Friday, November 26, 2010

हर दाने के नीचे एक जाल होता है ~~



हर लहू का रंग तो लाल होता है

फिर भी क्यूँ इतना सवाल होता है

.

कातिलों ने नया दस्तूर निकाला है

पहलू में इनके कोतवाल होता है

.

किसी के लिये मातम का दिन है

किसी के लिये कार्निवाल होता है

.

इंसाँ-इंसाँ करीब होना तो चाहता है

मज़हब पर बीच में दीवाल होता है

.

मासूम परिन्दे ये जानते तो नहीं हैं

हर दाने के नीचे एक जाल होता है

52 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

हर लहू का रंग तो लाल होता है
फिर भी क्यूँ इतना सवाल होता है .

बहुत सुन्दर पंक्तियाँ ...जानते हुए भी लोंग इस बात को नहीं स्वीकारते ..

पूरी गज़ल बहुत अच्छी

महेन्‍द्र वर्मा said...

मासूम परिन्दे ये जानते तो नहीं हैं
हर दाने के नीचे एक जाल होता है

गहरे अर्थों को अभिव्यक्त करता सुंदर शेर।
प्रभावशाली ग़ज़ल के लिए बधाई, एम,वर्मा जी।

AMAN said...

बहुत सुन्दर गज़ल
वाह ....

डॉ टी एस दराल said...

किसी के लिये मातम का दिन है
किसी के लिये कार्निवाल होता है

यही दुनिया की रीत है ।
भावपूर्ण रचना ।

honesty project democracy said...

इंसान की हालत भी आज शरद पवार,सोनिया गाँधी,मनमोहन सिंह तथा प्रतिभा पाटिल जैसों ने एक परिंदे की तरह बना दिया है जिससे इंसानों को जिन्दगी की हर सुबह एक जाल और फंदे को काटने में बितानी पर रही है.....

Razia said...

इंसाँ-इंसाँ करीब होना तो चाहता है
मज़हब पर बीच में दीवाल होता है
सुन्दर गज़ल

अनामिका की सदायें ...... said...

बहुत प्रभावशाली गज़ल.

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

‘हर लहू का रंग तो लाल होता है’
फिर बहने पर इतना क्यूं बवाल होता है????

Sunil Kumar said...

कातिलों ने नया दस्तूर निकाला है
पहलू में इनके कोतवाल होता है
बहुत अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई,

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

मासूम परिन्दे ये जानते तो नहीं हैं

हर दाने के नीचे एक जाल होता है

--

बहुत ही प्यारे शेर हैं!

Parul kanani said...

kya khoob keha..

आपका अख्तर खान अकेला said...

bhut khub nye andaaz men hqiqt byan kr di he mubark ho. akhtar khan akela kota rajsthan

ktheLeo (कुश शर्मा) said...

वाह! सरल और प्रभावी बात, सुन्दर लफ़्ज़ों में!

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

इंसाँ-इंसाँ करीब होना तो चाहता है

मज़हब पर बीच में दीवाल होता है

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Bahut khoob verma sahaab, hakeekat bayaan kartee rachnaa

निर्मला कपिला said...

कातिलों ने नया दस्तूर निकाला है

पहलू में इनके कोतवाल होता है
वर्मा जी गज़ब का शेर है। पूरी गज़ल ही बहुत अच्छी लगी। बधाई।

ZEAL said...

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किसी के लिये मातम का दिन है

किसी के लिये कार्निवाल होता है...

उम्दा, सार्थक ग़ज़ल !

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वाणी गीत said...

मासूम परिंदे नहीं जानते हर दाने के पीछे जाल होता है ...
कातिलों ने नया दस्तूर निकाला है , पहलू में इनके कोतवाल होता है ...
सटीक ... हकीकत को बयान कर दिया !

रंजू भाटिया said...

किसी के लिये मातम का दिन है
किसी के लिये कार्निवाल होता है

वाह बहुत खूब ...बहुत बढिया लिखा है आपने

डॉ. मोनिका शर्मा said...

किसी के लिये मातम का दिन है
किसी के लिये कार्निवाल होता है

बेहतरीन.....बहुत अच्छी गज़ल बधाई....

रश्मि प्रभा... said...

मासूम परिन्दे ये जानते तो नहीं हैं

हर दाने के नीचे एक जाल होता है... satya ko ukerti gahan rachna

अजय कुमार said...

सटीक और उम्दा गजल,बधाई ।

संजय भास्‍कर said...

आदरणीय वर्मा जी।
नमस्कार !
ला-जवाब" जबर्दस्त!!
...प्रभावशाली ग़ज़ल के लिए बधाई

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) said...

हर दाने के नीचे एक जाल भी होता है.----- कितनी गहरी बातें कह गए आप इस पोस्ट में.

सुज्ञ said...

सार्थक अभिव्यक्ति

मासूम परिन्दे ये जानते तो नहीं हैं,
हर दाने के नीचे एक जाल होता है।

गहन प्रभावशाली ग़ज़ल!! बधाई,
आभार!!

कडुवासच said...

इंसाँ-इंसाँ करीब होना तो चाहता है
मज़हब पर बीच में दीवाल होता है
... behad prasanshaneey abhivyakti !!!

vandana gupta said...

गज़ल का हर शेर लाजवाब ………………बेहतरीन, दिल मे उतरता हुआ।

Arvind Mishra said...

वाह ,जोरदार

Dr Xitija Singh said...

हर लहू का रंग तो लाल होता है

फिर भी क्यूँ इतना सवाल होता है

.

कातिलों ने नया दस्तूर निकाला है

पहलू में इनके कोतवाल होता है

.

मासूम परिन्दे ये जानते तो नहीं हैं

हर दाने के नीचे एक जाल होता है

त खूब ... पूरी ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी ... पर ये तीन शेर कमाल के लिखे हैं ... आभार

शरद कोकास said...

कार्निवाल का उत्सव के अर्थ मे प्रयोग गज़ल मे पहली बार देखा ।

M VERMA said...

kshama has left a new comment on your post " हर दाने के नीचे एक जाल होता है ~~
मासूम परिन्दे ये जानते तो नहीं हैं
हर दाने के नीचे एक जाल होता है
Pooree rachana nihayat khoobsoorat hai,lekin ye aakharee do panktiyan to gazab hain!

दीपक बाबा said...

@मासूम परिन्दे ये जानते तो नहीं हैं
हर दाने के नीचे एक जाल होता है

वर्मा जी, कमाल का लेखन है......
पता नहीं क्यों जब भी किसी 'दाने' को देखते हैं तो पहले जाल का ध्यान आता है.

Shah Nawaz said...

मासूम परिन्दे ये जानते तो नहीं हैं
हर दाने के नीचे एक जाल होता है


एक से बढ़कर एक अश`आर... बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल... बेहद खूबसूरत!



प्रेमरस.कॉम

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

मासूम परिन्दे ये जानते तो नहीं हैं
हर दाने के नीचे एक जाल होता है

वाह वर्मा जी क्या बढ़िया बात कह दी आपने ..
बहुत सुन्दर रचना !

Dorothy said...

मासूम परिन्दे ये जानते तो नहीं हैं
हर दाने के नीचे एक जाल होता है

गहन भावों की खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
सादर
डोरोथी.

Kailash Sharma said...

हर लहू का रंग तो लाल होता है

फिर भी क्यूँ इतना सवाल होता है..

गहन अनुभूति और भावों से पूर्ण अभिव्यक्ति..काश सभी लोग इस सच्चाई को पहचानते..

Anjana Dayal de Prewitt (Gudia) said...

इंसाँ-इंसाँ करीब होना तो चाहता है
मज़हब पर बीच में दीवाल होता है

har sher ek se ek khoobsurat... badhai!

Anonymous said...

मासूम परिन्दे ये जानते तो नहीं हैं
हर दाने के नीचे एक जाल होता है....

बेहतर ग़ज़ल...

प्रवीण पाण्डेय said...

हर दाने के नीचे जाल होता है, बहुत खूब व्यक्त किया है समाज का सत्य।

Anonymous said...

मासूम परिन्दे ये जानते तो नहीं है
हर दाने के नीचे एक जाल होता है ! जी बिलकुल मासूम और खूबसूरत चीजों को हम खोते जा रहें है !हर गजल कुछ खास बात कह रही है ! आभार !

रचना दीक्षित said...

हर एक शेर लाजवाब, हर एक बात खरी.

Satish Saxena said...

कमाल का असर छोड़ने वाली रचना ...शुभकामनायें आपको !

Asha Joglekar said...

बहुत सुंदर मार्मिक और सटीक भी ।

मासूम परिन्दे ये जानते तो नहीं हैं
हर दाने के नीचे एक जाल होता है
और
इंसाँ-इंसाँ करीब होना तो चाहता है
मज़हब पर बीच में दीवाल होता है

पहलू में कोतवाल वाला भी बहुत बढिया है । लगता है सारे ही शेर चुनने होंगे । बढिया गज़ल ।

Urmi said...

बहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखा है आपने ! हर एक पंक्तियाँ लाजवाब लगा! उम्दा प्रस्तुती!

सु-मन (Suman Kapoor) said...

bahut sundar...............

ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...

ग़ज़ल के हर शेर खूबसूरत बन पड़े हैं !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ

कविता रावत said...

हर लहू का रंग तो लाल होता है
फिर भी क्यूँ इतना सवाल होता है .
बहुत सुन्दर गज़ल

ZEAL said...

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संग कोई उम्र भर नहीं चलता है

खुद को तुम खुद के संग लिखो ...

वर्मा जी ,

हर पंक्ति लाजवाब है। जिंदगी का फलसफा समझती हुई बेहतरीन रचना ।

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Rahul Singh said...

लाजवाब है बादलों के नाम पतंग.

Manav Mehta 'मन' said...

bhut khoob....

Anonymous said...

bohot bohot hi shaandaar ghazal likhi hai sir....bilkul inqlaab si....pleasure reading u

Sanjay Grover said...

"हर दाने के नीचे एक जाल होता है"
yah to ek nayaa muhaavaraa hi de diya aapne. Gahraayi se vishleshan karne par waqayi aisa lagta hai.

Amrita Tanmay said...

बहुत सुन्दर