गुरुवार, 11 नवंबर 2010

वह अब तक जिन्दा ही कैसे था ?


प्रश्न यह नहीं कि

वह मरा कैसे,

प्रश्न यह है कि

वह अब तक

जिन्दा ही कैसे था ?

सुबह होने से पहले ही

जिसके लिये

शाम हो गयी

खुले गटर की

आदमकद साजिशें

कैसे नाकाम हो गयीं !?

आक्सीजन विहीन

हवाओं की आपूर्ति,

जीवन-विहीन

दवाओं की आपूर्ति,

आँकड़ों का बयान

हो गयी क्षतिपूर्ति.

अनुबन्धित व्यवस्था

गुनाह को पनाह

गिद्धों की निगाहें

लेती रहीं थाह

जीवन की लौ प्रतिपल

थरथराती रही

साँस फिर भी जाने कैसे

आती-जाती रही !


आज जब वह

बिना कफ़न

हो चुका है दफ़न

प्रश्न यह नहीं कि

वह् मरा कैसे,

प्रश्न यह है कि

वह अब तक

जिन्दा ही कैसे था ?

46 टिप्‍पणियां:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

आज जब वह

बिना कफ़न

हो चुका है दफ़न

प्रश्न यह नहीं कि

वह् मरा कैसे,

प्रश्न यह है कि

वह अब तक

जिन्दा ही कैसे था ?
सही बात है वर्मा साहब, बहुत कुरेद रहा है यह सवाल कि वह अब तक ज़िंदा कैसे था ?

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

मूल प्रश्न यही है..

वह अब तक
जिन्दा ही कैसे था ?

..पूरी व्यवस्था इस मूल प्रश्न से हमेशा आँख चुराती है। मरे का शोर गूँजता है, अधमरों को कौन पूछता है!

..जरूरी कविता के लिए बधाई स्वीकार करें।

संजय भास्‍कर ने कहा…

सत्य ... बहुत ही यथार्थ लिखा है .

सदा ने कहा…

आज जब वह

बिना कफ़न

हो चुका है दफ़न

गहन भावों के साथ बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

Dr Xitija Singh ने कहा…

बेहद संजीदा पोस्ट ... बहुत गहरी बात कही है आपने ... दिल सचमुच सोचने पर मजबूर है की वाकई वो अब तक जिंदा कैसे था..

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

`वह’ नहीं अब ‘हम’ कह सकते हैं :(

Aman Peace ने कहा…

सोचने को मजबूर करती रचना

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

व्यवस्था पर किया गया प्रश्न ....सच एक यक्ष प्रश्न की अभी तक जिया कैसे ....

Pratik Maheshwari ने कहा…

बेहतरीन कविता.. बहुत अच्छा लगा..

आभार

vandana gupta ने कहा…

बेहद गहन प्रश्न और सभी निरुत्तर ……………बेह्तरीन रचना सोचने को मजबूर करती है।

M VERMA ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
वाणी गीत ने कहा…

यक्ष प्रश्न !

समय चक्र ने कहा…

बेह्तरीन रचना...

रंजू भाटिया ने कहा…

बहुत गहराई से लिखी गयी रचना बहुत पसंद आई शुक्रिया

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

वर्मा जी की कवितायें एक नए चिंतन को जन्म देती हैं.. यह कविता उसी श्रेणी की कविता है..

M VERMA ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Razia ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना
मानवीय दर्द का बयान

रश्मि प्रभा... ने कहा…

per is ganbheer prashn per kaun chintan kerta hai !

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत सटीक प्रश्‍न !!

डॉ टी एस दराल ने कहा…

मार्मिक प्रश्न है । जिन्दा कैसे था ?
शायद भगवान भरोसे । बहुत कुछ भगवान भरोसे ही तो चल रहा है ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सोचने को विवश करती एक सशक्त रचना!

ज्योति सिंह ने कहा…

अनुबन्धित व्यवस्था

गुनाह को पनाह

गिद्धों की निगाहें

लेती रहीं थाह

जीवन की लौ प्रतिपल

थरथराती रही

साँस फिर भी जाने कैसे

आती-जाती रही !
ati sundar ,saans kaise aati jaati rahi -yah baat sochne par vivash karti hai bahut kuchh .

ज़मीर ने कहा…

बहुत ही सुन्दर रचना.

Unknown ने कहा…

सोचने को मजबूर करती रचना

Shah Nawaz ने कहा…

बेहद खूबसूरत रचना!



प्रेमरस.कॉम

बेनामी ने कहा…

प्यासा याद आ गई...मरे की क़ीमत है ज़िंदा को कौन पूछता है

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

सच में विचारणीय प्रश्न है इतनी अव्यवस्थाओं के बाद तो ? खुद पर भी ये सोच अनुकरणीय हो जाती है .

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

आज जब वह

बिना कफ़न

हो चुका है दफ़न

प्रश्न यह नहीं कि

वह् मरा कैसे,

प्रश्न यह है कि

वह अब तक

जिन्दा ही कैसे था
सुन्दर, चिन्तन करती मार्मिक रचना.

निर्मला कपिला ने कहा…

आज जब वह

बिना कफ़न

हो चुका है दफ़न

प्रश्न यह नहीं कि

वह् मरा कैसे,

प्रश्न यह है कि

वह अब तक

जिन्दा ही कैसे था ?
दिल को छू गयी रचना। बधाई।

कडुवासच ने कहा…

... bahut khoob ... behatreen !!!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहुत ही गहरा भाव आज उड़ेल दिया है आज। चिन्तन की एक नयी पहल।

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

सुंदर कटाक्ष...बहुत बढ़िया लिखी है आपने..प्रभावशाली रचना के लिए धन्यवाद

रानीविशाल ने कहा…

भाव प्रधान ...बहुत सार्थक प्रश्न करती रचना !!
अक्सर आपकी रचानों के तीखे व्यंग बहुत सटीक और सत्य होते है जिनकी कसक हर किसी को अपनी सी लगाती है . इसीलिए आपको पढ़ने का अपना मज़ा है
आभार

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

बहुत सुन्दर कविता...बधाई.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत ही ज्वलंत प्रश्न ... इंसान कितना जिविट है ... मेरता हुवा भी जीता रहता है ... समाज को आइना दिखा रही है आपकी रचना ..

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 16 -11-2010 मंगलवार को ली गयी है ...
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया

VIJAY KUMAR VERMA ने कहा…

बेहतरीन कविता.. बहुत अच्छा लगा..

Akanksha Yadav ने कहा…

संवेदनाओं को जागृत करती सुन्दर रचना..बधाई.


_________________
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तदात्मानं सृजाम्यहम् ने कहा…

मरे को जिंदा कर दिया..आपने। सवाल तो अपना भी यही है। जो मरा वो जिंदा कैसे था। यह कड़वा सत्य है। बेहद संवेदनशील व्यंग्य है।

रंजना ने कहा…

कितना सही कहा आपने........

सटीक प्रहार....सार्थक चिंतन....

अनुपमा पाठक ने कहा…

maarmik chitran...
vicharniya prasn karti sashakt rachna!

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

आश्चर्य तो यही है कि आज आदमी का कितना अंश ज़िन्दा रह पाता है और कितना मरने के पहले ही खत्म हो जाता है इसे कोई जान नहीं सकता .

Amrita Tanmay ने कहा…

मनोज जी , आपका ब्लॉग प्रभावी , यथार्थपरक , संदेशपरक , आकर्षक , सुन्दर .... है . आपकी सारी रचनाओं को मैंने पढ़ा .. सब के सब बहुत अच्छें है . आपको पढ़ना बहुत अच्छा लगा . बधाई स्वीकार करें ......आपने सही प्रश्न उठाया है कि ....वह अब तक जिन्दा ही कैसे है ? उम्दा रचना .....

Dr Xitija Singh ने कहा…

वर्मा जी ... आपके कमेन्ट के लिए शुक्रिया ... आप एक बहुत खूबसूरत शेर के साथ अपना कमेन्ट छोड़ कर आयें हैं ... एक गुज़ारिश है ... उसमें चंद शेर और जोड़ कर ग़ज़ल पूरी ज़रूर कीजियेगा ... शुक्रिया

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

वर्मा जी ,
पहले भी आई थी ....
टिपण्णी भी की थी ....लगता है सेंड नहीं हुई ....
कई दिनों से कम्पूटर ठीक से काम नहीं कर रहा .....
पहले आपकी आवाज़ नहीं सुनी थी आज सुनी .....
bahut achhi आवाज़ है ...और कविता ....mazdooron की aahon से lathpath .....
आपकी kavitayein hmesha smaaj से judi hoti hain .....

vijay kumar sappatti ने कहा…

varma ji

mujhe lagta hai ki maine apne jeevan me isse acchi kavita is subject par nbahi padhi .. apko hats off for this poem..

vijay
kavitao ke man se ...
pls visit my blog - poemsofvijay.blogspot.com