Friday, April 19, 2019

लहरों से डरता हुआ तैराक ...


मत पूछिए ये दिल चाक-चाक क्यूँ है
एहसासों को पत्थर की पोशाक क्यूँ है?

हालात का तर्जुमा तुम्हारी निगाहों में है
फिर दर्द छुपाने पुरजोर फ़िराक क्यूँ है?

तुम्हारे आंकड़ों पर यकीन करें भी कैसे?
जहर भरा आखिर फिर खुराक क्यूँ है?

माना परिंदे छोड़े गए हैं उड़ान भरने को
नकेल से बंधी फिर इनकी नाक क्यूँ है?

खुद ही संभालो मत मांगो सहारा तुम
लहरों से डरा हुआ भला तैराक क्यूँ है?

6 comments:

  1. हालात का तर्जुमा तुम्हारी निगाहों में है
    दर्द को छुपाने की फिर फिराक़ क्यूँ है?
    ... वाह...बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...

    ReplyDelete

  2. जय मां हाटेशवरी.......
    आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
    आप की इस रचना का लिंक भी......
    21/04/2019 को......
    पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
    शामिल किया गया है.....
    आप भी इस हलचल में......
    सादर आमंत्रित है......

    अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
    https://www.halchalwith5links.blogspot.com
    धन्यवाद

    ReplyDelete
  3. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (21-04-2019)"सज गई अमराईंयां" (चर्चा अंक-3312) को पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    - अनीता सैनी

    ReplyDelete
  4. बहुत बढ़िया

    ReplyDelete
  5. हालात का तर्जुमा तुम्हारी निगाहों में है
    फिर दर्द छुपाने पुरजोर फ़िराक क्यूँ है?
    बहुत खूब !

    ReplyDelete
  6. पूरी गजल ही शानदार है ,बधाई हो नमन

    ReplyDelete