
जिस्म तक नहीं भींगा, समुंदर खंगाल आए थे
सैकड़ो टुकड़ों में हैं जो ख़ुद को संभाल आए थे
बदन में उसके लहू का एक कतरा न मिला
देखिए किस कदर अपना लहू उबाल आए थे
गली के नुक्कड़ पर बैठा ख़ुद से बतियाता है
जिसको कुछ लोग दरिया में डाल आए थे
चित भी उन्हीं की है और पट भी उन्हीं की है
मुट्ठियाँ भर-भर कर सिक्का उछाल आए थे
मुट्ठियाँ भर-भर कर सिक्का उछाल आए थे
कैसे यकीन कर ले कि उन्हीं का बेटा मरा है
उसके नाम का तो सदका वे निकल आए थे
4 comments:
bhai kya baat hai
AAJ K DIN KI SABSE KHOOBSOORAT GHAZAL PADH KAR ANAND AA GAYA........
har she'r umda !
har she'r aafreen..................
बहुत खूब वर्मा भाई। खूबसूरत रचना। क्या बात है? जरा देखिये तो इसी खानदान की एक तात्कालिक तुकबंदी-
बेतरतीब जिन्दगी खुद की पर शराफत तो देखिये
अभी अभी दूसरे के घर को सम्भाल आये थे।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
वर्मा जी,बहुत ही बढिया गज़ल।बधाई स्वीकारें।
सभी शेर पसंद आये
खूबसूरत गजल
वीनस केसरी
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