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पीठ पीछे भी तुम एक आँख रखो
जेहन में अपने एक सलाख रखो
सबूत मांगेंगे लोग आग लगने का
अपने मुट्ठियों में तुम राख रखो
सूरज से गुफ्तगू करने निकले हो
सिर पर तुम दरख्त की शाख रखो
नामुमकिन है तुम्हारा बरी हो पाना
संग अपने सबूत बेशक लाख रखो
चल रहे तीर दिल को छू न सकें
जिस्म के आर-पार एक सुराख रखो
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34 comments:
क्या बात है-हर शेर दाद के काबिल.
बढिया लिखा आपने !!
wah verma ji, jism ke aar paar ek soorakh rakho. bahut khoob sabhi sher umda. badhai.
varmaaji..........mubaaraq ho.....
aflaatoon gazal..........
raakh ka jawaab nahin
badhaai dil se.......
सबूत मांगेंगे लोग आग लगने का
अपने मुट्ठियों में तुम राख रखो
लाजवाब हर शेर काबिले तारीफ है बधाई
चल रहे तीर दिल को छू न सकें
जिस्म के आर-पार एक सुराख रखो
जिस्म मे सुराख -- वाह क्या कहने
बहुत खूबसूरत == हर शेर बेहतरीन
वाह लाजवाब !!
सुराख करवा ही लेता हूँ अब तो
दुकान बता दैंगे प्लीज
सबूत मांगेंगे लोग आग लगने का
अपने मुट्ठियों में तुम राख रखो
बहुत बढ़िया शेर हैं।
जिन्दाबाद!
सबूत मांगेंगे लोग आग लगने का
अपने मुट्ठियों में तुम राख रखो
लाजवाब शेर काबिले तारीफ है बधाई
हर शेर लाजवाब ....!!
काफी दिनों बाद आपका लिखा हुआ ख़ूबसूरत रचना पढने को मिला! बहुत बढ़िया और शानदार रचना लिखा है आपने! इस लाजवाब और बेहतरीन रचना के लिए ढेर सारी बधाइयाँ!
अच्छी रचना, उम्दा शब्द। बढि़या, उम्दा प्रस्तुति।
चल रहे तीर दिल को छू न सके जिस्म के आर पार एक सुराख़ रखो ..नामुमकिन है ऐसे शेर पढ़कर भी दाद ना देना..!!
namumkin hai baree hona,saboot lakh rakho......sahi kaha
चल रहे तीर दिल को छू न सकें
जिस्म के आर-पार एक सुराख रखो
एक एक शेर जैसे नगीने सा जड़ा गया हो ग़ज़ल मे..बेहतरीन
उम्दा ग़ज़ल....बहुत बहुत बधाई....
सबूत मांगेंगे लोग आग लगने का
अपने मुट्ठियों में तुम राख रखो
नामुमकिन है तुम्हारा बरी हो पाना
संग अपने सबूत बेशक लाख रखो
एक एक शेर कमाल का .... लाजवाब, विद्रोह का स्वर उठाते, आक्रोश से भरे ........... लाजवाब वर्मा जी ....... कमाल की ग़ज़ल है .......... इतने दिनों बाद आपके ब्लॉग से .........
वाकई यह शेर बहुत खूबसूरत है--
सबूत मांगेगे लोग आग लगने का
अपने मुट्ठियों में तुम राख रखो
सबूत मांगेंगे लोग आग लगने का
अपने मुट्ठियों में तुम राख रखो
सूरज से गुफ्तगू करने निकले हो
सिर पर तुम दरख्त की शाख रखो
Bahut hee lajvaab sher !!!
Arthpoorn !!
नामुमकिन है तुम्हारा बरी हो पाना
संग अपने सबूत बेशक लाख रखो...bahut achhi rachna hai....tun kahi bhi rahe sar pe tere ilzam to hai....
ऐसी कैद तो हमको मंजूर है। जनाब..बहुत खूब लिखा है।
"Chal rahe teer dil ko chhoo na sake" ...
Bahut achchi Gazal
RC
सबूत माँगेंगे लोग आग लगने का
अपनी मुठ्ठियों में तुम राख रखो
बहुत ही बढिया, वर्मा साहब
आदरणीय वर्मा साहब,
हर एक शे’र उस्तादाना है।
क्या कहा है :-
सबूत मांगेंगे लोग आग लगने का
अपने मुट्ठियों में तुम राख रखो
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
आपकी कृपा रही तो मैं भी सीख लूंगा कुछ कहना।
सबूत मांगेंगे लोग आग लगने का
अपने मुट्ठियों में तुम राख रखो
sabse acchi line !!!
behterin !!
behterin !!
चल रहे तीर दिल को छू न सकें
जिस्म के आर-पार एक सुराख रखो
bahut hi sundar rachana
वर्मा जी, बहुत अच्छी लगी आपकी रचना विशेष रूप से यह शेर
सबूत मांगेंगे लोग आग लगने का
अपने मुट्ठियों में तुम राख रखो
सीधे दिल में उतरने वाली रचना
चल रहे तीर दिल को छू न सकें
जिस्म के आर-पार एक सुराख रखो
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सुन्दर! सम्भव है, मित्र?
its a beautiful gazal. a masterpiece!
सभी शेर एक से बढ़कर एक किसी एक की तारीफ करना दूसरे के साथ नाइंसाफी होगी, बधाई
wah! ek ek shabd bol raha hai..............
zinda shabdon ka jadoo kiya hai aapne..... is mein .....
"Ba-izzat baree honewalon
Jao zindgee ka
jashn manao..."
Nahee hote baree ham,to apne zameer se...kitna sach kaha...
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bahut sundar gajal hai.
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