Sunday, April 25, 2010

कईसे खेतवा से बोझा ढोवाई (भोजपुरी)

हिलत नाहीं पेड़वा क डाल बा

गरमी से त जियरा बेहाल बा

कईसे खेतवा से बोझा ढोवाई

कईसे बतावा अब दऊरी दवाई

सूखाय गयल देखा इ ताल बा

हिलत नाहीं पेड़वा क डाल बा

गरमी से त जियरा बेहाल बा

.

झर गयल अमवा क टिकोरवा

कटहर चोराय लेहलेस चोरवा

कैसों रोटी क जुगाड़ हो गयल

त रीष गयल रहरी क दाल बा

हिलत नाहीं पेड़वा का डाल बा

गरमी से त जियरा बेहाल बा

.

उधार जिनगी क भार हो गयल

लहुरा लड़कवा बेमार हो गयल

मड़ई क छानी छवाई अब कईसे

बरधा के भी जड़ावे के नाल बा

हिलत नाहीं पेड़वा का डाल बा

गरमी से त जियरा बेहाल बा

29 comments:

मनोज कुमार said...

हमरा के बहुते बढ़िया कविता लागल। ई पढ़ि के जियरा जुड़ायल बा।

संजय भास्‍कर said...

अच्छी लगी आपकी कवितायें - सुंदर, सटीक और सधी हुई।

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

हालाँकि सारे पंक्ति समझ नहीं पाया ... पर कई समझ में आया ... और उत्तर भारतीय ग्राम्य जीवन का एक सजीव चित्र सामने पाया ...
अति उत्तम !

अमिताभ मीत said...

खूब बढियां ई कविता के हाल बा
पढ़ के हो गईल मनवां नेहाल बा

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

उधार जिनगी क भार हो गयल
लहुरा लड़कवा बेमार हो गयल
मड़ई क छानी छवाई अब कईसे
बरधा के भी जड़ावे के नाल बा


बहुत सुंदर अभिव्यक्ति वर्मा जी,
एक ग्रामीण छवि को प्रदर्शित करती हुई
आभार

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

yee garmee maa kaa gajab baat karat hai, varmaa ji

Urmi said...

वाह क्या बात है! सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार कविता! बधाई!

अजय कुमार said...

नीमन बा |

नेट की समस्या थी इसलिये ब्लाग जगत से दूर था

दिगम्बर नासवा said...

वाह वाह ... वाह वाह ... मस्त गीत है .. लहरा कर गाने का मन कर जाए ....

Razia said...

बहुत सुन्दर भोजपुरी गीत

राज भाटिय़ा said...

पुरी कविता तो समझ नही पाया लेकिन फ़िर भी जितनी समझ मै आई अच्छी लगी, चित्र बहुत अच्छा लगा.
धन्यवाद

कडुवासच said...

...भोजपुरी का अपना अलग ही आनंद है!!!

रवि कुमार, रावतभाटा said...

बेहतर...
मौसमी अभिव्यक्ति...

रज़िया "राज़" said...

उधार जिनगी क भार हो गयल लहुरा लड़कवा बेमार हो गयल
दर्दभरे सबद।

दीपक 'मशाल' said...

asani se samajh aane wali bhojpuri ka istemaal kar aapne sundar kavitt racha hai fir se Verma sir

Taarkeshwar Giri said...

Karejawa ke chu ke nikal gail.

स्वप्निल तिवारी said...

bahut badhiyaan likhle badeen aap ... garmi mehngai...kulhi ke baat kailen badi aap eh geet me..bada din baad mati ka khusbu milal ba...garmi ka baat karat va kavita lekin jiyra juda gayil...jaise inaar ka pani piye ke mil gayill...

अमित said...

भोजपुरी बहुतै मीठ बोली बा अऊर तोहार कवितओ बहुत निक बा !
बहुत दिनों के बाद भोजपुरी पढने को मिली... माँ को सुनाने जाता हूँ .
धन्यवाद !

Jyoti said...

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

गर्मी का वर्णन करता ये भोजपुरी गीत भा गया

kshama said...

हिलत नाहीं पेड़वा का डाल बा

गरमी से त जियरा बेहाल बा
Mai swayam ek gaanv me pali badhi hun, gramin jeewan se waqif hun...kisan ki beti hun..khoob achhese samajh sakti hun..kayi nazare aankhon ke aagese ghoom gaye..

Parul kanani said...

bhojpuri nahi aati..kuch kuch hi samjh aayi :)

Himanshu Pandey said...

गँवईं संवेदना मुखर हो गयी !
भोजपुरी में लिखी होकर यह रचना मेरी और भी प्रिय हो गई है !
गाँव के किसान की परेशानियाँ, उसके जीवन की दुश्वारियाँ, उसके मन की कचोट, अन्तर की टीस - सब कुछ अभिव्यक्त हो गया है इन कुछ पंक्तियों में !
आभार ।

rashmi ravija said...

बहुत ही बढ़िया,भोजपुरी रचना

Dimple Maheshwari said...

जय श्री कृष्ण...अति सुन्दर....बहुत खूब....बड़े खुबसूरत तरीके से भावों को पिरोया हैं...| हमारी और से बधाई स्वीकार करें..waise kuchh kuchh wordds smjh nhin aaye..par phor bhi achha lga...

Himanshu Mohan said...

बहुत अच्छी रचना है वर्मा जी। अद्भुत परिपक्वता है! सजीव चित्रण!

Alpana Verma said...

अरे वाह!
आप ने भी भोजपुरी में रचना लिखी!
गरमी से बेहाल हाल का वर्णन खूब किया--'कवितओ बहुत निक बा !' :)

अभी अभी सुलभ सतरंगी की लिखी भोजपुरी में ग़ज़ल पढ़ कर आ रही हूँ और अब यह गीत दोहरा आनंद आ गया.

बाल भवन जबलपुर said...

बहुत सुन्दर
शब्द चयन उम्दा भाव भी बेहरतीन

Prem Farukhabadi said...

Verma ji ,
bahut khoob. aisi rachnayen aur rachen .Badhai!!

हिलत नाहीं पेड़वा का डाल बा
गरमी से त जियरा बेहाल बा
pasu pakshi lage chhatpatane
सूखाय गयल देखा इ ताल बा
is pankti ko apni bhasha mein karen.