वह गुम है,
मगर उसे
स्वयं की गुमशुदगी का
एहसास ही नहीं है.
वह अक्सर
घर से निकलता है
खुद की बजाय
किसी और की तलाश में.
उसकी पहचान आसान नहीं है
क्योंकि उसकी शक्ल प्रतिपल
बदलती रहती है,
कभी वह मिलता है
खुद के खिलाफ़
हल्फ़िया बयान देते हुए;
कभी वह मिलता है
खुद ही को व्याख्यान देते हुए,
वह अक्सर
स्वयं पर हँसता है;
आनरकीलिंग के हर केस में
वही फँसता है,
वह पेड़ों से बातें करता है;
वह नदी से मुलाकातें करता है
वह रात होने पर
सुबह का इंतजार करता है
सारी रात जागकर;
अक्सर वह
अगवानी करता है सूरज का
पूरब दिशा में भागकर,
अगले चौराहे पर
पड़ी हुई एक लाश है
अब वह भागेगा उस ओर
क्योंकि
उसे खुद की तलाश है
जी हाँ !
उसे खुद की तलाश है.
50 comments:
यह अंतहीन तलाश क्या कभी पूरी होगी ... हर लाश में खुद को तलाशना ... इंसान का ज़मीर बचा ही कहाँ है ?
मैंने आपकी रचना में ज़मीर को देखा है खुद को तलाशते हुए ... हर पाठक इस रचना में नयी तलाश कर सकताहै .. गहन अभिव्यक्ति
क्या बात है--- खुद की तलाश है।
आनरकीलिंग के हर केस में
वही फँसता है,
वह पेड़ों से बातें करता है;
वह नदी से मुलाकातें करता है
वह रात होने पर
सुबह का इंतजार करता है
सारी रात जागकर;... gudh abhivyakti
हर किसी के लिए अलग अर्थ रखती ये रचना ....बहुत खूब
और ये तलाश है कि पूरी नही होती……………बेहद गहन अभिव्यक्ति।
इंसान की अंतहीन तलाश क्या कभी ख़त्म हो पाती है ... अपनी तलाश और अपनी पहचान तो तलाश करना बदलते परिवेश में शायद संभव नही होता ... लाजवाब रचना है वर्मा जी ...
इस मृत्यु लोक में इन्सान खुद को ही कहाँ पहचान पाया । यह तलाश तो जारी रहेगी अनंत तक ।
जिसकी यह तलाश पूरी हो जाती है उसकी और कोई तलाश बचती है क्या?
बेहद खूबसूरत कविता .. बहुत सुन्दर भाव... आप हतप्रभ कर देते हैं...
bahut hi bhawpoorn...
वह और कोई नहीं, एक बेचैन आत्मा है। जब तक बेचैन है समझो जिंदा है।
....बढ़िया लगी कविता।
उसे खुद की तलाश है ..
bahut sundar
आज तो टिप्पणी मे यही कहूँगा कि बहुत उम्दा रचना है यह!
एक मिसरा यह भी देख लें!
दर्देदिल ग़ज़ल के मिसरों में उभर आया है
खुश्क आँखों में समन्दर सा उतर आया है
खुद की तलाश ही मुश्किल है...
बहुत खूब..... एक अंतहीन सफ़र ..और मंजिल की तलाश
हम तो न जाने कितना खो जाते हैं इस जीवन में।
दुनिया की भीड़ में खुद अपने अस्तित्व की तलाश करता आदमी ...
खुद में अपने आपको तलाश करता आदमी ...
गहन भाव !
utkrisht bhvnaon ka prakatikaran sanjidagi ke sath achha laga .
shukriya .
बस, यह अनवरत तलाश है...
बेहतरीन रचना..
वह रात होने पर
सुबह का इंतजार करता है
सारी रात जागकर
बहुत खूब कहा है ।
यही आज के मानवीय जीवन की विडम्बना है .... औरोकी तालाश में भटकता इन्सान खुद को ही तलाशना भूल जाता है ......अच्छा लगा पढ़ कर ...
अंतहीन तलाश...
सचमुच यही मरीचिका तो जीवन को खींच मृत्यु तक पहुंचाती है...
गंभीर चिंतनीय रचना...
एक अंतहीन तलाश स्वयं की .....
' यह मैं नहीं एक तस्वीर है
संयोग है कि मुझसे मिलती है '
बहुत सच कहा है...आज हर व्यक्ति अपनी तलाश में ही भटक रहा है..बहुत गहन और भावपूर्ण प्रस्तुति..आभार
truly an endless search but its of vital importance.... Introspection is must.
I have also written on the same topic
Plz have a look
http://jyotimi.blogspot.com/2011/02/introspection.html
अब वह भागेगा उस ओर
क्योंकि
उसे खुद की तलाश है
जी हाँ !
उसे खुद की तलाश है.
bahut hi sundar ,gahan abhivyakti .
बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण कविता! ख़ुद की तलाश में ...ये बहुत ही मुश्किल है पर नामुमकिन नहीं!
खुद को तलाशना? चिंतन हेतु नया आयाम - वाह.
सादर
श्यामल सुमन
+919955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
antheen talaash
बेहतर...
बेचारा!
यकायक स्तब्ध ,स्तंभित करती है कविता ....
खुद की तलाश जारी भी रहनी चाहिए। एक जीवन छोटा है खुद को समझने के लिए।
आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
शब्दशः तलाश को एक नया आयाम देती रचना ..आपको पढ़ना बहुत अच्छा लगता है..आभार
बेहद खूबसूरत कविता .. ........
क्या बात है, बहुत खूब
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
यही तो होता आया है सदियों से ..मगर क्यूं क्यूं ...?
क्या बात है.. बहुत बढिया।
अक्सर वह
"अगवानी करता है सूरज का
पूरब दिशा में भागकर,
अगले चौराहे पर
पड़ी हुई एक लाश है
अब वह भागेगा उस ओर
क्योंकि
उसे खुद की तलाश है "
और इस बार शायद यह तलाश ख़त्म हो जाए....!
सुन्दर अभिव्यक्ति....
तलाश तो अंतहीन है!
sahi baat kahi apne....hum sab yahin karte hain....
शब्दों की बरात ....... :)
like thoughts,desire ,search is also never ending
जी हाँ ! उसे खुद की तलाश है... बहुत सही कहा है... मनुष्य मनुष्य को खोजते यहाँ तक पहुँच तो गया है लेकिन उसे पता ही नहीं कहाँ तक पहुँच पाया है... ये उसकी मंजिल है, राह है या वह भटक गया है अपनी निर्धारित राह से...
अत्यंत अर्थपूर्ण कविता.... स्तंभित करती हुई....
सादर बधाई....
ajab jaddojehad hai, khud ko har taraf talashta insaan...sundar rachna, shubhkaamnaayen.
khud ki talash kya kabhi poori hoti hai???
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