प्रतिध्वनित होने के लिये जरूरी है
उच्च तीव्रता युक्त ध्वनि का
किसी वस्तु से टकराव;
जरूरी है -
स्रोत ध्वनि और
टकराव बिन्दु के बीच
कोलाहल रहित एक निश्चित दूरी;
ध्वनि ऊर्जा है
जो क्रमश: बटती जाती है,
अवलोकन और सिद्धांत बताते हैं
प्रतिध्वनित ध्वनि की तीव्रता
उत्तरोत्तर घटती जाती है.
.
उस दिन
कोलाहल युक्त इस भवन में
मुझे देख तुम
सकुचाती सी खड़ी थी,
ऐसा प्रतीत हो रहा था
मानो धरती में तुम गड़ी थी,
भीड़ का दामन थाम
मैं तुम्हारे बहुत करीब हो गया था,
इतना कि
एक सहज उत्कंठित स्पर्श का
अनायास प्रादुर्भाव हुआ था,
मेरे कर्ण पटल से टकराये थे
तुम्हारे संकुचित श्वासों संग
लगभग शून्य तीव्रता युक्त
उच्चरित अस्फुट स्वर,
और फिर तमाम सिद्धांतो से परे
ये स्वर प्रतिध्वनित हुए;
प्रतिध्वनित हो रहे हैं
यही नही,
तीव्रता ह्रास की जगह
इनकी तीव्रता बढ़ रही है
कहीं यह अनुनाद तो नहीं है?
यह अनुनाद बहुत गहरा है... सुन्दर कविता...
ReplyDeleteबेहतरीन, एक नए अंदाज में सुन्दर रचना!
ReplyDeleteवैज्ञानिक कविता...बेहतर...
ReplyDeleteवाह! कमाल का लिखा है वर्मा जी... बहुत बढ़िया...
ReplyDeleteकमाल का चित्रण किया है।
ReplyDeleteबहुत खूब! विज्ञान और कोमल अहसासों का बहुत सुन्दर भावपूर्ण संयोजन..बहुत सुन्दर
ReplyDeleteतुम
ReplyDeleteनिर्निमेष ताक रही थीं
फटी पोशाक में से झाँकती हुई
मेरी मांसपेशियों को।
मैंने जल्दी से
पैबंद सी दिया
और तुमने भी
अपने नक़ाब पर दूसरा नया पन्ना
चिपका लिया।
[ऋषभ देव शर्मा की कविता ‘पोथी पढी पढी’ से.... कविताकोष में ‘ताकि सनद रहे’ में उपलब्ध]
gazab ka likha hai....wah.
ReplyDeleteअनायास प्रादुर्भाव हुआ था,
ReplyDeleteमेरे कर्ण पटल से टकराये थे
तुम्हारे संकुचित श्वासों संग
लगभग शून्य तीव्रता युक्त
उच्चरित अस्फुट स्वर,
waah kya kahne ,bahut badhiya likha hai
दोनों कविता सुन्दर है ... एक वैज्ञानिक बिम्बो को इस्तमाल करती और एक भावनाओं के स्रोत को ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ... अत्यंत रोमांटिक
ReplyDeletebahoot khoob
ReplyDeleteगूँज तो बड़ी घटनाओं की ही होती है।
ReplyDeleteध्वनि विज्ञान की दो घटनाओं- प्रतिध्वनि और अनुनाद को आपने कविता में प्रतीक के रूप में सुंदरता से प्रयोग किया है।
ReplyDeleteकविता के कथ्य और शिल्प में अनूठी नवीनता है।
मन का विज्ञान वैज्ञानिक तथ्यों से परे होता है ...सुन्दर रचना
ReplyDeleteविज्ञानं को कविता में ढाल कर सुन्दरता से मन की बात लिखी है ..!!
ReplyDeleteतीव्रता हवस की जगह इनकी तीव्रता का बढ़ जाना ...
ReplyDeleteमानव जीवन , भावनाएं और एहसास कब विज्ञान के नियमों को कहाँ मानते हैं ...
सुन्दर रचना !
kamaal ke bhaw hai... adbhut
ReplyDeleteबेहतरीन शब्द रचना ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबेहद भावपूर्ण, अद्भुत चित्रण ,बधाई
ReplyDeleteसुन्दर चित्रण किया है।
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बेहद भावपूर्ण, अद्भुत चित्रण ,बधाई
ReplyDeleteबेहद भावपूर्ण, अद्भुत चित्रण ,बधाई
ReplyDeleteवाह....
ReplyDeleteयह प्रेमानुनाद अक्षुण रहे...
ये अनुनाद नहीं अनंत नाद है...एक बार जो सुन ले...जीवन भर ना भूले...बाई द वे...ये बीमारी एक बार हुई...या बार-बार हो रही है...
ReplyDeleteविज्ञान के तथ्यों और भावों का अनूठा समन्वयन ....शुभ कामनाएं....
ReplyDeleteनए अंदाज़ और सुन्दर एहसासों के साथ उम्दा रचना लिखा है आपने! आपकी लेखनी को सलाम!
ReplyDeletehttp://seawave-babli.blogspot.com
कमाल का लिखा है
ReplyDeleteबेहतरीन रचना...
ReplyDeleteनयी अनुभूति और प्रस्तुति की कविता !
ReplyDeleteBeautiful.... !!!
ReplyDeleteइस अनुनाद की गूँज गूँजती रहती है हमेशा ... लाजवाब रचना ...
ReplyDeleteविज्ञान के विषयों को कविता की विषय वस्तु बनाना बहुत महत्वपूर्ण कार्य है ।
ReplyDeleteअनुनाद प्रतिध्वनित करती रचना ..सुन्दर शब्द..सुन्दर भाव .
ReplyDeleteभीड़ का दामन थाम
ReplyDeleteमैं तुम्हारे बहुत करीब हो गया था,
इतना कि
एक सहज उत्कंठित स्पर्श का
अनायास प्रादुर्भाव हुआ था.....
:))
बधाई .....
चिंतनपरक कविता.
ReplyDeleteअगले चौराहे पर
ReplyDeleteपड़ी हुई एक लाश है
अब वह भागेगा उस ओर
क्योंकि
उसे खुद की तलाश है
जी हाँ !
उसे खुद की तलाश है. ....
वाह! बहुत सुन्दर लेखन...
सादर...
बेहद भावपूर्ण....लाजवाब रचना ...
ReplyDeleteवह गुम है,
ReplyDeleteमगर उसे
स्वयं की गुमशुदगी का
एहसास ही नहीं है.
बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति..
यह कविता भी अच्छी बन पड़ी है.