आपाधापी
गहमागहमी
कभी गरमी
तो कभी नरमी
अन्धाधुन्ध बिक्री
एक के साथ एक फ्री
सपनों की दुकान
किधर ध्यान है श्रीमान
हम बतलाते हैं
भूत-भविष्य-वर्तमान
कभी इस पार
तो कभी उस पार
दिखने में फरिश्ते
बेचने निकले हैं
किस्तों में रिश्ते
ढीली करो अंटी
मिल रही गारंटी
आज नकद
तो कल उधार
देखो तेल,
देखो तेल की धार
राम-राम
दुआ सलाम
भागते हुए लोग
पर जिन्दगी है सहमी
आपाधापी
गहमागहमी
कभी गरमी
तो कभी नरमी.
देखने में फ़रिश्ते , बेचने चले हैं रिश्ते ...
ReplyDeleteक्या दृश्य दिखलाया है ...
बहुत खूब !
कम शब्दों में गहरी बात समेंटे हुए सुन्दर रचना!
ReplyDeleteवाह!! क्या खूब!!
ReplyDeleteआधुनिक जिंदगी की सही तस्वीर ।
ReplyDeleteएक और खूबसूरत कविता आपकी कलम से
ReplyDeleteBahuti badhiya kaha hai varma ji
ReplyDeleteaabhar
Dilli me aapse pun: mil kar khushi huyi..
कभी इस पार
ReplyDeleteतो कभी उस पार
दिखने में फरिश्ते
बेचने निकले हैं
किस्तों में रिश्ते
ढीली करो अंटी
मिल रही गारंटी
आज की भौतिक सुविधाएँ जिस तरह हासिल की जा रही हैं उनका सजीव चित्र खींच दिया है
आ. वर्मा जी,
ReplyDeleteआधुनिक जीवन शैली पर तीखा कटाक्ष किया है आपने।
बढ़िया कविता।
रश्मि प्रभा... has left a new comment on your post "पर जिन्दगी है सहमी …."
ReplyDeleteदिखने में फरिश्ते
बेचने निकले हैं
किस्तों में रिश्ते... rishte bhi ho chale saste
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ReplyDeleteआधुनिकता की सच्चाई
ReplyDeleteजीवन की आपाधापी तो रुकने वाली नहीं:)
ReplyDeleteसहमी हुई ज़िन्दगी का शानदार चित्रण्।
ReplyDeleteबाजारीकरण पर तल्ख टिप्पणी...
ReplyDeleteबेहतर...
सपनों की दुकान
ReplyDeleteकिधर ध्यान है श्रीमान
हम बतलाते हैं
भूत-भविष्य-वर्तमान.
गज़ब दृश्य प्रस्तुत किया है. बहुत खूब. आभार और शुभकामनाएँ.
जीवंत चित्रण आज के परिवेश का.सुन्दर कविता.
ReplyDeletejeewan kaa sundar chitran
ReplyDeleteसचमुच जिन्दगी सहमी।
ReplyDeleteबढ़िया चित्रण किया जिन्दगी का वर्मा साहब !
ReplyDeleteगर्मी तो थी, उमस ने ज्यादा चौपट किया है माहौल! ज्यादा सहमाया है।
ReplyDeleteबहुत खुब। शानदार चित्रण किया है आपने आज की जिदंगी का।
ReplyDeleteबहुत ही ख़ूबसूरत और शानदार रचना लिखा है आपने! उम्दा प्रस्तुती!
ReplyDeleteआपाधापी गहमागहमी कभी गरमी तो कभी नरमी...
ReplyDelete...आधुनिक जिंदगी का सजीव चित्र ...शुभकामनाएँ.
नपे तुले शब्दों में कितनी गहरी बातें कह दीं आपने....
ReplyDeleteप्रभावशाली....बहुत बहुत सुन्दर रचना....
खूबसूरत कविता विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
ReplyDeleteकमाल लिखते हैं आप .एक-एक शब्द में आनंद भरा है .बहुत-बहुत अच्छी लगी ये रचना ..आभार
ReplyDeleteबधाई वैवाहिक
ReplyDeleteवर्षगांठ के लिये
टिप्पणी देकर प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
ReplyDeleteआज नकद
ReplyDeleteतो कल उधार
देखो तेल,
देखो तेल की धार
गजब की अभिव्यक्ति है गज़ब का फ्लो है कविता में आपका !
आपकी सारी कवितायें अच्छी लगीं
आपका धन्यवाद...
कृपया मेरे ब्लॉग पर आयें.. http://madanaryancom.blogspot.com/
शानदार चित्रण किया है आपने|धन्यवाद|
ReplyDeleteवाह,बेहद गहन अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteआभार,वर्मा जी,
आसान शब्दों में गंभीर बातें। बहुत सुंदर
ReplyDeleteसुन्दर रचना!
ReplyDeleteवाह बहुत सुंदर.
ReplyDeleteसुन्दर रचना!
ReplyDeletehttp://abhinavanugrah.blogspot.com/
लाजवाब......
ReplyDeleteअच्छी अभिव्यक्ति ......... आभार !
ReplyDeleteखने में फ़रिश्ते , बेचने चले हैं रिश्ते ...
ReplyDeleteजिंदगी की तस्वीर ।