मुट्ठी में पर नारे हैं
*
चाँद जब ग्रहण में था
वे बोले क्या नज़ारे हैं
*
डूब गय साहिल पर ही
जितने कश्ती उतारे हैं
*
फूल से खिले हैं जो
मत छूना ये अंगारे हैं
*
जमीं पे पाँव रखते नहीं
चढ़े हुए जो पारे हैं
*
ताकि शिनाख़्त हो सके
हमने खुद को मारे हैं
*
क्षत-विक्षत मिल जायेंगे
सपने जो हमने सँवारे हैं
36 comments:
ताकि शिनाख्त हो सके ,
हमने खुद को मारे है
बहुत खूब, अति सुन्दर !
क्षत-विक्षत मिल जायेंगे
सपने जो हमने सँवारे हैं
अच्छी प्रस्तुति , गहरे भाव
वाह, सरल शब्दों में गहरे भाव सँवारे हैं।
बहुत गहरे भाव लिये है आप की यग रचना
चाँद जब ग्रहण में था
वे बोले क्या नजारे हैं ....
वाह...वाह......!!
चाँद जब ग्रहण में था वे बोले क्या नज़ारे हैं वाह खूब ...बहुत सुन्दर लिखा है आपने शुक्रिया
डूब गए साहिल पर ही जितने कश्ती उतारे हैं
गहरे भावों को चित्रित करती समसामयिक रचना. बहुत सुंदर वर्मा जी आभार.
is saat sheron me apne 7 sachchaiyon ko kaafi khubsurati aur lekhan ke ati kaushal se ujagar kiya hai..badhai...twitter ko dhanyavaad jisne yeh rachna padhne ka mauka diya..behtareen rachna
dushyant
chandmutthiashaar.blogspot.com
kabhi nazr-e-inayat farmaiyega..
bahut hi gahan abhivyakti.
वर्मा जी बहुत बहुत सुंदर रचना, शुभकामनाएं.
रामराम.
क्षत-विक्षत मिल जायेंगे
सपने जो हमने सँवारे हैं
चाँद जब ग्रहण में था
वे बोले क्या नजारे हैं .
वाह वाह वर्मा जी कमाल की गज़ल है बधाई
wah , verma ji behatareen rachna.badhaai.
आखिरी २ पंक्तियाँ बहुत प्रभावित करती हैं ....बहुत सुंदर रचना..
ताकि शिनाख़्त हो सके
हमने खुद को मारे हैं
*
क्षत-विक्षत मिल जायेंगे
सपने जो हमने सँवारे हैं
Kya gazab likha hai!
ताकि शिनाख़्त हो सके
हमने खुद को मारे हैं
बहुत ही गहरे भाव वर्मा जी-आभार
बहुत उम्दा प्रस्तुति वर्मा जी...
...बहुत सुन्दर !!!
rojmarra ki baton me se bahut hi kaamyab rachna nikaali aapne sir.. badhaai
Jai Hind...
वर्मा जी, आपको सैल्यूट...
जय हिंद...
wah vermaaji kyaa kahne!!!
lajwaab.
आपको और आपके परिवार को मकर संक्रांति की शुभकामनायें!
गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने बहुत सुन्दर रचना लिखा है! बधाई!
क्षत-विक्षत मिल जायेंगे
सपने जो हमने सँवारे हैं .....
सपने जो पूरे नही होते टूट जाते हैं .... बहुत ही लाजवाब छोटी बहर की ग़ज़ल है वर्मा जी ......... दिल से निकले हुवे शेर हैं .......................
चाँद जब ग्रहण में था
वे बोले क्या नजारे हैं ..
vah kya baat hai...gazel ka har sher lajawab chot karta hua.
"किस तरकश से निकले हैं - ये व्यंग्य-बाण?"
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ओंठों पर मधु-मुस्कान खिलाती, कोहरे में भोर हुई!
नए वर्ष की नई सुबह में, महके हृदय तुम्हारा!
संयुक्ताक्षर "श्रृ" सही है या "शृ", मिलत, खिलत, लजियात ... ... .
संपादक : सरस पायस
चाँद जब ग्रहण में था
वे बोले क्या नज़ारे हैं
waah kya baat hai verma ji, bahut khoob hai rachna .nav varsh par ek aalek dali hoon apne vichar se shobha badhaye kavyanjali pe .
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ।
बहुत खूब
क्या टिप्पणी दूं . हमेशा की तरह शानदार रचनायें. मार्मिक संवेदनशील.
अच्छी गजल.
यह शेर तो बेहद उम्दा है-
चाँद जब ग्रहण में था
वे बोले क्या नजारे हैं ..
..वाह.
सपनों का क्षत विक्षत होना,गम्भीर चिन्तन एवं भाव भी ।चांद को ग्रहण लगा था और उन्हे नजारे दिख रहे थे यही आलम है ""क्या कहीं फ़िर कोई बस्ती उजडी ,लोग क्यो जश्न मनाने आये
आपको और आपके परिवार को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!
achchi rachna
चाँद जब ग्रहण में था
वे बोले क्या नज़ारे हैं
wat a thinking
fantastic!
क्षत-विक्षत मिल जायेंगे
सपने जो हमने सँवारे हैं
Ye panktiyaan khas taur par bahut achchi lagi.Shubkamnayen.
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