समुंदर में वे पूरा शहर रखते हैं
हालात पर फिर नज़र रखते हैं
.
मरीज़ की हालत सुधरे भी कैसे
दवा की जगह वे ज़हर रखते हैं
.
कर रहे हैं होशों-हवास का दावा
कदम इधर, कभी उधर रखते हैं
.
हर बात में सूखे पत्ते सा कांपते हैं
कहते हैं कि शेर का जिगर रखते हैं
.
बड़े फख्र से फिर वही दुहराते हैं
दाव में बीबी-बच्चे, घर रखते हैं
.
वे ही मिले ख़बरों की सुर्खियों में
जो सारे ज़हान की ख़बर रखते हैं
.
सोते रहोगे कब तक, देखो तो
बिस्तरों पर वे अजगर रखते हैं
सोते रहोगे कब तक, देखो तो
ReplyDeleteबिस्तरों पर वे अजगर रखते हैं
कमाल का ख्याल है.
सोते रहोगे कब तक, देखो तो
ReplyDeleteबिस्तरों पर वे अजगर रखते हैं
Bahut sundar, Vistar ke neeche dhan kee potlee jo hotee hai
मरीज़ की हालत सुधरे भी कैसे
ReplyDeleteदवा की जगह वे ज़हर रखते हैं
हाय , मार डाला ।
हर बात में सूखे पत्ते सा कांपते हैं
कहते हैं कि शेर का जिगर रखते हैं
कागज़ी शेर ऐसे ही होते हैं ।
अच्छी लगी ये ग़ज़ल ।
एक छोटा सा प्रयास मैंने भी किया है ।
समुंदर में वे पूरा शहर रखते हैं
ReplyDeleteहालात पर फिर नज़र रखते हैं
.क्या बात है सर ... बढ़िया रचना...आभार
सोते रहोगे कब तक, देखो तो
ReplyDeleteबिस्तरों पर वे अजगर रखते हैं
कमाल का ख्याल है.
वाह ...बढ़िया रचना...आभार ।
मेरा शनि अमावस्या पर लेख जरुर पढे।आप की प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा ....आभार
http://ruma-power.blogspot.com/
waah sirji bahut khoob..lajawaab sher hai saare ke saare...
ReplyDeleteशानदार गज़ल
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सारे शेर लाजवाब
bahut badiya rachna hai
ReplyDeletevermaji, kahne ko, koi shabd nahin
http://sanjaykuamr.blogspot.com/
वर्तमान हालात का गज़ब का चित्रण किया है।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteगज़ब की लाजवाब रचना
ReplyDeleteआज के हालात का सुन्दर चित्रण.
पुरी ग़ज़ल ही एक एक हालत को बता रही है....बहुत अच्छी प्रस्तुति...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteहर बात में सूखे पत्ते सा कांपते हैं
ReplyDeleteकहते हैं कि शेर का जिगर रखते
बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल है...हर शेर जानदार
.क्या बात है सर ... बढ़िया रचना...आभार
ReplyDeleteहर बात में सूखे पत्ते सा कांपते हैं
ReplyDeleteकहते हैं कि शेर का जिगर रखते हैं
bahut pasand aaya
सोते रहोगे कब तक, देखो तो
ReplyDeleteबिस्तरों पर वे अजगर रखते हैं
...नया अंदाज है कहने का..बहुत खूब.
बिल्कुल ठीक विवरण है.. अजगर छोड़ दिया है कुंडली में लपेट रहा है...
ReplyDeleteहम तो अजगर देखने आये थे निराश होकर जा रहे हैं !
ReplyDeleteबेहद प्रसंशनीय गजल, बधाई !
ReplyDeleteबहुत अच्छा ।
ReplyDeletehalaato ko shabdo ki gahri chot dekar thoka hai...dekhna hai ki ab tasveer kaisi ho.
ReplyDeleteacchhi rachna.aabhar.
मरीज़ की हालत सुधरे भी कैसे
ReplyDeleteदवा की जगह वे ज़हर रखते हैं
Bahut Zabardast!
आदमी की भीड़ में, खोया हुआ है आदमी।
ReplyDeleteआदमी की नीड़ में, सोया हुआ है आदमी।।
आदमी घायल हुआ है, आदमी की मार से।
आदमी का अब जनाजा, जा रहा संसार से।।
इस गज़ल की ज़मीन ज़ुबां पर चढ़ने वाली है...
ReplyDeleteगज़ब के अश्आर कह गये हैं...
वाहवाह जी वाह....इतनी बेहतरीन ग़ज़ल इतने देर से पढ़ पाया...सुंदर भाव..
ReplyDeleteOh! Kya gazab rachna hai...! ispe kya tippanee dee jaye? Khamosh rahun,yahi behtar hai..
ReplyDeleteBehad sashakt rachna hai! Kaash aisa fan hame bhi haasil hota!
ReplyDeleteबढिया है।
ReplyDeleteमरीज़ की हालत सुधरे भी कैसे ...दवा की जगह वे ज़हर रखते हैं
ReplyDeleteआजकल लोग जहर से नहीं दवा से ही तो मरते हैं
कोई कब तक चैन से सो पाए ...बिस्तरों पर वो अजगर रखते हैं ...
वाह .....
जबरदस्त ग़ज़ल...
ReplyDeleteवाह वाह!
ReplyDeleteसोते रहोगे कब तक, देखो तो
बिस्तरों पर वे अजगर रखते हैं
-छा गये सर जी आप तो!! आनन्द आ गया/
सोते रहोगे कब तक, देखो तो
ReplyDeleteबिस्तरों पर वे अजगर रखते हैं
बढ़िया रचना...........
baap re....khyaal bach gaye
ReplyDeleteरचना क्यों न बने कालजयी वर्माजी,
ReplyDeleteदेकर दाद काव्य की कदर रखते हैं।
निर्मला कपिला has left a new comment on your post "तुम श्वासों की गति पर ध्यान न देना ~~":
ReplyDeleteकर रहे हैं होशों-हवास का दावा
कदम इधर, कभी उधर रखते हैं
.
हर बात में सूखे पत्ते सा कांपते हैं
कहते हैं कि शेर का जिगर रखते हैं
पूरी रचना लाजवाब है । शुभकामनायें
बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत सही कहा आपने...
ReplyDeleteवाह वाह वाह....लाजवाब...कमाल !!!
ReplyDeleteकोई एक शेर चुन न सकी...सभी के सभी लाजवाब हैं...
बहुत ही सुन्दर रचना... वाह !!!
बहुत सुन्दर गज़ल
ReplyDeleteअनुपम है आपकी लेखनी तरह तरह के ख़याल रखते है……………। बहुत अच्छी लगी यह रचना।
ReplyDeleteLaajawab, behtreen gazal.
ReplyDeleteदिल को छू गयी! बहुत ही सुन्दर और लाजवाब!
ReplyDeleteसोते रहोगे कब तक, देखो तो ।
ReplyDeleteबिस्तरों पर वे अजगर रखते हैं ॥
सजग कर दिया ।
wah wah......
ReplyDeleteमरीज़ की हालत सुधरे भी कैसे
ReplyDeleteदवा की जगह वे ज़हर रखते हैं
कमाल के शेर हैं सब ... हर शेर नया ही लगता है ... कहानी कहता हुवा ...
मरीज़ की हालत सुधरे भी कैसे दवा की जगह वे ज़हर रखते हैं . कर रहे हैं होशों-हवास का दावा कदम इधर, कभी उधर रखते हैं .
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर लगी ये पन्क्तियां !
वे ही मिले ख़बरों की सुर्खियों में
ReplyDeleteजो सारे ज़हान की ख़बर रखते हैं
Bahut khub likha hai.badhai.
bade kareene se samaj pe chot karte hai
ReplyDeletebahut accha likhte hai aap
kalam ko talwar sa chalate hai aap
वे ही मिले ख़बरों की सुर्खियों में
ReplyDeleteजो सारे ज़हान की ख़बर रखते हैं
सोते रहोगे कब तक, देखो तो
बिस्तरों पर वे अजगर रखते हैं
bahut belag bat ..
umda peshkas...
मरीज़ की हालत सुधरे भी कैसे
ReplyDeleteदवा की जगह वे ज़हर रखते हैं
badi sundarata se sach aur gahri baat kah gaye aap ,ati sundar .
बहुत अच्छी ग़ज़ल जीवन के यथार्थ को दर्शाती.हर एक बात लाज़वाब
ReplyDeleteबढिया गज़ल है ।
ReplyDeleteएक नवीन भाव लिए कविता |बधाई
ReplyDeleteआशा