Wednesday, April 13, 2011

आँकड़े प्रायोजित हैं ...


कभी यूँ ही हवाओं के संग भाग कर देखना
उनींदी आखों में सारी रात जाग कर देखना
.
अन्धेरी राहों से यूँ कतरा कर तो न निकलो
इनके नाम तुम बस एक चिराग कर देखना
.
ख़ौफ़जदा हैं; डरे-डरे से पड़े हैं अधमरे से जो
उनके हिस्से भी सूरज की आग कर देखना
.
हकीकत कुछ और है, आँकड़े प्रायोजित हैं
नए सिरे से फिर तुम गुणा-भाग कर देखना
.
जबकि सारा जमाना आमादा है बटोरने को
जरूरतमंद के लिये कुछ त्याग कर देखना

35 comments:

संजय भास्‍कर said...

सच कहती हुई....हर एक पंक्ति ...।

संजय भास्‍कर said...

बहुत सटीक और सार्थक चित्रण."आँकड़े प्रायोजित हैं ...बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना..आभार

प्रवीण पाण्डेय said...

यही त्याग हमें आगे ले जाता है।

ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...

हकीकत कुछ और है, आँकड़े प्रायोजित हैं

नए सिरे से फिर तुम गुणा-भाग कर देखना
khubsurat aur sach ko bayan karati panktiyan !
abhaar!

अरुण चन्द्र रॉय said...

प्रभावशाली ग़ज़ल.. वाकई आंकड़े प्रायोजित हैं..

Shah Nawaz said...

बहुत ही बेहतरीन और प्रेरणादायक!

निर्मला कपिला said...

बहुत सुन्दर गज़ल। बधाई आपको।

सदा said...

बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आंकड़े कुछ कहते हैं और सच्चाई कुछ और होती है ...बहुत अच्छी गज़ल

Asha Joglekar said...
This comment has been removed by the author.
Asha Joglekar said...

हकीकत कुछ और है, आँकड़े प्रायोजित हैं

नए सिरे से फिर तुम गुणा-भाग कर देखना

.

जबकि सारा जमाना आमादा है बटोरने को

जरूरतमंद के लिये कुछ त्याग कर देखना

बेहतरीन वर्मा जी ।

kshama said...

Aapkee rachanayen padhne me ek alaghee aanand aata hai!Mai use shabdon me bayaan nahee kar saktee!

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

‘नए सिरे से फिर तुम गुणा-भाग कर देखना’

इस पर शैल चतुर्वेदी का बहुगुणा पर व्यंग्य की गई पंक्तियां याद आई

गुणा करते करते भाग हो गए
इंदिरा के चक्कर में कुर्ते पर दाग हो गए:)

vandana gupta said...

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (14-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

http://charchamanch.blogspot.com/

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

उम्दा ग़ज़ल ....हर शेर बेहतरीन

ज्योति सिंह said...

कभी यूँ ही हवाओं के संग भाग कर देखना

उनींदी आखों में सारी रात जाग कर देखना

.

अन्धेरी राहों से यूँ कतरा कर तो न निकलो

इनके नाम तुम बस एक चिराग कर देखना
bahut hi sundar.

shikha varshney said...

हकीकत कुछ और है, आँकड़े प्रायोजित हैं

नए सिरे से फिर तुम गुणा-भाग कर देखना
अर्थपूर्ण पंक्तियाँ....सुन्दर.

'साहिल' said...

हकीकत कुछ और है, आँकड़े प्रायोजित हैं
नए सिरे से फिर तुम गुणा-भाग कर देखना

bahut hi umda sher hain saare!

Satish Saxena said...

बहुत खूब भाई जी ! शुभकामनायें !!

डॉ टी एस दराल said...

जबकि सारा जमाना आमादा है बटोरने को

जरूरतमंद के लिये कुछ त्याग कर देखना

सारा यथार्थ छुपा है इन पंक्तियों में ।
बेहतरीन ।

Anonymous said...

हकीकत कुछ और है, आँकड़े प्रायोजित हैं
नए सिरे से फिर तुम गुणा-भाग कर देखना...

कमाल है...

Sadhana Vaid said...

हकीकत कुछ और है, आँकड़े प्रायोजित हैं

नए सिरे से फिर तुम गुणा-भाग कर देखना !

बहुत सुन्दर ! हर पंक्ति हृदय पर गहरी छाप छोडती है ! यथार्थ से रू-ब-रू कराती संवेदनशील रचना ! बधाई एवं आभार !

shama said...

Andheron ke naam ek charag kar dena! Kitne khoobsoorat bhaav hain!

सु-मन (Suman Kapoor) said...

हर लफ्ज लाजवाब .....

महेन्‍द्र वर्मा said...

जबकि सारा जमाना आमादा है बटोरने को
जरूरतमंद के लिये कुछ त्याग कर देखना

यथार्थ की बेहतरीन अभिव्यक्ति।
बधाई, इस सुंदर ग़ज़ल के लिए।

Parul kanani said...

kya baat hai! :)

वीना श्रीवास्तव said...

अन्धेरी राहों से यूँ कतरा कर तो न निकलो
इनके नाम तुम बस एक चिराग कर देखना

बेहद खूबसूरत ग़ज़ल...

दिगम्बर नासवा said...

हकीकत कुछ और है, आँकड़े प्रायोजित हैं
नए सिरे से फिर तुम गुणा-भाग कर देखना ...

Saarthak rachna ... samaaj ka hoobhoo chitran ...

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

अन्धेरी राहों से यूँ कतरा कर तो न निकलो
इनके नाम तुम बस एक चिराग कर देखना

क्या बात है ... दिल को छुं गई ये बात !

Kailash Sharma said...

अन्धेरी राहों से यूँ कतरा कर तो न निकलो

इनके नाम तुम बस एक चिराग कर देखना..

बहुत खूबसूरत और प्रेरक गज़ल..आज के हालात पर सटीक टिप्पणी...

रंजना said...

जबकि सारा जमाना आमादा है बटोरने को

जरूरतमंद के लिये कुछ त्याग कर देखना

यह विशेष रूप से दिल को छू गयी....

सदैव की भांति मन को छूती गंभीर अतिसुन्दर रचना...

आभार..

Amrita Tanmay said...

Ek-ek lafj vehad prabhavi...umda gajal....

राज भाटिय़ा said...

टिकेंगे भी भला कैसे हल्फिया बयान

वे बहुत ऊँची जान-पहचान रखते हैं
सटीक जी,बहुत अच्छी ओर सच्ची बात कह दी आप ने अपनी गजल मे, धन्यवाद

Manav Mehta 'मन' said...

bahut khoob likha hai ..jabardast..

रश्मि प्रभा... said...

टिकेंगे भी भला कैसे हल्फिया बयान
वे बहुत ऊँची जान-पहचान रखते हैं
waah waah kitni sahi baat
.