जब आदमी फितरत से हो जाये नंगा
मत लेना तुम उससे भूलकर भी पंगा
.
वह तो जमीर बेचकर आया है भाई
उसे क्या वह पल में उठा लेगा गंगा
.
तोड़ता है क्योंकि वह खुद ही टूटा है
देखने में क्यूँ न दिखे वो भला-चंगा
.
सलीके की बात करता है देखिये तो
जिसकी जिन्दगी ताउम्र रही बेढंगा
.
अनजान लोग दिख रहे है शहर में
याद करने लगे हैं लोग पिछला दंगा
मत लेना तुम उससे भूलकर भी पंगा
.
वह तो जमीर बेचकर आया है भाई
उसे क्या वह पल में उठा लेगा गंगा
.
तोड़ता है क्योंकि वह खुद ही टूटा है
देखने में क्यूँ न दिखे वो भला-चंगा
.
सलीके की बात करता है देखिये तो
जिसकी जिन्दगी ताउम्र रही बेढंगा
.
अनजान लोग दिख रहे है शहर में
याद करने लगे हैं लोग पिछला दंगा
आपका ब्लॉग बहुत अच्छा है. आशा है हमारे चर्चा स्तम्भ से आपका हौसला बढेगा.
ReplyDeleteअनजान लोग दिख रहे है शहर में
ReplyDeleteयाद करने लगे हैं लोग पिछला दंगा
Kya gazab dhaya hai..kitni sachhaayi hai in shabdon me..
गहरे भाव लिये है आप की यह कविता.
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteदेखिये तो जिसकी जिन्दगी ताउम्र रही बेढंगा . अनजान लोग दिख रहे है शहर में याद करने लगे हैं लोग पिछला दंगा
ReplyDeleteअंतिम पंक्तियाँ दिल को छू गयीं.... बहुत सुंदर कविता....
सलीके की बात करता है देखिये तो
ReplyDeleteजिसकी जिन्दगी ताउम्र रही बेढंगा
badhiya sher !
Verma ji,
ReplyDeletekamaal kii rachna.Badhaai!
बहुत सुंदर कविता....
ReplyDelete.............
वह तो जमीर बेचकर आया है भाई
ReplyDeleteउसे क्या वह पल में उठा लेगा गंगा
सच को बहुत ही सुन्दरता से बाँधा है…………।उम्दा प्रस्तुति।
जब आदमी फितरत से हो जाये नंगा
ReplyDeleteमत लेना तुम उससे भूलकर भी पंगा
वाह , क्या सटीक बात कही है....आपकी एक और खूबसूरत गज़ल ..
bahut khub rachna
ReplyDeleteabhar...
वह तो जमीर बेचकर आया है भाई
ReplyDeleteउसे क्या वह पल में उठा लेगा गंगा
वाह...बेहद कमाल की ग़ज़ल...बधाई
नीरज
जब आदमी फितरत से हो जाये नंगा
ReplyDeleteमत लेना तुम उससे भूलकर भी पंगा
Behad sundar! Aisa aadmi to bhayankar hota hai...
अनजान लोग दिख रहे है शहर में
ReplyDeleteयाद करने लगे हैं लोग पिछला दंगा
गहरी बात ।
हमेशा की तरह सुन्दर रचना ।
बहुत खूब ।
ReplyDeleteवह तो जमीर बेचकर आया है भाई
ReplyDeleteउसे क्या वह पल में उठा लेगा गंगा
तोड़ता है क्योंकि वह खुद ही टूटा है
देखने में क्यूँ न दिखे वो भला-चंगा
बहुत ही गहरे भाव के साथ आपने सच्चाई को बखूबी प्रस्तुत किया है! शानदार रचना!
बिल्कुल सत्य की तस्वीर को उकेरा है ई पेपर पर।
ReplyDeleteनित्यानंद सेक्स स्केंडल के बहाने कुछ और बातें
अनजान लोग दिख रहे है शहर में
ReplyDeleteयाद करने लगे हैं लोग पिछला दंगा
Bahut badhiya----aaj ke am adamee ke andar baithe khauf ka sundar chitran.
अनजान लोग दिख रहे है शहर में
ReplyDeleteयाद करने लगे हैं लोग पिछला दंगा
bahut sarthak panktiyan---am adamee aj yahee soch kar dara hai....
सलीके की बात करता है देखिये तो जिसकी जिन्दगी ताउम्र रही बेढंगा ....बहुत सही बहुत पसंद आया यह ...शुक्रिया
ReplyDeletevo zameer bech aaya hai bhai...........sundar rachna!
ReplyDeleteअनजान लोग दिख रहे है शहर में
ReplyDeleteयाद करने लगे हैं लोग पिछला दंगा
आपने तो ग़ज़ब की बात कह दी है वर्मा जी ... सटीक प्रहार है ....
बहुत सुन्दर ग़ज़ल है ! एक एक शेर बेहतरीन है !
ReplyDeleteअनजान लोग दिख रहे है शहर में
याद करने लगे हैं लोग पिछला दंगा
वाह जी ! लोगों के मन का डर आप बखूबी उभरे हैं ! आज समाज कि हालत ही ऐसी हो गयी है कि कोई किसी पर भरोसा नहीं कर सकता है !
वह तो जमीर बेचकर आया है भाई
ReplyDeleteउसे क्या वह पल में उठा लेगा गंगा
.... बहुत खूब, प्रसंशनीय गजल!!!
Kaya baat hai
ReplyDeleteyaad aa gaya pichala danga
bahut hi sarthak roop main kalam ki upyog ki hai aapne bahut hi accha likha hai......
ReplyDeletesamjhne wali baat hai.....
सदा भाषा में आम आदमी को अच्छी तरह समझाया है वर्मा जी ! सादगी में मज़ा आ गया
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