कई बार
और अक्सर
पूरी की पूरी व्यवस्था को
नकारने के बावजूद
न केवल उस व्यवस्था में बने रहने की
मज़बूरी होती है
वरन
व्यवस्था को व्यवस्थित करने में
धूरी बन जाना पड़ता है,
बहाने और समझौते
बन चुके हैं हमारी आदत
और हम खामोशी से देखते हैं
स्याह बादलों का जमघट
सिद्धांतो और आदर्शों की
अनवरत शहादत,
ऐसा भी नहीं कि
कोई प्रतिकार ही न हो
अक्सर हम
रात के सन्नाटे में
लच्छेदार शब्दों में
इन सबके ख़िलाफ रिसाले भी रचते हैं
सुबह होते ही
न जाने कैसे
इन रिसालों के स्वर
अनायास बदल जाते हैं,
बदले भी क्यूँ नहीं
पत्नी रोज़ ही तो
सामानों की लिस्ट पकड़ा देती है
लौटते समय बाज़ार से लाने के लिये.
और अक्सर
पूरी की पूरी व्यवस्था को
नकारने के बावजूद
न केवल उस व्यवस्था में बने रहने की
मज़बूरी होती है
वरन
व्यवस्था को व्यवस्थित करने में
धूरी बन जाना पड़ता है,
बहाने और समझौते
बन चुके हैं हमारी आदत
और हम खामोशी से देखते हैं
स्याह बादलों का जमघट
सिद्धांतो और आदर्शों की
अनवरत शहादत,
ऐसा भी नहीं कि
कोई प्रतिकार ही न हो
अक्सर हम
रात के सन्नाटे में
लच्छेदार शब्दों में
इन सबके ख़िलाफ रिसाले भी रचते हैं
सुबह होते ही
न जाने कैसे
इन रिसालों के स्वर
अनायास बदल जाते हैं,
बदले भी क्यूँ नहीं
पत्नी रोज़ ही तो
सामानों की लिस्ट पकड़ा देती है
लौटते समय बाज़ार से लाने के लिये.
38 comments:
sahi farmaya aisa hi kuchh haal hamara bhi hota hai.................
जबरदस्त प्रयोग.. रोजमर्रा की चीजों का कविता में सामना अच्छा लगा जी.. :)
Ittefaaq hai ki,aapka blog khul gaya..warna apnabhi nahi khol pa rahi hun!
Kayiyon ke dilki baat aapne khol dee..aur bakhoobi!
बहाने और समझौते
बन चुके हैं हमारी आदत
और हम खामोशी से देखते हैं..
वाह क्या बात कहा है आपने! हक़ीकत को आपने बखूबी शब्दों में बयान किया है! बेहद अच्छा लगा!
वर्मा जी इससे बचने का एक ही हल है घर खुद संभाल लीजिये / घर अगर पत्नी संभालेगी तो लिस्ट तो आपको पूरा करना ही होगा / आप सौभाग्यशाली हैं ,यहाँ तो कइयो को तो रकम की लिस्ट भी पूरी करनी परती है /
कितना सही कहा आपने .....
प्रभावशाली सुन्दर रचना...सदैव की भांति..
क्या बात है ... व्यवस्था में रहकर व्यवस्था के विरुद्ध विद्रोह ... यानि पानी में रहकर ... आपकी तो केवल लिस्ट पकडाती है, मेरी तो लिस्ट भी पकडाती है, और दुकान पहुँचने के बाद भी फोन पर ... अरे मैं ये भूल गई थी ... ये भी लाना और वो भी, और वो भी ...
अब का कहें ...
ekdam alag si kavita hai achchi lagi.
सुन्दर प्रयोग किया है. आदमी अपनी विवशता की खोल में रहने के लिये मजबूर है
वर्मा साहब , सर्वप्रथम एक बढ़िया रचना के लिए बधाई और अब खिंचाई ; पता है ऐसा क्यों होता है कि भाभी जी रोज लिस्ट पकड़ा देती है ? उसका कारण है आपका कंजूस नेचर ! हमारी तरह महीने के एक मुस्त रकम भाभीजी के हाथ मैं पकड़ा दीजिये फिर देखिये समस्या चुटकियों में सोल्व हो जायेगी !:)
आपकी इस पोस्ट को पढ़कर अपनी ही कविता कि चार लाईनें किखने का मन हो रहा है...
प्रश्न-पत्र गढती रहती है
वह मुझ से लड़ती रहती है.
सब्जी लाये, भूल गए क्या..!
चीनी लाये, भूल गए क्या..!
आंटा चक्की से लाना था
खली आये, भूल गए क्या..!
मुख बोफोर्स बना कर मुझ पर
बम गोले जड़ती रहती है.
sunder prabhaavshali rachna.
यही तो जिन्दगी का फलसफा है!
अब हम लोग गृह मंत्रालय का काम नहीं करेंगे तो काम कैसे चलेगा भाई साहब।
व्यवस्था की धुरी बनकर,
व्यवस्था के ख़िलाफ
रिसाले लिखने का जुर्म न करने की मजबूरी
अंतिम पंक्तियों में नज़र आई है
एक नौकरी पेशा सरकारी नौकर की ज़ुबाँ पर पड़ा ताला
महज़ कागज़ का टुकड़ा ही तो है
पत्नी के हाथ की लिखी
रोज़मर्रा की शॉपिंग लिस्ट.
वर्मा जी... छू गई कविता दिल को!!
मतलब भविष्य में हमारे साथ भी कुछ ऐसा ही होने वाला है....
अदभुत.
रामराम.
बहुत सटीक चित्रण!!
यही तो आप की स्टाइल है सरल से सरल बातों को एक बेहतरीन कविता का रुप दे देते है..बढ़िया भाव..बधाई चाचा जी
और हम खामोशी से देखते हैं
स्याह बादलों का जमघट
सिद्धांतो और आदर्शों की
अनवरत शहादत
तीनों रचनाएँ बहुत बढ़िया....गहरी सोच को लिए हुए....
इस बारे में कोई मौलिक अनुभव तो नहीं लेकिन शायद इसीलिये कहते हैं कि "संसार माया है". "संसार बन्धन है".
यही है जीवन के सच की लिस्ट ।
बहुत ही प्रभावी रचना है..एक अलग सा शिल्प लिए
एक-एक शब्द बहुत कुछ कहता हुआ, बेहतरीन प्रस्तुति, आभार ।
lafzon ka tadka bhi kya khoob raha :)
behtareen
बहुत अच्छी प्रस्तुति. ये तो पता चल ही गया की लिस्ट का सामान तो लाते हैं. पर बीबियों की शिकायत जरा हजम नहीं हो रही है !!!!!!!
बहाने और समझौते
बन चुके हैं हमारी आदत
ये सच है ... जैसे की आपकी रचना का अंत सत्य है ... पत्नी रोज़ सुबह हक़ीकत में जीना सीखा देती है ...
सरल से सरल बातों को एक बेहतरीन कविता का रुप दे देते है..बढ़िया भाव..बधाई
कमाल की प्रस्तुति ....जितनी तारीफ़ करो मुझे तो कम ही लगेगी
लिस्ट में कुछ और जोड़ दूँ ......??
verma ji mughe bhi kucha magana tha list do kya .......
प्रभावशाली सुन्दर रचना..
बहाने और समझौते बन चुके हैं हमारी आदत और हम खामोशी से देखते हैं.....
प्रभावशाली सुन्दर रचना...
hakikat ka swaad kuch alag hi hota hai
kya kahne bhai vah. badhai.
सुन्दर प्रयोग
waah.. Kya baat hai
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