Sunday, November 8, 2009

कुदाल से त्योरियां ~~

~~
रोटियाँ उगाने के लिये
धरती के माथे पर
खींचते रहे तुम
अनगिनत लकीरें;
लहलहा उठीं रोटियाँ
अधजली; अधपकी और
पकी रोटियाँ
वे तुम्हारे उगाये रोटियों में से
अधजली और अधपकी
तुम्हें खैरात में देते रहे,
और पकी रोटियों को
’स्विस बैंक’ का रास्ता दिखा दिया
तुम सपाट माथा लिये
चुपचाप देखते रहे; चमत्कृत से
रोटियों के सफर को.

तलाश में क्यों हो
किसी शिल्पकार की अगुवाई का
अपने कुदाल से
खुद ही क्यों नही खींच देते
अपने माथे पर
त्योरियों की लकीरें
ताकि तैनात कर सको
इन्हें हर उस रास्ते पर
जिनसे होकर
इन रोटियों का सफर होता है
~~

46 comments:

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

अधजली और अधपकी
तुम्हें खैरात में देते रहे
और पकी रोटियों को
’स्विस बैंक’ का रास्ता दिखा दिया
बहुत खुब वर्मा जी-यही हो रहा देश मे,एक नेता तो स्विस बैंक की लिफ़्ट मे ही मर गया था-याद है ना
-आभार

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

वे तुम्हारे उगाये रोटियों में से
अधजली और अधपकी
तुम्हें खैरात में देते रहे,
और पकी रोटियों को
’स्विस बैंक’ का रास्ता दिखा दिया
तुम सपाट माथा लिये
चुपचाप देखते रहे; चमत्कृत से
रोटियों के सफर को.

kya kahun ab ? aap to nishabd kar dete hain.....


behtareen lafzon ke saath ek ultimate kavita .....

दीपक 'मशाल' said...

Verma sir, bahut hi kamaal ki aur chamatkaari rachna hai ye, aasan nahin aisi soch viksit karna... karara thappad hai ye beimaanon ke naam par..
Jai Hind...

डॉ टी एस दराल said...

वे तुम्हारे उगाये रोटियों में से
अधजली और अधपकी
तुम्हें खैरात में देते रहे,
और पकी रोटियों को
’स्विस बैंक’ का रास्ता दिखा दिया

आपकी लेखनी को कोडा कोडा सलाम.

kshama said...

एक गीत याद आ गया ..हालाँकि उसका आपकी रचनासे सीधा ताल्लुक़ नही ...लेकिन वेदना के स्तरपे जैसी एक कचोट है , वो उस गीत में भी है ...'नन्हें मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है .." उसमे की निम्न लिखित पंक्तियाँ विशेष याद आ गयी :
" भीक में जो मोती मिले वो भी हमना लेंगे ....हमने क़िस्मत को बस में किया है .."काश हर कोई अपनी क़िस्मत को वश में कर पता ...हम बस मुँह तकते रह जाते हैं ..रोटी कोई अन्य ले जाता है..

विनोद कुमार पांडेय said...

prerana deti hui ek behtareen kavita..namskaar varma ji.

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

अधजली और अधपकी
तुम्हें खैरात में देते रहे,
और पकी रोटियों को
’स्विस बैंक’ का रास्ता दिखा दिया

वाह, बहुत सुन्दर !!

रश्मि प्रभा... said...

.........

anginat bhawon ko talwaar me parivartit kar diya aapne

Urmi said...

वाह वर्मा जी वाह ! अद्भुत रचना लिखा है आपने! हर एक पंक्तियाँ बेहद सुंदर है! उम्दा रचना !

Ambarish said...

वे तुम्हारे उगाये रोटियों में से
अधजली और अधपकी
तुम्हें खैरात में देते रहे,
और पकी रोटियों को
’स्विस बैंक’ का रास्ता दिखा दिया

तलाश में क्यों हो
किसी शिल्पकार की अगुवाई का
अपने कुदाल से
खुद ही क्यों नही खींच देते
अपने माथे पर
त्योरियों की लकीरें

kamaal hai.. kuch kahne ko nahi mere paas...

Yogesh Verma Swapn said...

और पकी रोटियों को
’स्विस बैंक’ का रास्ता दिखा दिया
तुम सपाट माथा लिये
चुपचाप देखते रहे; चमत्कृत से
रोटियों के सफर को.

wah verma ji , bahut karara vyangya/behatareen.

राज भाटिय़ा said...

वाह वाह क्या तीखा पन लिये हैआप की यह कविता,अधजली और अधपकी
तुम्हें खैरात में देते रहे
और पकी रोटियों को
’स्विस बैंक’ का रास्ता दिखा दिया
बहुत खुब जी
धन्यवाद

vandana gupta said...

waah ........bahut khoob .

Renu Sharma said...

roti ki keemat ke liye hum hi to jimmedar hain .
renu..

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सुन्दर रचना!
कल इसे चर्चा में लगा रहा हूँ!
http://anand.pankajit.com/

राजीव तनेजा said...

अधजली और अधपकी
तुम्हें खैरात में देते रहे
और पकी रोटियों को
’स्विस बैंक’ का रास्ता दिखा दिया

आपने सही कहा...आम जनता को ही जागरूक होना पड़ेगा

Razia said...

तलाश में क्यों हो
किसी शिल्पकार की अगुवाई का
अपने कुदाल से
खुद ही क्यों नही खींच देते
अपने माथे पर
त्योरियों की लकीरें
एक एक शब्द चुभते हुए और हिला देने वाले

वाणी गीत said...

पकी रोटियों को स्विस बैंक का रास्ता दिखने वालों का ...माथे पर चढी शिकन का कुदाल से मुकाबला .....अद्भुत काव्य शिल्प ...!!

Randhir Singh Suman said...

nice

सदा said...

अधजली और अधपकी
तुम्हें खैरात में देते रहे,
और पकी रोटियों को

बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति, आभार

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

रोटी की जददोजहद को बहुत सलीके से आपने शब्दों में पिरोया है। बधाई।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

शारदा अरोरा said...

वर्मा जी , टिप्पणी और बधाई के लिए बहुत बहुत धन्यवाद | आपकी ये नज्म , जहाँ तक मै समझ पा रही हूँ किसानों के लिए लिखी गयी है न ? बहुत अच्छी लिखी है |

हरकीरत ' हीर' said...

अधजली और अधपकी
तुम्हें खैरात में देते रहे
और पकी रोटियों को
’स्विस बैंक’ का रास्ता दिखा दिया...


बहुत खुब .....!!

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

Aapko janmdin ki bahut bahut badhai.........

देवेन्द्र पाण्डेय said...

वाह! बेहतरीन!
आक्रोश व्यक्त करने का यह अंदाज लाजवाब है!!

neelima garg said...

wow ..too good...

दिगम्बर नासवा said...

तलाश में क्यों हो
किसी शिल्पकार की अगुवाई का
अपने कुदाल से
खुद ही क्यों नही खींच देते
अपने माथे पर
त्योरियों की लकीरें.....

बहुत खूब कहा है वर्मा जी .......
ऐसे ही हालत रहे तो देश के राजनेता भारत माँ के माथे पर कुदाल चलाने में भी नहीं हिचकिचाएंगे ........

Satya Vyas said...

kishano ki badhali ka marmik chitran kiya hai apne.
hattz off.
satya

संजय भास्‍कर said...

बहुत सुन्दर !!
हर एक पंक्तियाँ बेहद सुंदर है!


संजय कुमार
हरियाणा
http://sanjaybhaskar.blogspot.com

रंजू भाटिया said...

सच्चाई को ब्यान करती है यह रचना ...बेहतरीन लिखा है आपने शुक्रिया

महेंद्र मिश्र said...

बहुत खूब!!

कविता रावत said...

Vartmaan katu yatharth ko bayan karti aapki rachana sachi or achhi lagi.
Shubhkanayen.

padmja sharma said...

रोटी उगाने वालेही रोटी से दूर हैं . रोटी के लिए तरसते हैं . अच्छा लिखा है .

निर्मला कपिला said...

वे तुम्हारे उगाये रोटियों में से
अधजली और अधपकी
तुम्हें खैरात में देते रहे,
और पकी रोटियों को
’स्विस बैंक’ का रास्ता दिखा दिया
तुम सपाट माथा लिये
चुपचाप देखते रहे; चमत्कृत से
रोटियों के सफर को.
क्या गहरी बात कही। कुछ दिन की अनुपस्थिती के लोये क्षमा चाहती हूँशुभकामनाये

Deepak Tiruwa said...

Khoobsurat rachna aur sarthak lekhan ke liye badhaayi

Sudhir (सुधीर) said...

तलाश में क्यों हो
किसी शिल्पकार की अगुवाई का
अपने कुदाल से
खुद ही क्यों नही खींच देते
अपने माथे पर
त्योरियों की लकीरें
ताकि तैनात कर सको
इन्हें हर उस रास्ते पर
जिनसे होकर
इन रोटियों का सफर होता है


वाह!! विचारों को जागते हुए पद्य को पढ़कर बहुत अच्छा लगा

Kusum Thakur said...

"वे तुम्हारे उगाये रोटियों में से
अधजली और अधपकी
तुम्हें खैरात में देते रहे,
और पकी रोटियों को
’स्विस बैंक’ का रास्ता दिखा दिया"

बहुत खूब !!

महावीर said...

वे तुम्हारे उगाये रोटियों में से
अधजली और अधपकी
तुम्हें खैरात में देते रहे,
और पकी रोटियों को
’स्विस बैंक’ का रास्ता दिखा दिया
बेहतरीन व्यंग्यात्मक रचना है. शब्द-चयन देखते ही बनता है.
महावीर

Neeraj Kumar said...

वर्मा साहब,
अति-उत्तम कविता, भावपूर्ण और प्रोत्साहित करने में सफल शब्द...

स्वप्न मञ्जूषा said...

Kamal ka likha hai aapne Verma ji...
mere shabd iski tareef mein saath nahi de paa rahe hain..
bas..

अभिषेक आर्जव said...

काश खुद ही लकीरे खिच जाती ! .......लेकिन आज नहीं तो कल खिचनी ही है.....खुद से ही या खुद ही किसी शिल्पकार को गढ़ कर....

पूनम श्रीवास्तव said...

अपने कुदाल से
खुद ही क्यों नही खींच देते
अपने माथे पर
त्योरियों की लकीरें
ताकि तैनात कर सको
इन्हें हर उस रास्ते पर
जिनसे होकर
इन रोटियों का सफर होता है

सचमुच आपने भारतीय किसान के पूरे जख्म को इन पन्क्तियों में उकेर दिया है।शुभकामनायें।
पूनम

अभिषेक आर्जव said...

“अवसाद के दिनों में सच” के संदर्भो को बिल्कुल सही पहचाना है आपने ! सारे चित्र बस वही हिन्दी डिपार्टमेन्ट के सामने से अंग्रेजी डिपार्टमेन्ट की तरफ आने वाले, दृश्य कला संकाय के ठीक पीछॆ वाले रास्ते पर टहलते हुये मस्तिष्क मे उपजे हैं !
(बी एड भी यही से किया है क्या आपने ? फिलहाल मैं कर रहा हूं !)

वन्दना अवस्थी दुबे said...

तलाश में क्यों हो
किसी शिल्पकार की अगुवाई का
अपने कुदाल से
खुद ही क्यों नही खींच देते
अपने माथे पर
त्योरियों की लकीरें
ताकि तैनात कर सको
इन्हें हर उस रास्ते पर
जिनसे होकर
इन रोटियों का सफर होता है
जोश जगाने वाली पंक्तियां.

Asha Joglekar said...

तलाश में क्यों हो
किसी शिल्पकार की अगुवाई का
अपने कुदाल से
खुद ही क्यों नही खींच देते
अपने माथे पर
त्योरियों की लकीरें
और तैनात कर दैते उन्हें उन रास्तों पर
जिनसे होकर इन रोटियों का सफर होता है

सच्चाई को कितनी शिदद्त से पेश किया है, बहुत सुंदर ।

निर्झर'नीर said...

gajab likha hai.
talkh haqiqat ko itne khoobsurat shabdo se sajaya hai ki barbas mukh se wah wah nikalta hai.
bandhai swikaren