Tuesday, May 17, 2011

पर जिन्दगी है सहमी ….



आपाधापी

गहमागहमी

कभी गरमी

तो कभी नरमी

अन्धाधुन्ध बिक्री

एक के साथ एक फ्री

सपनों की दुकान

किधर ध्यान है श्रीमान

हम बतलाते हैं

भूत-भविष्य-वर्तमान

कभी इस पार

तो कभी उस पार

दिखने में फरिश्ते

बेचने निकले हैं

किस्तों में रिश्ते

ढीली करो अंटी

मिल रही गारंटी

आज नकद

तो कल उधार

देखो तेल,

देखो तेल की धार

राम-राम

दुआ सलाम

भागते हुए लोग

पर जिन्दगी है सहमी

आपाधापी

गहमागहमी

कभी गरमी

तो कभी नरमी.

38 comments:

  1. देखने में फ़रिश्ते , बेचने चले हैं रिश्ते ...
    क्या दृश्य दिखलाया है ...
    बहुत खूब !

    ReplyDelete
  2. कम शब्दों में गहरी बात समेंटे हुए सुन्दर रचना!

    ReplyDelete
  3. वाह!! क्या खूब!!

    ReplyDelete
  4. आधुनिक जिंदगी की सही तस्वीर ।

    ReplyDelete
  5. एक और खूबसूरत कविता आपकी कलम से

    ReplyDelete
  6. Bahuti badhiya kaha hai varma ji

    aabhar

    Dilli me aapse pun: mil kar khushi huyi..

    ReplyDelete
  7. कभी इस पार

    तो कभी उस पार

    दिखने में फरिश्ते

    बेचने निकले हैं

    किस्तों में रिश्ते

    ढीली करो अंटी

    मिल रही गारंटी

    आज की भौतिक सुविधाएँ जिस तरह हासिल की जा रही हैं उनका सजीव चित्र खींच दिया है

    ReplyDelete
  8. आ. वर्मा जी,
    आधुनिक जीवन शैली पर तीखा कटाक्ष किया है आपने।
    बढ़िया कविता।

    ReplyDelete
  9. रश्मि प्रभा... has left a new comment on your post "पर जिन्दगी है सहमी …."


    दिखने में फरिश्ते

    बेचने निकले हैं

    किस्तों में रिश्ते... rishte bhi ho chale saste

    ReplyDelete
  10. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  11. आधुनिकता की सच्चाई

    ReplyDelete
  12. जीवन की आपाधापी तो रुकने वाली नहीं:)

    ReplyDelete
  13. सहमी हुई ज़िन्दगी का शानदार चित्रण्।

    ReplyDelete
  14. बाजारीकरण पर तल्ख टिप्पणी...
    बेहतर...

    ReplyDelete
  15. सपनों की दुकान
    किधर ध्यान है श्रीमान
    हम बतलाते हैं
    भूत-भविष्य-वर्तमान.

    गज़ब दृश्य प्रस्तुत किया है. बहुत खूब. आभार और शुभकामनाएँ.

    ReplyDelete
  16. जीवंत चित्रण आज के परिवेश का.सुन्दर कविता.

    ReplyDelete
  17. सचमुच जिन्दगी सहमी।

    ReplyDelete
  18. बढ़िया चित्रण किया जिन्दगी का वर्मा साहब !

    ReplyDelete
  19. गर्मी तो थी, उमस ने ज्यादा चौपट किया है माहौल! ज्यादा सहमाया है।

    ReplyDelete
  20. बहुत खुब। शानदार चित्रण किया है आपने आज की जिदंगी का।

    ReplyDelete
  21. बहुत ही ख़ूबसूरत और शानदार रचना लिखा है आपने! उम्दा प्रस्तुती!

    ReplyDelete
  22. आपाधापी गहमागहमी कभी गरमी तो कभी नरमी...
    ...आधुनिक जिंदगी का सजीव चित्र ...शुभकामनाएँ.

    ReplyDelete
  23. नपे तुले शब्दों में कितनी गहरी बातें कह दीं आपने....

    प्रभावशाली....बहुत बहुत सुन्दर रचना....

    ReplyDelete
  24. कमाल लिखते हैं आप .एक-एक शब्द में आनंद भरा है .बहुत-बहुत अच्छी लगी ये रचना ..आभार

    ReplyDelete
  25. बधाई वैवाहिक
    वर्षगांठ के लिये

    ReplyDelete
  26. टिप्पणी देकर प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!

    ReplyDelete
  27. आज नकद

    तो कल उधार

    देखो तेल,

    देखो तेल की धार
    गजब की अभिव्यक्ति है गज़ब का फ्लो है कविता में आपका !
    आपकी सारी कवितायें अच्छी लगीं
    आपका धन्यवाद...
    कृपया मेरे ब्लॉग पर आयें.. http://madanaryancom.blogspot.com/

    ReplyDelete
  28. शानदार चित्रण किया है आपने|धन्यवाद|

    ReplyDelete
  29. वाह,बेहद गहन अभिव्यक्ति !
    आभार,वर्मा जी,

    ReplyDelete
  30. आसान शब्दों में गंभीर बातें। बहुत सुंदर

    ReplyDelete
  31. सुन्दर रचना!

    ReplyDelete
  32. सुन्दर रचना!


    http://abhinavanugrah.blogspot.com/

    ReplyDelete
  33. अच्छी अभिव्यक्ति ......... आभार !

    ReplyDelete
  34. खने में फ़रिश्ते , बेचने चले हैं रिश्ते ...

    जिंदगी की तस्वीर ।

    ReplyDelete