थियेटर हाऊसफुल है
लोग पागल हो रहे हैं
मेरे अभिनय को देखने के लिये
मैनें अपने अभिनय का
लोहा जो मनवा लिया है,
मैं रूदन में सिद्धहस्त हूँ
तभी तो दिलों में पैबस्त हूँ,
मैं रावण को मात देता हूँ
अट्टहास के मामले में,
मैं भावनाओं का प्रवाह कर देता हूँ
संत्रास के मामले में,
मैं जब डायलाग बोलता हूँ तो
सीटियाँ बजने लगती हैं
मेरे प्रणय निवेदन के अंदाज़ से
घंटियाँ बजने लगती हैं.
.
लोगों को क्या पता
मैं ये सब कर रहा हूँ
सिर्फ और सिर्फ
शाम की रोटियों की चिंता से
खुद को महफ़ूज रखने के लिये,
और फिर मेरा संचालन तो
नेपथ्य में बैठे
उस व्यक्ति के द्वारा हो रहा है
जिसकी संतुष्टि के बाद ही
उसकी जेब में ठुसे पड़े
नोटों के बंडल में से
कुछ नोट मेरी मुट्ठी में आयेंगे.
चित्रों में : मैं खुद उन दिनों
लोग पागल हो रहे हैं
मेरे अभिनय को देखने के लिये
मैनें अपने अभिनय का
लोहा जो मनवा लिया है,
मैं रूदन में सिद्धहस्त हूँ
तभी तो दिलों में पैबस्त हूँ,
मैं रावण को मात देता हूँ
अट्टहास के मामले में,
मैं भावनाओं का प्रवाह कर देता हूँ
संत्रास के मामले में,
मैं जब डायलाग बोलता हूँ तो
सीटियाँ बजने लगती हैं
मेरे प्रणय निवेदन के अंदाज़ से
घंटियाँ बजने लगती हैं.
.
लोगों को क्या पता
मैं ये सब कर रहा हूँ
सिर्फ और सिर्फ
शाम की रोटियों की चिंता से
खुद को महफ़ूज रखने के लिये,
और फिर मेरा संचालन तो
नेपथ्य में बैठे
उस व्यक्ति के द्वारा हो रहा है
जिसकी संतुष्टि के बाद ही
उसकी जेब में ठुसे पड़े
नोटों के बंडल में से
कुछ नोट मेरी मुट्ठी में आयेंगे.
चित्रों में : मैं खुद उन दिनों
बड़े अच्छे से अभिव्यक्त किया आपने.. अभिनय के चित्र देख कुछ याद गया.. इप्टा का समय अपना :)
ReplyDeleteअरे वाह, आप तो अभिनय भी करते हैं.
ReplyDeleteबढिया है, अभिनय जारी रखिए, बस खून खराबा मत करिए।
ReplyDeleteयह अभिनय किसी न किसी रूप में सबको करना पड़ता है रोटी के लिए वर्मा जी। सुन्दर भाव।
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
बहुत खूब वर्मा जी , एक और चरित्र का पता चला !
ReplyDeleteबहुत ही सार्थक कविता, बधाई।
ReplyDeleteअच्छी लगी - सुंदर, सटीक और सधी हुई।
ReplyDeleteबहुत खूब वर्मा जी । आप तो अच्छे अभिनेता निकले । अभी नेता भी बन सकते हैं । फिर देखिये खुद संचालक ही आपसे भीख मांगने लगेगा ।
ReplyDeleteवैसे जँच रहे हैं ज़नाब।
रंगमंच के कलाकार का दर्द , जीवन का सत्य...लिख दिया है.... आपकी कलाकारी के भी दर्शन हुए ...सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteअंतर्द्वन्द दिखाने वाले का अंतर्द्वन्द
ReplyDeleteशानदार रचना
सुन्दर और मार्मिक अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteकमाल है जी
ReplyDeleteअदभुत
बहुत बढिया
ReplyDeleteअभिनय के रंग भी दिखे
कलाकार का दर्द ,बयां कर दिया आपने
ReplyDeleteआपकी कलाकारी के भी दर्शन हुए ...सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर । कविता व अभिनय ।
ReplyDeleteजबरदस्त!
ReplyDeletemaarmik rachna...chitr bhi college ke din yaad dila gaye...
ReplyDeletebahut sundar vermaji
ReplyDeletehttp://sanjaykuamr.blogspot.com/
pahli baar khud ko parosa hai
ReplyDeleteवाह वर्मा जी वाह
ReplyDeleteक्या मुट्ठी है
पर मुट्ठी में पैसा हो तो
असली मुट्ठी तो तभी होती है
जैसे वर्मा जी ने आज
खोली है अपनी अभिनय की मुट्ठी।
रचना भी कमाल की और अभिन्य भी आभार्
ReplyDeleteगज़ब के भाव पिरोये है………एक कलाकार के दर्द को बखूबी उकेरा है।
ReplyDeleteHaan! kise pata hota hai,ki,tasveer ke peechhe kaunsa dard chhupa hai..chand alfaaz aur aapne tasveer kee doosari bazu dikha dee!
ReplyDeleteरचना सुन्दर है ! चित्र तो गज़ब ही हैं..अभिनय के ! इस कला में भी दक्ष हैं आप !
ReplyDeleteआभार ।
are waah aap abhineta bhi hain ...bahut sundar abhivyakti
ReplyDeleteहर किसी की चाबी किसी दूसरे के हाथ है .. यही तो जीवन है ... अच्छा लिखा है बहुत वर्मा जी ... अच्छी रचना ...
ReplyDeleteसच तो यही है भाई कि नाटक और कविताओं से पेट नहीं भरा जा सकता।
ReplyDeleteकभी मैं भी खूब थियेटर करता था।
आपके इस रूप से परिचय नहीं था...
ReplyDeleteअच्छी कविता के लिए भी धन्यवाद....
मैं रूदन में सिद्धहस्त हूँ
ReplyDeleteतभी तो दिलों में पैबस्त हूँ,
मैं रावण को मात देता हूँ
अट्टहास के मामले में,
-- आम आदमी के असमंजस का सटीक शब्दांकन।
जिसकी संतुष्टि के बाद ही
ReplyDeleteउसकी जेब में ठुसे पड़े
नोटों के बंडल में से
कुछ नोट मेरी मुट्ठी में आयेंगे.
kya baat hai ?sundar chitran
ek gaana yaad aa gaya ---aadmi ko diwana banati hai rotiya ....
चाचा जी पहले तो यह कहूँगा की लाज़वाब कविता है...मार्मिक और भावपूर्ण जो आज की सच्चाई भी बयाँ कर रही है....और दूसरी आज आपक अभिनय भी देखा..वाकई बेहतरीन ....आभार
ReplyDeleteअभी अभी चार्ली चैपलीन की जीवनी पढ़ी है इस कविता को पढकर वह याद आ गई । सार्थक कविता है यह ।
ReplyDeleteयह तो पता ही नहीं था, शुभकामनायें भाई जी !
ReplyDeleteभोगे हुए यथार्थ की अभिव्यक्ति जैसी सशक्त रचना !
ReplyDeleteमैं रूदन में सिद्धहस्त हूँ
ReplyDeleteतभी तो दिलों में पैबस्त हूँ,
मैं रावण को मात देता हूँ
अट्टहास के मामले में,
मैं भावनाओं का प्रवाह कर देता हूँ
वाह बहुत सुन्दर. आप भी इप्टा से जुड़े हैं क्या?
बहुत खूब, इस रचना के माध्यम से आपकी अभिनय क्षमता का भी ज्ञान हुआ, बेहतरीन प्रस्तुति, आभार ।
ReplyDeleteअंकल जी, आपने तो बहुत सही बात लिख दी. सब पैसे का कमाल है.
ReplyDeleteमैं रावण को मात देता हूँ
ReplyDeleteअट्टहास के मामले में,
शानदार रचना
सुंदर अभिव्यक्ति. सभी कलाकार की कला का आनंद लेते हैं उसके दर्द को कोई नहीं समझता.
ReplyDeleteगरीब तो रोज मरता है रोटियो की चिंता मै ......
ReplyDeleteमर्म को छूती अतिसुन्दर रचना....
ReplyDeleteआपके चित्रों से स्पष्ट है कि आप निश्चित ही कुशल अभिनेता होंगे...भाव भंगिमा बेजोड़ है...
wah wah! kya baat hai!
ReplyDeletelog on http://doctornaresh.blogspot.com/
i just hope u will like it!
सार्थक एवं संवेदना से भरपूर रचना है।
ReplyDeleteek zabadast abivyakti
ReplyDeletevaah vaah
varma ji ,
ReplyDeletebahut hi marmik likha hai aapne,
yahi sab to ho raha hai hamare aas -paas ,
कोशिश जारी है
ReplyDeleteफिर से उसे मौत की घाट
उतारने की,
उसे फिर मारा जायेगा
उसे फिर जिन्दा जलाया जायेगा
उसे फिर ......
उसे फिर ......
गज़ब कर जाते हैं आप हर बार ......!!
बेहद प्रभावशाली .....!!
vyastata aur asvasthata ke saat mahine baad aaj jab blog mein aai to sabse pahle aapkee kavita padee aapka abhinay aur kavita ka marm man ko chhu gayaa ab hamara safar jaaree rahega badhaii
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