आज वह मर गया;
ऐसा नहीं कि
पहली बार मरा है
अपने जन्म से
मृत्यु तक
होता रहा तार-तार;
और मरता रहा
हर दिन कई-कई बार,
उसके लिए
रचे जाते रहे चक्रव्यूह,
और फिर
यह जानते हुए भी कि
वह दक्ष नहीं है
- चक्रव्यूह भेदनकला में,
उसे ही कर्तव्यबोध कराया गया;
और उतारा गया
बारम्बार समर में,
हर बार उसके मृत्यु पर
विधिवत निर्वहन हुआ
शोक की परम्परा का भी,
और फिर आंसुओं का सैलाब देख
वह पुन: पुनश्च,
उठ खड़ा होता रहा.
.
पर आज जबकि
वह फाइनली मर गया है,
रचा गया है
फिर एक नया चक्रव्यूह
उस जैसे किसी और के लिए.
27 comments:
गहन भावाभिव्यक्ति के लिए बधाई बहुत अच्छी प्रस्तुति.
जीवन के कुरूक्षेत्र में परिवार के किसी न किसी सदस्य को तो बार-बार मरने का बीड़ा उठाना ही पड़ता है। कविता हमे आईना दिखाती है कि पहचान लो अपना चेहरा और तय कर लो अपनी भूमिका ! आखिर कौन हो तुम ?
न जाने कितने चक्रव्यूह हैं जो ऐसे ही मौत देते हैं ... गहन अभिव्यक्ति
यहाँ हर पग पर जयद्रथ खड़े हैं, अभिमन्यु पर घात लगाने के लिये।
ये अभिमन्यु का प्रारब्ध
चक्रव्यूह मे फंसा स्तब्ध
लौट लौट फिर आना है
उसको लड़ते जाना है....
अच्छी प्रस्तुति....
इंसान का ईमान भी ऐसे ही बार बार मरता है .
हर रोज नए चक्रव्यूह रचे जाते हाँ और नए अभिमन्यु की तलाश होती है ... कुरुक्षेत्र कभी खत्म नहीं होता ...
जीवनरूपी चक्रव्यूह मे आज हर अभिमन्यु का यही हाल है……………बेहतरीन प्रस्तुति।
यह भी जीवन का एक रूप है, गहन भावव्यक्ति...
समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.co.uk/
गहन भाव लिए उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ।
अगला भी वैसा ही शिकार होता रहेगा...
bahut achchhi kavita hai. badhai
bachut hi pyari kavita hai,badhai
hota rahega chakravyuh taiyaar - her baar
कितनी सहजता से बयाँ करी आपने चक्र्व्यूह की निरंतरता! वाह!
गहन ...... विचारणीय भाव......
बहुत गहन भाव............
जीवन रुपी युद्ध में पल-पल शिकस्त होती है मानव की...तिलतिल मरता है..............
बहुत खूब सर.
गहन भाव लिए बेहतरीन प्रस्तुति।
bahut khoob
bahut badhiya
इस महासमर के महारथी छल के वार करने में आगा-पीछा कहाँ देखते हैं !
गहन भाव
अभिमन्यु की नियति यही है इस क्रूर विश्व के लिए ....
शुभकामनायें भाई जी !
हर दौर के अभिमन्यु ऐसे ही छले जते रहे हैं।
yahi to bidambana hai
Post a Comment