुंदर अभिव्यक्ति अच्छी रचना,..

NEW POST --26 जनवरी आया है....

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

is hunar me to aaj sabhi ek se badh kar ek hain.

sunder sateek vyangy.