समय का घूमता पहिया. ब्लागिंग का एक वर्ष पूरा, फिर भी सब कुछ अधूरा. सफर अभी बाकी है. बीच राह में भी कुछ पल ठहरने का अलग ही आनन्द है. ठहरकर कुछ पल अब तक के सफर का आकलन और अवलोकन शायद आगामी सफर को एक नई दिशा प्रदान कर दे. सबसे पहले प्रथम गज़ल जो पोस्ट की (12/5/09):
लूट ली अस्मत उसकी .....
समय का चक्र चलता रहा. पोस्ट दर पोस्ट खट्टे-मीठे अनुभव (मीठे ज्यादा) झोली में डालता बढ़ता रहा. आज तक कुल 85 पोस्ट और आज 86वाँ पोस्ट, आप सबका स्नेह और हौसला बढ़ाती टिप्पणियाँ और इस क्रम में 100 समर्थकों का साथ. 100वे समर्थक :
और 101वीं समर्थक :
कुल टिप्पणियों का आँकड़ा 2000 से ज्यादा. इन सबसे बढ़कर ब्लागर मीटिंग्स में साझेदारी. समय के साथ अनुभवों की अगली खेप भी रोमांचक होगी इसी आशा के साथ सबका शुक्रिया. सफर के 365 दिनों अर्थात 12 महीनों अर्थात 1 वर्ष के बाद पुन: एक रचना समर्पित है आप सभी को.
हमारे घर की औरतें .... हमारे घर की औरतें
ऐसी नहीं हैं
हमारे घर की औरतें
वैसी भी नहीं हैं
हमारे घर की औरतों में सलीका है
उन्हें अपनी पहचान है
वे पढ़ी लिखी है
वे सुन्दर वस्त्र पहनती है
वे सुन्दर खाती है
गाहे-बगाहे वे दबे स्वर में
स्वांत: सुखाय गाती हैं
वे जानती हैं कि
घर से बाहर उन्हें नहीं जाना है
वे जानती हैं कि
ऊँची आवाज में बोलना असभ्यता है
वे जानती हैं कि उनकी हद कहाँ तक है
वे जानती हैं कि ---
हाँ वे जानती हैं कि ---
हमारे घर की औरतें
बच्चों के पीछे-पीछे भागती हैं
हमारे घर की औरतें पति के इंतजार में
सारी-सारी रात जागती हैं
हमारे घर की औरतें तो
शालीनता की पर्याय हैं
हमारे घर की औरतें तो गाय हैं
हमारे घर की औरतें ....
.
हमारे घर की औरतें
झीरी से आती रोशनी देख
बच्चों सा खुश हो जाती हैं
इन्हें सूरज मत दिखा देना.
54 comments:
Kya gazab karara vyang hai..! Goonjtee huee sachhayi..
म्हारे घर की औरते ....
बस-बस वर्मा जी , ज्यादा तारीफ़ लिखोगे तो लैपटॉप के सामने और आपके ठीक पीछे खडी भाभीजी रो पड़ेंगी सुनकर :)
बहुत खूब लिखा है भाई...
सत्य को शब्दों में बयान करना इतना आसान नहीं होता...
बहुत अच्छी प्रस्तुति.
वाह जी वाह !
आनन्द आ गया कविता पढ़ कर............
सचमुच शानदार रचना.........
बधाई !
ब्लागिंग का एक बर्ष पूरा होने पर बधाई
सुन्दर रचना
आनन्द आ गया कविता पढ़ कर...
ब्लागिंग का एक बर्ष पूरा होने पर बधाई
सुन्दर रचना
यह व्यंग्य के लहजे में तारीफ़ है या तारीफ के लहजे में व्यंग्य? समझ नहीं पाया.. पर इसीस बहाने एक सुन्दर कविता जन्मी. :) ब्लॉग की सालगिरह बाँध लीजिये बधाई.. नया रूप भी भाया ब्लॉग का.
Bahut bahut badhaai ...
Bshut hi achee rachna se ek varsh ko poora kiya hai aapne ... ghar ki aurten khush rahen to kitne hi varsh bloging ki duniya mein aasaani se nikal jaayenge ...
सरल शब्दों में भी शानदार रचनाएँ होती है आप हमेशा सिद्ध करते रहें है..आज भी बेहतरीन..बधाई
बहुत शानदार रचना...बस इसी मुगालते में ही जीती रहती हैं हमारे घर की औरतें ...
एक वर्ष के आंकड़ों के लिए बधाई
बहुत ही सुंदर कविता, आप का धन्यवाद
बहुत अच्छी पोस्ट
आपसे जुड़ कर अच्छा लगा
बहुत ही सुन्दर लिखा है आपने! उम्दा प्रस्तुती!
ब्लॉगिंग के एक वर्ष पूरे होने पर हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभ्ल्काम्नाएं !
आज भोजन में क्या प्राप्त हुआ: खीर पूड़ी :)
बहुत बेहतरीन रचना!!
वैसे भी एक वर्ष पूर्ण हुआ है जी, जन्म दिवस है ब्लॉग का.बहुत बधाई और अनेक शुभकामनाएँ.
एक विनम्र अपील:
कृपया किसी के प्रति कोई गलत धारणा न बनायें.
शायद लेखक की कुछ मजबूरियाँ होंगी, उन्हें क्षमा करते हुए अपने आसपास इस वजह से उठ रहे विवादों को नजर अंदाज कर निस्वार्थ हिन्दी की सेवा करते रहें, यही समय की मांग है.
हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में आपका योगदान अनुकरणीय है, साधुवाद एवं अनेक शुभकामनाएँ.
-समीर लाल ’समीर’
ब्लागिंग का एक बर्ष पूरा होने पर बधाई ...
सुन्दर रचना ....
सर्वप्रथम तो ब्लोगिंग का एक वर्ष पूर्ण होने की बधाई स्वीकार करें.
प्रस्तुत कविता से यह सीख मिलती है कि व्यंग्य लिखने के लिए शब्दों की बाजीगरी की कोई आवश्यकता नहीं है...
सीधी-सरल भाषा में सच्ची बात लिख दी जाय तो कितना सुन्दर व्यंग्य का रूप ले लेती है..!
..वाह! सुन्दर कविता के लिए भी बधाई.
....बेहतरीन रचना,प्रसंशनीय!!!
एक वर्ष के आंकड़ों के लिए बधाई
आपके समर्थक हज़ारों में हो ... बहुत सुन्दर रचना है ... नारी को हमेशा से ही एक वेदी पर चढाकर उसे बंदिनी बना कर रखा गया है ! आपकी पहली ब्लॉग पोस्ट भी बहुत सुन्दर और विचारोत्तेजक है!
ब्लॉगिंग के एक वर्ष पूरे होने पर हार्दिक बधाइयाँ . बहुत ही सुंदर कविता.
ब्लागिंग का एक बर्ष पूरा होने पर बधा॥
रचना बेहद शानदार है।
इस अवसर पर आपको बधाई!
रचना सरल और अच्छी है.
Bahut hi achha likha hai. Ek aur badhiya lekh hai:-
ईशवाणी हमारे कल्याण के लिए अवतरित की गई है , यदि इस पर ध्यानपूर्वक चिंतन और व्यवहार किया जाए तो यह नफ़रत और तबाही के हरेक कारण को मिटाने में सक्षम है ।
वेद:
समानं मन्त्रमभि मन्त्रये वः
मैं तुम सबको समान मन्त्र से अभिमन्त्रित करता हूं ।
ऋग्वेद , 10-191-3
कुरआन:
तुम कहो कि हे पूर्व ग्रन्थ वालों ! हमारे और तुम्हारे बीच जो समान मन्त्र हैं , उसकी ओर आओ ।
पवित्र कुरआन , 3-64 - शांति पैग़ाम , पृष्ठ 2, अनुवादकगण : स्वर्गीय आचार्य विष्णुदेव पंडित , अहमदाबाद , आचार्य डा. राजेन्द प्रसाद मिश्र , राजस्थान , सैयद अब्दुल्लाह तारिक़ , रामपुर
एक ब्रह्मवाक्य भी जीवन को दिशा देने और सच्ची मंज़िल तक पहुंचाने के लिए काफ़ी है ।
जो भी आदमी धर्म में विश्वास रखता है , वह यक़ीनी तौर पर ईश्वर पर भी विश्वास रखता है । वह किसी न किसी ईश्वरीय व्यवस्था में भी विश्वास रखता है । ईश्वरीय व्यवस्था में विश्वास रखने के बावजूद उसे भुलाकर जीवन गुज़ारने को आस्तिकता नहीं कहा जा सकता है । ईश्वर पूर्ण समर्पण चाहता है । कौन व्यक्ति उसके प्रति किस दर्जे समर्पित है , यह तय होगा उसके ‘कर्म‘ से , कि उसका कर्म ईश्वरीय व्यवस्था के कितना अनुकूल है ?
इस धरती और आकाश का और सारी चीज़ों का मालिक वही पालनहार है ।
हम उसी के राज्य के निवासी हैं । सच्चा राजा वही है । सारी प्रकृति उसी के अधीन है और उसके नियमों का पालन करती है । मनुष्य को भी अपने विवेक का सही इस्तेमाल करना चाहिये और उस सर्वशक्तिमान के नियमों का उल्लंघन नहीं करना चाहिये ताकि हम उसके दण्डनीय न हों । वास्तव में तो ईश्वर एक ही है और उसका धर्म भी , लेकिन अलग अलग काल में अलग अलग भाषाओं में प्रकाशित ईशवाणी के नवीन और प्राचीन संस्करणों में विश्वास रखने वाले सभी लोगों को चाहिये कि अपने और सबके कल्याण के लिए उन बातों आचरण में लाने पर बल दिया जाए जो समान हैं । ईशवाणी हमारे कल्याण के लिए अवतरित की गई है , यदि इस पर ध्यानपूर्वक चिंतन और व्यवहार किया जाए तो यह नफ़रत और तबाही के हरेक कारण को मिटाने में सक्षम है ।
आज की पोस्ट भाई अमित की इच्छा का आदर और उनसे किये गये अपने वादे को पूरा करने के उद्देश्य से लिखी गई है । उन्होंने मुझसे आग्रह किया था कि मैं वेद और कुरआन में समानता पर लेख लिखूं । मैंने अपना वादा पूरा किया । उम्मीद है कि लेख उन्हें और सभी प्रबुद्ध पाठकों को पसन्द आएगा
http://vedquran.blogspot.com/2010/05/blog-post.html
आनन्द आ गया कविता पढ़ कर.......
बहुत बहुत अच्छी प्रस्तुति......
एक वर्ष, 101 अनुयायी और इतनी सुन्दर कविता के लिये हार्दिक शउभकामनायें ।
dhanywad aap ka jo aap ne hme ye saubhagya diya
आपके वर्षगाँठ ब्लॉगपोस्ट पर आपको बधाई और साथ ही यह भी कि यह रचना बहुत सशक्त और मानसिकता को थरथरा देने वाली है, क्योंकि सच के बहुत क़रीब है।
इस अवसर पर आपको बधाई. बहुत शानदार रचना बहुत बहुत अच्छी प्रस्तुति
bahut accha likha hai
रचना सरल और अच्छी
प्रथम वर्षगांठ पर हार्दिक बधाई।
हमारे घर की औरतें झीरी
से आती रोशनी देख बच्चों सा खुश हो जाती हैं
इन्हें सूरज मत दिखा देना।
बहुत करारा व्यंग है ।
काश हमारे घर की औरतें बदल जाएँ....और अपने हिस्से का सूरज छीन लें समाज से !
ज्ञानदत्त और अनूप की साजिश को बेनकाब करती यह पोस्ट पढिये।
'संभाल अपनी औरत को नहीं तो कह चौके में रह'
ज्ञानदत्त और अनूप की साजिश को बेनकाब करती यह पोस्ट पढिये।
'संभाल अपनी औरत को नहीं तो कह चौके में रह'
शानदार रचना!
बढ़िया टेम्प्लेट!
बहुत-बहुत बधाई!
सरल शब्दों में सुंदर अभिव्यक्ति. बिलकुल स्पष्ट सा चित्र उकेर दिया है. बधाई.
bahut badhiya likha hai aapne
सब बहुत सुन्दर लगा! बहुत बधाई जी।
चर्चा मंच से आया हूँ , रोचक लगा ब्लॉग
आनन्द आ गया कविता पढ़ कर, बहुत अच्छी प्रस्तुति
http://madhavrai.blogspot.com/
http://qsba.blogspot.com/
सहज तरीके से दर्द और व्यंग्य की प्रस्तुति
Verma ji bahut bahut badhai...isee bahaane aapkee ek saal pehle kee wo pratham rachnaa padhee...dil khush ho gayaa..yoon hee likhte rahiye
upar se neeche tak ja pahuchi sabke comments padhte padhte aur ant me dekha ki apna rev.dalne ka source hi nahi dikh raha...nirash ho man me badhayi dene ki mansha dabaye laut hi rahi thi ki upar source dikha.
chalo mehnat aur ankho ne kuchh kamal dikhaya..
to ab meri badhayi le hi le pls. is anniversry ki.
rachna ka kya kahu...beshak ye ek vyangye rachna ho lekin hamari generation ki nari to inhi sab me jeeti aayi he.
बहुत बढ़िया बिंदास पोस्ट. आभार. समय का पहिया चलता रहेगा...की शुभकामनाओ के साथ..आभार
अच्छी प्रस्तुति। बधाई।
'हमारे घर की औरतें
झीरी से आती रोशनी देख
बच्चों सा खुश हो जाती हैं
इन्हें सूरज मत दिखा देना'
- ये औरतें देवी हैं, मनुष्य नहीं.
सच के बेहद करीब।
कैसे लिखेगें प्रेमपत्र 72 साल के भूखे प्रहलाद जानी।
इन्हें सूरज मत दिखा देना.....
गज़ब की बात और इशारा...लाजवाब...
वाह!"सच में" पर आपका स्नेह नहीं मिल रहा आज कल!
श्मशानी सफर और लोहबानी गन्ध
जिन्दगी के लिये मौत से अनुबन्ध
shandar matla ...behad khubsurat
वहशीपन का दबदबा, शिकायत क्यूँ
तुमने ही तो चुना था उष्णकटिबन्ध
waaaaaaaahhhhhhhhhhh
mere hisaab se baith-ul-ghazal..kya shandsar sher hai ...
in total achhi ghazal kahi aapne...
रिसते हुए रिश्तों की खुलती है गाँठ
पंचतारे लिख रहे गरीबी पर निबन्ध
सपने परोस दिया और क्या चाहिए
सच्चाई देखने पर लगा है प्रतिबन्ध
....... यथार्थपूर्ण सार्थक प्रस्तुति और
ब्लागिंग का एक बर्ष पूरा होने पर हार्दिक शुभकामनाएँ
रचना आनन्ददायक ।
बधाई ।
मनभावन रचना..अच्छी लगी..बधाई.
गरीबी पर निबंध..बहुत खूब...!!
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'शब्द-शिखर' पर- ब्लागिंग का 'जलजला'..जरा सोचिये !!
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