Tuesday, April 20, 2010

याद करने लगे हैं लोग पिछला दंगा ~

जब आदमी फितरत से हो जाये नंगा
मत लेना तुम उससे भूलकर भी पंगा
.
वह तो जमीर बेचकर आया है भाई
उसे क्या वह पल में उठा लेगा गंगा
.
तोड़ता है क्योंकि वह खुद ही टूटा है
देखने में क्यूँ न दिखे वो भला-चंगा
.
सलीके की बात करता है देखिये तो
जिसकी जिन्दगी ताउम्र रही बेढंगा
.
अनजान लोग दिख रहे है शहर में
याद करने लगे हैं लोग पिछला दंगा

27 comments:

चिट्ठाचर्चा said...

आपका ब्लॉग बहुत अच्छा है. आशा है हमारे चर्चा स्तम्भ से आपका हौसला बढेगा.

kshama said...

अनजान लोग दिख रहे है शहर में

याद करने लगे हैं लोग पिछला दंगा
Kya gazab dhaya hai..kitni sachhaayi hai in shabdon me..

राज भाटिय़ा said...

गहरे भाव लिये है आप की यह कविता.
धन्यवाद

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

संजय भास्‍कर said...

देखिये तो जिसकी जिन्दगी ताउम्र रही बेढंगा . अनजान लोग दिख रहे है शहर में याद करने लगे हैं लोग पिछला दंगा


अंतिम पंक्तियाँ दिल को छू गयीं.... बहुत सुंदर कविता....

ओम आर्य said...

सलीके की बात करता है देखिये तो
जिसकी जिन्दगी ताउम्र रही बेढंगा

badhiya sher !

Prem Farukhabadi said...

Verma ji,
kamaal kii rachna.Badhaai!

Jyoti said...

बहुत सुंदर कविता....
.............

vandana gupta said...

वह तो जमीर बेचकर आया है भाई

उसे क्या वह पल में उठा लेगा गंगा

सच को बहुत ही सुन्दरता से बाँधा है…………।उम्दा प्रस्तुति।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

जब आदमी फितरत से हो जाये नंगा
मत लेना तुम उससे भूलकर भी पंगा

वाह , क्या सटीक बात कही है....आपकी एक और खूबसूरत गज़ल ..

Pushpendra Singh "Pushp" said...

bahut khub rachna
abhar...

नीरज गोस्वामी said...

वह तो जमीर बेचकर आया है भाई
उसे क्या वह पल में उठा लेगा गंगा

वाह...बेहद कमाल की ग़ज़ल...बधाई

नीरज

shama said...

जब आदमी फितरत से हो जाये नंगा

मत लेना तुम उससे भूलकर भी पंगा
Behad sundar! Aisa aadmi to bhayankar hota hai...

डॉ टी एस दराल said...

अनजान लोग दिख रहे है शहर में
याद करने लगे हैं लोग पिछला दंगा

गहरी बात ।
हमेशा की तरह सुन्दर रचना ।

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत खूब ।

Urmi said...

वह तो जमीर बेचकर आया है भाई
उसे क्या वह पल में उठा लेगा गंगा
तोड़ता है क्योंकि वह खुद ही टूटा है
देखने में क्यूँ न दिखे वो भला-चंगा
बहुत ही गहरे भाव के साथ आपने सच्चाई को बखूबी प्रस्तुत किया है! शानदार रचना!

Kulwant Happy said...

बिल्कुल सत्य की तस्वीर को उकेरा है ई पेपर पर।

नित्यानंद सेक्स स्केंडल के बहाने कुछ और बातें

पूनम श्रीवास्तव said...

अनजान लोग दिख रहे है शहर में

याद करने लगे हैं लोग पिछला दंगा

Bahut badhiya----aaj ke am adamee ke andar baithe khauf ka sundar chitran.

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

अनजान लोग दिख रहे है शहर में

याद करने लगे हैं लोग पिछला दंगा
bahut sarthak panktiyan---am adamee aj yahee soch kar dara hai....

रंजू भाटिया said...

सलीके की बात करता है देखिये तो जिसकी जिन्दगी ताउम्र रही बेढंगा ....बहुत सही बहुत पसंद आया यह ...शुक्रिया

Parul kanani said...

vo zameer bech aaya hai bhai...........sundar rachna!

दिगम्बर नासवा said...

अनजान लोग दिख रहे है शहर में
याद करने लगे हैं लोग पिछला दंगा

आपने तो ग़ज़ब की बात कह दी है वर्मा जी ... सटीक प्रहार है ....

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

बहुत सुन्दर ग़ज़ल है ! एक एक शेर बेहतरीन है !

अनजान लोग दिख रहे है शहर में
याद करने लगे हैं लोग पिछला दंगा

वाह जी ! लोगों के मन का डर आप बखूबी उभरे हैं ! आज समाज कि हालत ही ऐसी हो गयी है कि कोई किसी पर भरोसा नहीं कर सकता है !

कडुवासच said...

वह तो जमीर बेचकर आया है भाई
उसे क्या वह पल में उठा लेगा गंगा
.... बहुत खूब, प्रसंशनीय गजल!!!

sumit said...

Kaya baat hai
yaad aa gaya pichala danga

!!अक्षय-मन!! said...

bahut hi sarthak roop main kalam ki upyog ki hai aapne bahut hi accha likha hai......
samjhne wali baat hai.....

Satish Saxena said...

सदा भाषा में आम आदमी को अच्छी तरह समझाया है वर्मा जी ! सादगी में मज़ा आ गया