रविवार, 18 अक्टूबर 2009

कठुवाए हुए एहसास ~~

~~
चलो कठुवाए हुए एहसासों को भिगोते है
अंतस के जमीन पर एक दरख़्त बोते है

ज़रा उनसे पूछिए जिन्दगी का फलसफा
कान्धे पर जो खुद ही का ज़िस्म ढोते है

खरीदने-बेचने से परे है ये लोग फिर भी
देखिए किस तरह ये घोड़े बेचकर सोते हैं

सात पुश्तों की ख़बर लेने निकले हैं आप
इन्हें ये भी पता नहीं, ये किनके पोते हैं

दर्द का एहसास तो रोटियों में खो गया है
हँसी के मुखौटो के पीछे छुपकर ये रोते है
~~

37 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

कमाल के शेर हैं सब वर्मा जी .........
और इस शेर में आपने जीवन का फलसफा उडेल दिया है .........

ज़रा उनसे पूछिए जिन्दगी का फलसफा
कान्धे पर जो खुद ही का ज़िस्म ढोते है .....

vikram7 ने कहा…

दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें

आमीन ने कहा…

बेहतरीन... सुभान अल्लाह

बेनामी ने कहा…

खरीदने-बेचने से परे है ये लोग फिर भी
देखिए किस तरह ये घोड़े बेचकर सोते हैं
यथार्थपरक रचना. सभी शेर शानदार

मनोज भारती ने कहा…

कठुवाए हुए अहसास में आपने जिंदगी के फलसफे को जन्म देने की कोशिश की है;

वस्तुत: आज भी बहुतायत लोगों के लिए जिंदगी बहुत दूर है :
ज़रा उनसे पूछिए जिन्दगी का फलसफा
कान्धे पर जो खुद ही का ज़िस्म ढोते है

दर्द का एहसास तो रोटियों में खो गया है
हँसी के मुखौटो के पीछे छुपकर ये रोते है
~~

बहुत खूब शायरी !!! यथार्थ की जमीन पर ।

Prem Farukhabadi ने कहा…

Verma ji,
roti boti ke baad aapne punah nishab kar diya. tippani karte anandanubhuti ho rahi hai.
dil se badhai!!

राज भाटिय़ा ने कहा…

सात पुश्तों की ख़बर लेने निकले हैं आप
इन्हें ये भी पता नहीं, ये किनके पोते हैं

दर्द का एहसास तो रोटियों में खो गया है
हँसी के मुखौटो के पीछे छुपकर ये रोते है
बहुत सुंदर शॆर लिखे आप ने धन्यवाद

विवेक ने कहा…

खरीदने-बेचने से परे हैं ये लोग फिर भी
देखिए किस तरह ये घोड़े बेचकर सोते हैं

यह शे'र तो बहुत ही खूबसूरत है। इसके अर्थ बहुत गहरे उतरते हैं...

vandana gupta ने कहा…

चलो कठुवाए हुए एहसासों को भिगोते है
अंतस के जमीन पर एक दरख़्त बोते है

ज़रा उनसे पूछिए जिन्दगी का फलसफा
कान्धे पर जो खुद ही का ज़िस्म ढोते है

ek se badhkar ek sher..........aur yatharthparak.........shandaar.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सही कहा है जी।
सुन्दर पोस्ट है।

जिन्दगी का गीत रोटी में छिपा है।
प्यार और मनमीत रोटी में छिपा है।।

पोस्ट के साथ-साथ गोवर्धन-पूजा
और भइया-दूज की शुभकामनाएँ!

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

सात पुश्तों की ख़बर लेने निकले हैं आप
इन्हें ये भी पता नहीं, ये किनके पोते हैं....

wah! is pankti ne man moh liya.......


bahut hi oomda she'er hai sab.....

dil ko chhoo gayi ............

समय चक्र ने कहा…

भाई बहुत सुन्दर रचना .... बधाई. दीपावली की हार्दिक शुभकामना के साथ ....

Udan Tashtari ने कहा…

एक से एक उम्दा शेर उठाये हैं, वाह!

Girish Billore Mukul ने कहा…

चलो कठुवाए हुए एहसासों को भिगोते है
अंतस के जमीन पर एक दरख़्त बोते है
nice

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

बड़े ही विचारणीय बात संजोए है आपने इस रचना में..पढ़ कर बहुत अच्छा लगा..बधाई!!

Urmi ने कहा…

वाह वाह क्या बात है! उम्दा शेर लिखा है आपने! सब एक से बढ़कर एक है!
आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें!

शरद कोकास ने कहा…

अच्छे शेर कहे आपने ।

Khushdeep Sehgal ने कहा…

ज़रा उनसे पूछिए ज़िंदगी का फ़लसफ़ा
कांधे पर जो खुद का ही जिस्म ढोते हैं...

मैं किसे कहूं मेरे साथ चल
यहां हर सर पर सलीब है...
कोई दोस्त है न रकीब है
तेरा शहर कितना अज़ीब है...

जय हिंद...

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

खरीदने-बेचने से परे है ये लोग फिर भी
देखिए किस तरह ये घोड़े बेचकर सोते हैं !!

बहुत सुन्दर वर्मा साहब !

निर्मला कपिला ने कहा…

बहुत बडिया भाईदूज की शुभकामनायें

यादों का इंद्रजाल... ने कहा…

ज़रा उनसे पूछिए जिन्दगी का फलसफा
कान्धे पर जो खुद ही का ज़िस्म ढोते है..

सार्थक शेर कहें है आपने.

- सुलभ सतरंगी

Poonam Misra ने कहा…

पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ.बहुत सुन्दर जज्बात और शेर .बधाई !

शोभना चौरे ने कहा…

bhaut sarthk sher
abhar

अमिताभ श्रीवास्तव ने कहा…

waah, varmaji..bahut khoob likha he// kamaal he aapake she'ro me/
ज़रा उनसे पूछिए जिन्दगी का फलसफा
कान्धे पर जो खुद ही का ज़िस्म ढोते है

-aour yah to bahut khoob likhaa he ki-
सात पुश्तों की ख़बर लेने निकले हैं आप
इन्हें ये भी पता नहीं, ये किनके पोते हैं

waah

सदा ने कहा…

ज़रा उनसे पूछिए जिन्दगी का फलसफा
कान्धे पर जो खुद ही का ज़िस्म ढोते है

बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

डॉ टी एस दराल ने कहा…

करीब से देखी जिंदगी का अहसास शब्दों में पिरो दिया. बहुत सुन्दर.

रवि कुमार, रावतभाटा ने कहा…

खरीदने-बेचने से परे हैं ये लोग फिर भी
देखिए किस तरह ये घोड़े बेचकर सोते हैं

दर्द का एहसास तो रोटियों में खो गया है
हँसी के मुखौटो के पीछे छुपकर ये रोते है

इन अश्आर ने जान ले ली...
एक बेहतरीन ग़ज़ल...

श्याम जुनेजा ने कहा…

हिंदी में एक नायब ग़ज़ल

nagarjuna ने कहा…

Behrateen shilp jode hain aapne.Marhabaa...daad deta hoon janaab...

दीपक 'मशाल' ने कहा…

bahut hi sundar sher hain tareef ke pare,
pahli baar aapke blog par aaya lekin lagta hai aapka lekhan aur ek jaisi ruchiyan bar bar yahan aane pe vivash karengi.

Dr. Chandra Kumar Jain ने कहा…

सचमुच अंतस की ज़मीन पर
संवेदना के बीज डाल दिए आपने.
सुन्दर....गहरी अभिव्यति.
आपको दीपावली की मंगल कामनाएँ.
==============================
डॉ.चन्द्रकुमार जैन

Arshia Ali ने कहा…

कठुवाए हुए एहसास, बडा सुंदर बिम्ब चुना है आपने। बधाई।
( Treasurer-S. T. )

shikha varshney ने कहा…

सात पुश्तों की ख़बर लेने निकले हैं आप
इन्हें ये भी पता नहीं, ये किनके पोते हैं
wah wah bahut khoob kaha hai .

shama ने कहा…

Waah ! Kya khayal hai! "Antas kee zameen par ....."!

Janam din kee badhayee ke liye bahut shukr guzaar hun!

http://shamasansmaran.blogspot.com

htpp://aajtakyahantak-thyalonelypath.blogspot.com

http://baagwaanee-thelightbyalonelypath.blogspot.com

Asha Joglekar ने कहा…

बहुत खूब ।

Shruti ने कहा…

ज़रा उनसे पूछिए जिन्दगी का फलसफा
कान्धे पर जो खुद ही का ज़िस्म ढोते है

zindagi ki sachhayi bahut hi khoobsurat shabdo mein bayaan ki hai

-Sheena

बेनामी ने कहा…

सुन्दर रचना

इस टिप्पणी के माध्यम से, सहर्ष यह सूचना दी जा रही है कि आपके ब्लॉग को प्रिंट मीडिया में स्थान दिया गया है।

अधिक जानकारी के लिए आप इस लिंक पर जा सकते हैं।

बधाई।

बी एस पाबला