हिलत नाहीं पेड़वा क डाल बा
गरमी से त जियरा बेहाल बा
कईसे खेतवा से बोझा ढोवाई
कईसे बतावा अब दऊरी दवाई
सूखाय गयल देखा इ ताल बा
हिलत नाहीं पेड़वा क डाल बा
गरमी से त जियरा बेहाल बा
.
झर गयल अमवा क टिकोरवा
कटहर चोराय लेहलेस चोरवा
कैसों रोटी क जुगाड़ हो गयल
त रीष गयल रहरी क दाल बा
हिलत नाहीं पेड़वा का डाल बा
गरमी से त जियरा बेहाल बा
.
उधार जिनगी क भार हो गयल
लहुरा लड़कवा बेमार हो गयल
मड़ई क छानी छवाई अब कईसे
बरधा के भी जड़ावे के नाल बा
हिलत नाहीं पेड़वा का डाल बा
गरमी से त जियरा बेहाल बा
29 comments:
हमरा के बहुते बढ़िया कविता लागल। ई पढ़ि के जियरा जुड़ायल बा।
अच्छी लगी आपकी कवितायें - सुंदर, सटीक और सधी हुई।
हालाँकि सारे पंक्ति समझ नहीं पाया ... पर कई समझ में आया ... और उत्तर भारतीय ग्राम्य जीवन का एक सजीव चित्र सामने पाया ...
अति उत्तम !
खूब बढियां ई कविता के हाल बा
पढ़ के हो गईल मनवां नेहाल बा
उधार जिनगी क भार हो गयल
लहुरा लड़कवा बेमार हो गयल
मड़ई क छानी छवाई अब कईसे
बरधा के भी जड़ावे के नाल बा
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति वर्मा जी,
एक ग्रामीण छवि को प्रदर्शित करती हुई
आभार
yee garmee maa kaa gajab baat karat hai, varmaa ji
वाह क्या बात है! सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार कविता! बधाई!
नीमन बा |
नेट की समस्या थी इसलिये ब्लाग जगत से दूर था
वाह वाह ... वाह वाह ... मस्त गीत है .. लहरा कर गाने का मन कर जाए ....
बहुत सुन्दर भोजपुरी गीत
पुरी कविता तो समझ नही पाया लेकिन फ़िर भी जितनी समझ मै आई अच्छी लगी, चित्र बहुत अच्छा लगा.
धन्यवाद
...भोजपुरी का अपना अलग ही आनंद है!!!
बेहतर...
मौसमी अभिव्यक्ति...
उधार जिनगी क भार हो गयल लहुरा लड़कवा बेमार हो गयल
दर्दभरे सबद।
asani se samajh aane wali bhojpuri ka istemaal kar aapne sundar kavitt racha hai fir se Verma sir
Karejawa ke chu ke nikal gail.
bahut badhiyaan likhle badeen aap ... garmi mehngai...kulhi ke baat kailen badi aap eh geet me..bada din baad mati ka khusbu milal ba...garmi ka baat karat va kavita lekin jiyra juda gayil...jaise inaar ka pani piye ke mil gayill...
भोजपुरी बहुतै मीठ बोली बा अऊर तोहार कवितओ बहुत निक बा !
बहुत दिनों के बाद भोजपुरी पढने को मिली... माँ को सुनाने जाता हूँ .
धन्यवाद !
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
गर्मी का वर्णन करता ये भोजपुरी गीत भा गया
हिलत नाहीं पेड़वा का डाल बा
गरमी से त जियरा बेहाल बा
Mai swayam ek gaanv me pali badhi hun, gramin jeewan se waqif hun...kisan ki beti hun..khoob achhese samajh sakti hun..kayi nazare aankhon ke aagese ghoom gaye..
bhojpuri nahi aati..kuch kuch hi samjh aayi :)
गँवईं संवेदना मुखर हो गयी !
भोजपुरी में लिखी होकर यह रचना मेरी और भी प्रिय हो गई है !
गाँव के किसान की परेशानियाँ, उसके जीवन की दुश्वारियाँ, उसके मन की कचोट, अन्तर की टीस - सब कुछ अभिव्यक्त हो गया है इन कुछ पंक्तियों में !
आभार ।
बहुत ही बढ़िया,भोजपुरी रचना
जय श्री कृष्ण...अति सुन्दर....बहुत खूब....बड़े खुबसूरत तरीके से भावों को पिरोया हैं...| हमारी और से बधाई स्वीकार करें..waise kuchh kuchh wordds smjh nhin aaye..par phor bhi achha lga...
बहुत अच्छी रचना है वर्मा जी। अद्भुत परिपक्वता है! सजीव चित्रण!
अरे वाह!
आप ने भी भोजपुरी में रचना लिखी!
गरमी से बेहाल हाल का वर्णन खूब किया--'कवितओ बहुत निक बा !' :)
अभी अभी सुलभ सतरंगी की लिखी भोजपुरी में ग़ज़ल पढ़ कर आ रही हूँ और अब यह गीत दोहरा आनंद आ गया.
बहुत सुन्दर
शब्द चयन उम्दा भाव भी बेहरतीन
Verma ji ,
bahut khoob. aisi rachnayen aur rachen .Badhai!!
हिलत नाहीं पेड़वा का डाल बा
गरमी से त जियरा बेहाल बा
pasu pakshi lage chhatpatane
सूखाय गयल देखा इ ताल बा
is pankti ko apni bhasha mein karen.
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