आपाधापी
गहमागहमी
कभी गरमी
तो कभी नरमी
अन्धाधुन्ध बिक्री
एक के साथ एक फ्री
सपनों की दुकान
किधर ध्यान है श्रीमान
हम बतलाते हैं
भूत-भविष्य-वर्तमान
कभी इस पार
तो कभी उस पार
दिखने में फरिश्ते
बेचने निकले हैं
किस्तों में रिश्ते
ढीली करो अंटी
मिल रही गारंटी
आज नकद
तो कल उधार
देखो तेल,
देखो तेल की धार
राम-राम
दुआ सलाम
भागते हुए लोग
पर जिन्दगी है सहमी
आपाधापी
गहमागहमी
कभी गरमी
तो कभी नरमी.
38 comments:
देखने में फ़रिश्ते , बेचने चले हैं रिश्ते ...
क्या दृश्य दिखलाया है ...
बहुत खूब !
कम शब्दों में गहरी बात समेंटे हुए सुन्दर रचना!
वाह!! क्या खूब!!
आधुनिक जिंदगी की सही तस्वीर ।
एक और खूबसूरत कविता आपकी कलम से
Bahuti badhiya kaha hai varma ji
aabhar
Dilli me aapse pun: mil kar khushi huyi..
कभी इस पार
तो कभी उस पार
दिखने में फरिश्ते
बेचने निकले हैं
किस्तों में रिश्ते
ढीली करो अंटी
मिल रही गारंटी
आज की भौतिक सुविधाएँ जिस तरह हासिल की जा रही हैं उनका सजीव चित्र खींच दिया है
आ. वर्मा जी,
आधुनिक जीवन शैली पर तीखा कटाक्ष किया है आपने।
बढ़िया कविता।
रश्मि प्रभा... has left a new comment on your post "पर जिन्दगी है सहमी …."
दिखने में फरिश्ते
बेचने निकले हैं
किस्तों में रिश्ते... rishte bhi ho chale saste
आधुनिकता की सच्चाई
जीवन की आपाधापी तो रुकने वाली नहीं:)
सहमी हुई ज़िन्दगी का शानदार चित्रण्।
बाजारीकरण पर तल्ख टिप्पणी...
बेहतर...
सपनों की दुकान
किधर ध्यान है श्रीमान
हम बतलाते हैं
भूत-भविष्य-वर्तमान.
गज़ब दृश्य प्रस्तुत किया है. बहुत खूब. आभार और शुभकामनाएँ.
जीवंत चित्रण आज के परिवेश का.सुन्दर कविता.
jeewan kaa sundar chitran
सचमुच जिन्दगी सहमी।
बढ़िया चित्रण किया जिन्दगी का वर्मा साहब !
गर्मी तो थी, उमस ने ज्यादा चौपट किया है माहौल! ज्यादा सहमाया है।
बहुत खुब। शानदार चित्रण किया है आपने आज की जिदंगी का।
बहुत ही ख़ूबसूरत और शानदार रचना लिखा है आपने! उम्दा प्रस्तुती!
आपाधापी गहमागहमी कभी गरमी तो कभी नरमी...
...आधुनिक जिंदगी का सजीव चित्र ...शुभकामनाएँ.
नपे तुले शब्दों में कितनी गहरी बातें कह दीं आपने....
प्रभावशाली....बहुत बहुत सुन्दर रचना....
खूबसूरत कविता विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
कमाल लिखते हैं आप .एक-एक शब्द में आनंद भरा है .बहुत-बहुत अच्छी लगी ये रचना ..आभार
बधाई वैवाहिक
वर्षगांठ के लिये
टिप्पणी देकर प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
आज नकद
तो कल उधार
देखो तेल,
देखो तेल की धार
गजब की अभिव्यक्ति है गज़ब का फ्लो है कविता में आपका !
आपकी सारी कवितायें अच्छी लगीं
आपका धन्यवाद...
कृपया मेरे ब्लॉग पर आयें.. http://madanaryancom.blogspot.com/
शानदार चित्रण किया है आपने|धन्यवाद|
वाह,बेहद गहन अभिव्यक्ति !
आभार,वर्मा जी,
आसान शब्दों में गंभीर बातें। बहुत सुंदर
सुन्दर रचना!
वाह बहुत सुंदर.
सुन्दर रचना!
http://abhinavanugrah.blogspot.com/
लाजवाब......
अच्छी अभिव्यक्ति ......... आभार !
खने में फ़रिश्ते , बेचने चले हैं रिश्ते ...
जिंदगी की तस्वीर ।
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