Friday, April 23, 2010

क्योंकि वह शिक्षार्थी है

उसने समाजशास्त्र पढा

’समाजिक विकास मन्द होता है

इसके मूल में विचारों का द्वन्द होता है’

वह इस द्वन्द के अवलोकनार्थ

समाज में गया.

वहाँ वह अजब सी रीत पाया

सब कुछ नियम के विपरीत पाया

तीव्र विकास (या शायद विनाश);

अनैतिकता में आनन्द;

विचारहीन रक्त सने द्वन्द;

अनुबन्धों के अनुगामी;

घूमते कामी निर्द्वन्द

वह भागा

या शायद नींद से जागा

उसे भाने लगी कहानी

उसने इतिहास पढ़ने को ठानी

यहाँ कदम कदम पर उसे

स्वयंभू उल्लेख मिले

निर्दोषों की लाशों पर गड़े

अनगिन शिलालेख मिले

वह उकताया

फिर लौट आया.

वह कुछ और आगे बढ़ना चाहा

उसने अर्थशास्त्र पढ़ना चाहा

उसने पढ़ा

’बुरी मुद्रा अच्छी मुद्रा को

प्रचलन से निकाल बाहर करती है’

पर देखा कि

दोनों प्रकार की मुद्राएँ

नकली मुद्रा से डरती हैं

नकली मुद्रा के आते ही

दोनों प्रचलन से बाहर हो जाती है

अंततोगत्वा तीनों मिलकर

गरीबों पर ही जुल्म ढाती हैं

.

रोक नहीं पाया खुद को

क्योंकि वह शिक्षार्थी है

सुनते हैं कि आजकल वह

साहित्य का विद्यार्थी है

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28 comments:

  1. बहुत ही व्यंगात्मक रचना है ! ये सच है की आज हर जगह फैली भ्रस्ताचार है ... और आप किसी भी विधा की शिक्षार्थी हों ... आप जब हकिकात की दुनिया में जायेंगे तो यही पाएंगे ...

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  2. बहुत करारा कटाक्ष..वाह!

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  3. वर्मा जी अर्थशास्त्री और समाजशास्त्री दोनों के मनोभाव का बहुत खूब वर्णन किया...बढ़िया रचना ..बधाई

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  4. सुनते हैं कि आजकल वह
    साहित्य का विद्यार्थी है
    ---वाह! यह सुंदर कटाक्ष है.

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  5. रोक नहीं पाया खुद को
    क्योंकि वह शिक्षार्थी है
    सुनते हैं कि आजकल वह
    साहित्य का विद्यार्थी है

    गहरा कटाक्ष
    सुन्दर व्यंग्य

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  6. सार्थक और सटीक अवलोकन । अच्छाई की गति कम, बुराई की अधिक होती है ।

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  7. दोनों प्रकार की मुद्राएँ ..........
    नकली मुद्रा से डरती हैं........


    सुंदर व्यंगात्मक रचना है .......

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  8. समाज में गया.

    वहाँ वह अजब सी रीत पाया

    सब कुछ नियम के विपरीत पाया

    तीव्र विकास (या शायद विनाश);

    अनैतिकता में आनन्द;

    विचारहीन रक्तसने द्वन्द;

    अनुबन्धों के अनुगामी;

    घूमते कामी निर्द्वन्द

    इससे बेहतर तो पोलिटिकल साइंस पढता, खैर, बहुत सुन्दर भाव वर्मा साहब !

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  9. समाज की वास्‍तविकता प्रकट करती रचना, बधाई।

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  10. बहुत ही ज़बर्दस्त कटाक्ष करता व्यंग्य।

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  11. बढिया व्यंगात्मक रचना है।

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  12. बहुत सुन्दर लिखा अंकल जी ..अच्छा लगा.


    ************
    'पाखी की दुनिया में' पुरानी पुस्तकें रद्दी में नहीं बेचें, उनकी जरुरत है किसी को !

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  13. बहुत खूब वर्णन किया...बढ़िया रचना ..बधाई

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  14. बहुत सटीक व्यंग....साहित्य से तो कोई खतरा नहीं है ना....:):)

    सुन्दर रचना..

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  15. गहरा कटाक्ष ! बेहद ज़रूरी बात ...........

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  16. बहुत ही करारा व्यंग्य है...सच्चाई दर्शाती रचना

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  17. ...बेहतरीन रचना,बधाई !!!!

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  18. रोक नहीं पाया खुद को

    क्योंकि वह शिक्षार्थी है

    सुनते हैं कि आजकल वह

    साहित्य का विद्यार्थी है
    Kin,kin panktion ko dohraoon? Aapki rachanape tippanee karun, itni to mujhme qabiliyat bhi nahi hai!

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  19. बेहतरीन पोस्ट
    करारा कटाक्ष

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  20. बहुत ही सुन्दरता से आपने समाज की वास्तविकता को प्रस्तुत किया है! हर एक पंक्तियाँ दिल को छू गयी! उम्दा रचना!

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  21. विकट समस्‍याओं का आसान हल ढूँढ निकालना सबसे मुश्किल काम है।

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  22. यह लाजवाब रचना बहुत ही बेमिसाल है!

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  23. बहुत सुंदर लगा यह व्यंग. धन्यवाद

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  24. क्या बात है जनाब .....!!

    बहुत खूब ....!!

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  25. बहुत ही सुन्दर ढंग से आपने आज को व्यक्त कर दिया.....

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  26. Verma sir, ek bahut kam kahi gayi sachchai ko khalis sahityik bhasha me prastut kiya hai aapne..

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  27. aina dikha diya aapne samajshastriyon ko.. sunder rachna

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