शनिवार, 6 दिसंबर 2025

नकारे गये अस्तित्व की कहानी


वह टोटो चलाती है,

लोगों को 'मेट्रो स्टेशन'

छोड़कर आती है।

"अबे ओ-देखकर चल!" -

यह उसका जुमला है।

 

उसे गालियों से भी

परहेज नहीं है,

असल में गालियाँ

उसकी ढाल हैं, कवच हैं,

जिनसे वह

हर दिन टकराते

उस रूखे संसार को

थोड़ा-सा दूर रखती है।

 

वह इसके माध्यम से

अपने नकारे गये अस्तित्व की

कहानी सड़क पर लिखती है.

धूल-धक्कड़ में

अपने सपनों का नाम

धीरे-धीरे उकेरती है।

 

वह सड़क-संस्कृति को

आत्मसात कर चुकी है -

जानती है कि यहाँ

धीरे चलने वालों को

धक्का मिलता है,

और खामोश रहने वालों की

कोई सुनवाई नहीं होती।

 

वह जानती है -

डरकर नहीं -

लड़कर ही

अपना हक मिलता है।

उसके चेहरे पर

झिलमिलाता पसीना

उसकी जद्दोजहद का

सबसे खूबसूरत आभूषण है।

 

वह रोज साबित करती है -

कि एक औरत

सिर्फ गाड़ी ही नहीं चलाती -

अपने हिस्से की दुनिया भी

खुद चलाती है।

14 टिप्‍पणियां:

Razia Kazmi ने कहा…

Wah- बहुत सुंदर

M VERMA ने कहा…

धन्यवाद 😃

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत गहरी अभिव्यन्ति ... अंतर्मन को लिखा अहि स्त्री के ...

M VERMA ने कहा…

धन्यवाद

MANOJ KAYAL ने कहा…

सुन्दर सृजन

M VERMA ने कहा…

धन्यवाद

Digvijay Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द सोमवार 08 दिसंबर , 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

M VERMA ने कहा…

धन्यवाद

Aman Peace ने कहा…

Wow!

M VERMA ने कहा…

Thanks 😊

हरीश कुमार ने कहा…

बेहतरीन प्रस्तुति

M VERMA ने कहा…

धन्यवाद

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुंदर

M VERMA ने कहा…

Thanks 😊