कभी हाय तो कभी वाह है जिन्दगी
सतत और निर्बाध प्रवाह है जिन्दगी
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चौराहों पर दम तोड़ती इंसानियत से
रूबरू औ’ चश्मदीद गवाह है जिन्दगी
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जरूरतें जब मुँह बाये खड़ी होती हैं
यूँ लगता है कि तनख़्वाह है जिन्दगी
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खुद को समेटने से कतराती रही है
देखिये किस कदर बेपरवाह है जिन्दगी
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रिश्ता, दस्तूर, फर्ज, दुनियादारी का
प्रतिरोध रहित निर्वाह है जिन्दगी
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आशिक युगल से पूछ कर तो देखिये
कह देंगे इक-दूजे से विवाह है जिन्दगी
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ज़नाजे को कांधा देकर जब लौटेगा
खुद से कहेगा कि अफ़वाह है जिन्दगी
61 comments:
जरूरतें जब मुँह बाये खड़ी होती हैं
यूँ लगता है कि तनख़्वाह है जिन्दगी
वाह , वाह, क्या बात है ।
सभी सरकारी नौकरों की दुखती राग पर जैसे हाथ रख दिया हो ।
इतने दिनों कहाँ रहे वर्मा जी ?
बहुत सही कहा आपने बस इसी इंतजार में कटती है ज़िंदगी
नव वर्ष की शुभकामनाये ,नया साल आपको खुशियाँ प्रदान करे
वाह हर किसी के लिए अलग अलग है जिंदगी.
बहुत सुन्दर.
ज़नाजे को कांधा देकर जब लौटेगा
खुद से कहेगा कि अफ़वाह है जिन्दगी
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हकीकत से रूबरू करा दिया आपने तो अपनी इस सुन्दर रचना में!
अग्रिम जिन्दगी की चिन्तायें अफवाह के रूप में ही लें। सुन्दर कविता।
bahut sunder rachna
mere blog mai
"mai aa gyi hu lautkar"
ज़नाजे को कांधा देकर जब लौटेगा
खुद से कहेगा कि अफ़वाह है जिन्दगी
Wah, Bahut khoob !
खुद को समेटने से कतराती रही है
देखिये किस कदर बेपरवाह है जिन्दगी
... kyaa baat hai !
जरूरतें जब मुँह बाये खड़ी होती हैं
यूँ लगता है कि तनख़्वाह है जिन्दगी
... kyaa kahane !!
वाह हर किसी के लिए अलग अलग है जिंदगी.
बहुत सुन्दर.
’कभी धूप हॆ,तो कभी छांव हॆ जिंदगी’
हम-सफर साथ दे,तो ठंडी ब्यार हॆ जिंदगी.
वाह! वर्मा जी जीवन के संदर्भ में सुंदर
अभिव्यक्ति आपको एवं आपके अन्य परिवारजनों को भी नव-वर्ष की मंगल कामनायें.
ज़नाजे को कांधा देकर जब लौटेगा
खुद से कहेगा कि अफ़वाह है जिन्दगी
कितना बडा सच इतनी सरलता से कह दिया…………यही आपके लेखन की खूबी है।
verma ji. nav varsh ki badhayi.
aapki rachnaye hamesh zindgi ko chhooti hui yathaarth se ot-prot hoti hain.
हर शेर खूबसूरत है ।
kshama has left a new comment
ज़नाजे को कांधा देकर जब लौटेगा
खुद से कहेगा कि अफ़वाह है जिन्दगी
Wah!Kya gazab likhte hain aap!
ज़नाजे को कांधा देकर जब लौटेगा
खुद से कहेगा कि अफ़वाह है जिन्दगी
बहुत ही ज़बरदस्त भाव है.... बेहद खूबसूरत रचना...
जरूरतें जब मुँह बाये खड़ी होती हैं
यूँ लगता है कि तनख़्वाह है जिन्दगी
बहुत खूब ...सुन्दर शब्दों का संगम है इस रचना में ।
आशिक युगल से पूछ कर तो देखिये
कह देंगे इक-दूजे से विवाह है जिन्दगी
yah bhi khoob kaha aapne.
जरूरतें जब मुँह बाये खड़ी होती हैं
यूँ लगता है कि तनख़्वाह है जिन्दगी
ज़नाजे को कांधा देकर जब लौटेगा
खुद से कहेगा कि अफ़वाह है जिन्दगी
ज़िन्दगी की सही व्याख्या। सभी शेर बहुत अच्छे लगे। बधाई।
bahut sundar abhivyakti zindagi ki ...
जरूरतें जब मुँह बाये खड़ी होती हैं
यूँ लगता है कि तनख़्वाह है जिन्दगी
वह क्या बात है वर्मा जी ..... हर शेर सच्चाई बयान कर रहा है ... जीवन का यथार्थ लिखा है ....
आपको नव वर्ष किबहुत बहुत बधाई ...
'chaurahon par dam todti insaniyat se
roobru au chashmdeed gawah hai jindgi'
umda gazal.
ज़नाजे को कांधा देकर जब लौटेगा
खुद से कहेगा कि अफ़वाह है जिन्दगी
waah, kya kahoon ... har pankti jaise satya kee paribhasha ho ...
lajawaab rachna !
जिन्दगी को अफवाह बताकर आपने जीवन के समस्त संत्रासो की एकमुश्त अभिव्यक्ति की है . बहुत प्रभावित किया ग़ज़ल ने
nyc composition sir!!!!!!!!!1
जरूरतें जब मुँह बाये खड़ी होती हैं
यूँ लगता है कि तनख़्वाह है जिन्दगी
दारल साहब की बात से पूरी तरह सहमत हूँ
ज़िन्दगी की सही व्याख्या। खूबसूरत रचना नव वर्ष की शुभकामनाये
सार्थक और बेहद बेहद खूबसूरत रचना
नव वर्ष की मंगलकामनायें
जिंदगी कैसी है पहेली
शानदार व्याख्या
आदरणीय वर्मा जी
नमस्कार !
ज़िन्दगी की सही व्याख्या। खूबसूरत रचना नव वर्ष की शुभकामनाये
आद. वर्मा जी,
"ज़नाजे को कांधा देकर जब लौटेगा
खुद से कहेगा कि अफ़वाह है जिन्दगी"
आपने ज़िन्दगी की सुलगती सच्चाइयों को बड़ी ही खूबसूरती से हर शेर में ढाला है !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
सबकी अपनी अपनी परिभाषा है जिंदगी ...
कही आह तो कही वाह है जिंदगी ...
जिंदगी के कई रूपों पर नजर डाल दी है आपने ...
खुद को समेटने से कतराती रही है
देखिये किस कदर बेपरवाह है जिन्दगी
रिश्ता, दस्तूर, फर्ज, दुनियादारी का
प्रतिरोध रहित निर्वाह है जिन्दगी
ज़िन्दगी को समेट सके ऐसा किसी के लिए कहाँ संभव हो सका! आपने उसके विविध रूपोंका बहुत प्रभावशाली चित्रण किया है -व्यापक और गहन !
बेजोड़ ..लाजवाब...रचना...
किसकी प्रशंसा करूँ और किसे छोड़ दूँ..हर शेर ने ही मन को ऐसे बाँधा कि कई पलों तक हम ठिठके रह गए ..
बेहतरीन रचना...वाह !!!!
इस गजल में तो इंद्रधनुष की तरह सब रंग समेटे हुए है जिंदगी।
..वाह!
सब अफवाह है , सब मिथ्या है ...लेकिन यही है जिंदगी ...
ज़नाजे को कांधा देकर जब लौटेगा,
खुद से कहेगा कि अफ़वाह है जिन्दगी।
ज़िंदगी के फलसफे़ को बखू़बी बयां करती पंक्तियां मुझे बेहद अच्छी लगीं।
आदरणीय वर्मा साहब,
सबसे पहले तो नववर्ष की शुभकामनायें।
जिन्दगी की मशरूफियों ने भुलाये रक्खा
वर्ना अफवाहों की सच्चाई जानते थे हम
बस जिन्दगी का एक अफवाह होना छू गया दिल को बहुत सुन्दर बात कही है, यह तो बस आपके ही बस की बात है।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
क्षमाप्रार्थी हूँ कि संपर्क की जीवंतता नही बरकरार रख पाया।
well defined life! :)
बाऊ जी,
नमस्ते!
हम तो यही कहेंगे कविता पढ़ने के बाद:
खूबसूरत कल्पना का प्रवाह है ज़िंदगी!
आनंद! आनंद! आनंद!
आशीष
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हमहूँ छोड़ के सारी दुनिया पागल!!!
वर्मा जी अब ग़ज़ल में भी कलम तोड़ने लगे .....?
ज़नाजे को कांधा देकर जब लौटेगा
खुद से कहेगा कि अफ़वाह है जिन्दगी
सुभानाल्लाह ......!!
आशिक युगल से पूछ कर तो देखिये
कह देंगे इक-दूजे से विवाह है जिन्दगी
ऊन्हुंक .....गलत ........
आजकल के आशिक यूँ नहीं कहते......
आशिक युगल से पूछ कर तो देखिये
कहेंगे जवानी की मौजगाह है ज़िन्दगी .....
जरूरतें जब मुँह बाये खड़ी होती हैं
यूँ लगता है कि तनख़्वाह है जिन्दगी
वाह ! वाह! क्या शेर कहा है!
पूरी ग़ज़ल खूबसूरत है...........बार बार पढने का मन होता है.
जरूरतें जब मुँह बाये खड़ी होती हैं
यूँ लगता है कि तनख़्वाह है जिन्दगी...
ज़नाजे को कांधा देकर जब लौटेगा
खुद से कहेगा कि अफ़वाह है जिन्दगी...
वाह !! ... पंक्तियों ने दिल जीत लिया ... बहुत खूब वर्मा जी...
बहुत गहरी बात कहदी वर्मा जी, बधाई।
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डा0 अरविंद मिश्र: एक व्यक्ति, एक आंदोलन।
एक फोन और सारी समस्याओं से मुक्ति।
कितनी सरलता से आज का सच बयां कर दिया है . तन्ख्ह्वाह आज का पहला शर्त हो गया है .....और जरुरी भी ..भले ही जीना मज़बूरी हो . बहुत सटीक ..सुन्दर रचना ..बधाई
आदरणीय वर्मा साहब,
पेड़ के ठूंठ बनने की प्रक्रिया से गुजरते हुये केवल आदमी का निर्मम और मतलबी चेहरा ही सामने आया। शायद पेड़ों की दाता बनने रहने की प्रवृत्ती ही आज उनके निर्मूलन के लिये दोषी है। काश कि पेड़ भी निर्मम हो पाते.......
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
कवितायन
चौराहों पर दम तोड़ती इंसानियत से
रूबरू औ’ चश्मदीद गवाह है जिन्दगी.
दिल को छू लेने वाली एक बेहतरीन रचना...संवेदनाओं से निहित ऐसी रचना बहुत कम पढ़ने को मिलती है..वर्मा जी आपका बहुत बहुत आभार
बहुत सुन्दर ....
गणतंत्र दिवस के पावन अवसर पर आप को ढेरों शुभकामनाये
जरूरतें जब मुँह बाये खड़ी होती हैं
यूँ लगता है कि तनख़्वाह है जिन्दगी
क्या बात है.....एकदम सही कहा....
इसी का तो इंतजार रहता है...कुछ समय सुकून से कटने के लिए
चौराहों पर दम तोड़ती इंसानियत से
रूबरू औ’ चश्मदीद गवाह है जिन्दगी
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जरूरतें जब मुँह बाये खड़ी होती हैं
यूँ लगता है कि तनख़्वाह है जिन्दगी
.kya baat kahi ,man ko chhoo gayi ,ati uttam .
जिन्दगी इतने शेड्स लिए चलती है बड़ी बदचलन सी लगती है !
दिल को छू लेने वाली एक बेहतरीन रचना| धन्यवाद|
वर्माजी आपके ब्लॉग पर आकर आना वसूल हो जाता है ।
जिंदगी को अफवाह कहना बडा भला लगा ।
आपकी टिपण्णी और उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! बधाई!
बहुत खूब वर्मा जी आनंद आ गया ! शुभकामनायें !!
aapki rachna bahut dinon baad padhne aai hun ,
mere blog per updates nahin dikhata , pata nahin kyun....holi ki shubhkamnayen
बहुत सुन्दर कविता ! उम्दा प्रस्तुती! ! बधाई!
आपको एवं आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें!
शहर की रक्षा में तैनात है देखो
लुटेरों की टोली
बन्दूकें खून बहाकर कहती हैं
होली है होली
Uf! Kitna sahi hai!
Holikee anek shubhkamnayen!
होली रंगों के इस त्यौहार की हार्दिक शुभकामनाये।
jai baba banaras..............
होली के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ..
हकिकात से रूबरू कराती होली की तस्वीर रख दी आपने. बहुत ही सुंदर.
होली और नव वर्ष की शुभकामनाएँ.
वाह !! वर्माजी बहुत ही निराले अंदाज में बयान किया है हालाते हिंद!!!
भ्रष्टाचार, घूसखोरी का ताण्डव
कौरव की शरण में हैं पाण्डव
शहर की रक्षा में तैनात है देखो
लुटेरों की टोली
वाह, मजा आ गया, अच्छा व्यंग्य है।
होली पर्व की अशेष हार्दिक शुभकामनाएं।
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