Tuesday, June 15, 2010

शाम की रोटियों की चिंता ~~

थियेटर हाऊसफुल है
लोग पागल हो रहे हैं
मेरे अभिनय को देखने के लिये
मैनें अपने अभिनय का
लोहा जो मनवा लिया है,
मैं रूदन में सिद्धहस्त हूँ
तभी तो दिलों में पैबस्त हूँ,
मैं रावण को मात देता हूँ
अट्टहास के मामले में,
मैं भावनाओं का प्रवाह कर देता हूँ
संत्रास के मामले में,
मैं जब डायलाग बोलता हूँ तो
सीटियाँ बजने लगती हैं
मेरे प्रणय निवेदन के अंदाज़ से
घंटियाँ बजने लगती हैं.
.
लोगों को क्या पता
मैं ये सब कर रहा हूँ
सिर्फ और सिर्फ
शाम की रोटियों की चिंता से
खुद को महफ़ूज रखने के लिये,
और फिर मेरा संचालन तो
नेपथ्य में बैठे
उस व्यक्ति के द्वारा हो रहा है
जिसकी संतुष्टि के बाद ही
उसकी जेब में ठुसे पड़े
नोटों के बंडल में से
कुछ नोट मेरी मुट्ठी में आयेंगे.


image
चित्रों में : मैं खुद उन दिनों 

48 comments:

  1. बड़े अच्छे से अभिव्यक्त किया आपने.. अभिनय के चित्र देख कुछ याद गया.. इप्टा का समय अपना :)

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  2. अरे वाह, आप तो अभिनय भी करते हैं.

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  3. बढिया है, अभिनय जारी रखिए, बस खून खराबा मत करिए।

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  4. यह अभिनय किसी न किसी रूप में सबको करना पड़ता है रोटी के लिए वर्मा जी। सुन्दर भाव।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  5. बहुत खूब वर्मा जी , एक और चरित्र का पता चला !

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  6. बहुत ही सार्थक कविता, बधाई।

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  7. अच्छी लगी - सुंदर, सटीक और सधी हुई।

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  8. बहुत खूब वर्मा जी । आप तो अच्छे अभिनेता निकले । अभी नेता भी बन सकते हैं । फिर देखिये खुद संचालक ही आपसे भीख मांगने लगेगा ।

    वैसे जँच रहे हैं ज़नाब।

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  9. रंगमंच के कलाकार का दर्द , जीवन का सत्य...लिख दिया है.... आपकी कलाकारी के भी दर्शन हुए ...सुन्दर प्रस्तुति

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  10. अंतर्द्वन्द दिखाने वाले का अंतर्द्वन्द
    शानदार रचना

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  11. सुन्दर और मार्मिक अभिव्यक्ति!

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  12. कमाल है जी
    अदभुत

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  13. बहुत बढिया
    अभिनय के रंग भी दिखे

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  14. कलाकार का दर्द ,बयां कर दिया आपने

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  15. आपकी कलाकारी के भी दर्शन हुए ...सुन्दर प्रस्तुति

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  16. बहुत सुन्दर । कविता व अभिनय ।

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  17. maarmik rachna...chitr bhi college ke din yaad dila gaye...

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  18. pahli baar khud ko parosa hai

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  19. वाह वर्मा जी वाह
    क्‍या मुट्ठी है
    पर मुट्ठी में पैसा हो तो
    असली मुट्ठी तो तभी होती है
    जैसे वर्मा जी ने आज
    खोली है अपनी अभिनय की मुट्ठी।

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  20. रचना भी कमाल की और अभिन्य भी आभार्

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  21. गज़ब के भाव पिरोये है………एक कलाकार के दर्द को बखूबी उकेरा है।

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  22. Haan! kise pata hota hai,ki,tasveer ke peechhe kaunsa dard chhupa hai..chand alfaaz aur aapne tasveer kee doosari bazu dikha dee!

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  23. रचना सुन्दर है ! चित्र तो गज़ब ही हैं..अभिनय के ! इस कला में भी दक्ष हैं आप !
    आभार ।

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  24. are waah aap abhineta bhi hain ...bahut sundar abhivyakti

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  25. हर किसी की चाबी किसी दूसरे के हाथ है .. यही तो जीवन है ... अच्छा लिखा है बहुत वर्मा जी ... अच्छी रचना ...

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  26. सच तो यही है भाई कि नाटक और कविताओं से पेट नहीं भरा जा सकता।
    कभी मैं भी खूब थियेटर करता था।

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  27. आपके इस रूप से परिचय नहीं था...
    अच्छी कविता के लिए भी धन्यवाद....

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  28. मैं रूदन में सिद्धहस्त हूँ

    तभी तो दिलों में पैबस्त हूँ,

    मैं रावण को मात देता हूँ

    अट्टहास के मामले में,

    -- आम आदमी के असमंजस का सटीक शब्दांकन।

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  29. जिसकी संतुष्टि के बाद ही

    उसकी जेब में ठुसे पड़े

    नोटों के बंडल में से

    कुछ नोट मेरी मुट्ठी में आयेंगे.
    kya baat hai ?sundar chitran
    ek gaana yaad aa gaya ---aadmi ko diwana banati hai rotiya ....

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  30. चाचा जी पहले तो यह कहूँगा की लाज़वाब कविता है...मार्मिक और भावपूर्ण जो आज की सच्चाई भी बयाँ कर रही है....और दूसरी आज आपक अभिनय भी देखा..वाकई बेहतरीन ....आभार

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  31. अभी अभी चार्ली चैपलीन की जीवनी पढ़ी है इस कविता को पढकर वह याद आ गई । सार्थक कविता है यह ।

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  32. यह तो पता ही नहीं था, शुभकामनायें भाई जी !

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  33. भोगे हुए यथार्थ की अभिव्यक्ति जैसी सशक्त रचना !

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  34. मैं रूदन में सिद्धहस्त हूँ

    तभी तो दिलों में पैबस्त हूँ,

    मैं रावण को मात देता हूँ

    अट्टहास के मामले में,

    मैं भावनाओं का प्रवाह कर देता हूँ
    वाह बहुत सुन्दर. आप भी इप्टा से जुड़े हैं क्या?

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  35. बहुत खूब, इस रचना के माध्‍यम से आपकी अभिनय क्षमता का भी ज्ञान हुआ, बेहतरीन प्रस्‍तुति, आभार ।

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  36. अंकल जी, आपने तो बहुत सही बात लिख दी. सब पैसे का कमाल है.

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  37. मैं रावण को मात देता हूँ

    अट्टहास के मामले में,
    शानदार रचना

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  38. सुंदर अभिव्यक्ति. सभी कलाकार की कला का आनंद लेते हैं उसके दर्द को कोई नहीं समझता.

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  39. गरीब तो रोज मरता है रोटियो की चिंता मै ......

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  40. मर्म को छूती अतिसुन्दर रचना....
    आपके चित्रों से स्पष्ट है कि आप निश्चित ही कुशल अभिनेता होंगे...भाव भंगिमा बेजोड़ है...

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  41. wah wah! kya baat hai!

    log on http://doctornaresh.blogspot.com/

    i just hope u will like it!

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  42. सार्थक एवं संवेदना से भरपूर रचना है।

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  43. varma ji ,
    bahut hi marmik likha hai aapne,
    yahi sab to ho raha hai hamare aas -paas ,

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  44. कोशिश जारी है

    फिर से उसे मौत की घाट

    उतारने की,

    उसे फिर मारा जायेगा

    उसे फिर जिन्दा जलाया जायेगा

    उसे फिर ......

    उसे फिर ......

    गज़ब कर जाते हैं आप हर बार ......!!

    बेहद प्रभावशाली .....!!

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  45. vyastata aur asvasthata ke saat mahine baad aaj jab blog mein aai to sabse pahle aapkee kavita padee aapka abhinay aur kavita ka marm man ko chhu gayaa ab hamara safar jaaree rahega badhaii

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