कब तक
सहमीं रहेंगी
नदी के कगारों से
अजस्त्र धारायें
अवरोधों के उस पार
कहीं तो नवल क्षितिज होगा.
.
अन्धेरे के तमाम त्रासदियों को
सहने के बाद
जब भी यह रात ढलेगी;
अंतस के प्राची से
जब भी नूतन भोर झांकेगा,
मैं जानता हूँ
सूरज का महज़ एक तपन
काफी है पिघला देने को
उन गहनतम दीवारों को भी
जो हमें अब तक
बौना बनाये रखे हैं
.
सार्थक प्रयत्न
कभी भी निष्फल नही होता
उजास की किरण
देर-सबेर
हम तक भी पहुँचेगी
आखिर कब तक
गर्म हौसलों को
ठंडी बर्फ़ की परतें
छुपा सकती हैं भला
कब तक ........
(यह रचना सन 1984 मे लिखी थी)
कहीं होगा वह नवल क्षितिज ....... मुझे विश्वास है, तभी तो कलम कह रही है
ReplyDeleteसच कहा उजास की किरण देर सबेर हम तक भी पहुंचेगी .....प्रयत्न कायम रहना चाहए .....यही तो जीवन है ....!!
ReplyDeleteसशक्त रचना ....!!
जड़ जमाये गहनतम दीवारों का पिघलना जरुरी है.
ReplyDeleteकोशिश सबको करनी होगी, उस प्रकाश/तपन को पाने के लिए.
आखिर कब तक
ReplyDeleteगर्म हौसलों को
ठंडी बर्फ़ की परतें
छुपा सकती हैं भला
कब तक ........
Sundar aur prabhavi abhivyakti.
बहुत प्रभावशाली और नयी उर्जा देने वाली अभिव्यक्ति.....
ReplyDeleteसूरज का महज़ एक तपन
ReplyDeleteकाफी है पिघला देने को
उन गहनतम दीवारों को भी
बहुत सुन्दर रचना है ... आशा की बात करती हुई ... यह भोर अवश्य आयेगा ... पर शयद यह भोर बहार से नहीं अपने अन्दर से ही आना है ... जब हरेक इन्सान में सच्चाई, इंसानियत और ज्ञान का भोर आयेगा तो अँधेरा खुद व खुद मिट जायेगा ....
..... आशा के भाव ... उम्मीद की किरण ... नवल क्षितिज ....बेहद प्रेरणादायक रचना!!!!
ReplyDeletenice
ReplyDeleteसार्थक प्रयत्न कभी निष्फल नही होता ....
ReplyDeleteसच कहा है ... बहुत ही अनुपम रचना ...
बहुत ही गहन और सकारात्मक दिशा देती रचना।
ReplyDeleteबहुत ही आशावादी कविता लिखी है आपने पसंद आई शुक्रिया
ReplyDeleteनयी उर्जा देने वाली अभिव्यक्ति.....
ReplyDeleteसुन्दर रचना ...
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबेहतरीन रचना आशा जगाती
ReplyDeleteसकारात्मक सोच प्रदर्शित करती रचना ।
ReplyDeleteबढ़िया ।
सार्थक प्रयत्न
ReplyDeleteकभी भी निष्फल नही होता
उजास की किरण
देर-सबेर
हम तक भी पहुँचेगी
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ओह सन चौरासी की लिखी है तो यह ढ़ाई दशक में सिद्ध हुआ कि नहीं?
1984 me to mera janam hua tha. usi wakat likhi gayi hogi!!!! :-)
ReplyDeletewaise behatrin hai.
वो सुबह कभी तो आएगी...
ReplyDeleteबेहतर रचना...
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteइसे 11.04.10 की चर्चा मंच (सुबह ०६ बजे) में शामिल किया गया है।
http://charchamanch.blogspot.com/
बेहद खूबसूरत रचना ! आभार ।
ReplyDeleteकाबिलेतारीफ है प्रस्तुति।.सारी रचनाये आपकी बहुत ही अच्छी है|
ReplyDeleteनवल क्षितिज उदित होगा या ढूढ़ना पड़ेगा ।
ReplyDeleteआप को झूठ नहीं बोलना चाहिए, यह 1984 की रचना कैसे हो सकती है !!
ReplyDeleteयह तो हमें आज भी प्रेरणा दे रही है. :)
यह तो सर्वकालिक हुई.
समय इसे नहीं बाँध पायेगा.
भले ही इसका जन्म १९८४ में हुआ हो, पर यह अमर है.
lajawaab kar diyaa aapne,sach....
ReplyDeleteसार्थक प्रयत्न
ReplyDeleteकभी भी निष्फल नही होता
िउजास की किरण
देर-सबेर
हम तक भी पहुँचेगी
आखिर कब तक
गर्म हौसलों को
ठंडी बर्फ़ की परतें
छुपा सकती हैं भला
कब तक ....... बहुत सुन्दर और सकारात्मक सोच वाली रचना----
सार्थक प्रयत्न
ReplyDeleteकभी भी निष्फल नही होता
उजास की किरण
देर-सबेर
हम तक भी पहुँचेगी
आखिर कब तक
गर्म हौसलों को
ठंडी बर्फ़ की परतें
छुपा सकती हैं
भला कब तक ........
बहुत सुन्दर
karm karte rahana hi hamare jeevan ka uddeshy hai.vo subah kabhi to aaygi
ReplyDeletesach gambheer ho gaya main bhi padhkar..
ReplyDeleteshukria,
ReplyDeletetapan acchi lagi.
अवरोधों के उस पार
ReplyDeleteकहीं तो नवल क्षितिज होगा.
--वाह! अच्छी कविता।
उजास की किरण देर-सबेर हम तक भी पहुँचेगी.......
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना...........
सार्थक प्रयत्न
ReplyDeleteकभी भी निष्फल नही होता
उजास की किरण
देर-सबेर
हम तक भी पहुँचेगी..
बिल्कुल सही कहा है आपने ! सूरज की किरण हम सभी पर ज़रूर पहुंचेगी ! बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ उम्दा प्रस्तुती!
varma ji
ReplyDeleteaapki is rachna par main nishabd hoon ...kya kahu , mere paas tareef ke liye shabd nahi hai , ye kavita tareef se upar hai .. aapki lekhni ko mera salaam ...
aabhar aapka
vijay
p.s. pls meri ek kavita ko aap bhojpoori me translate kariyenga ..jald hi likhta hoon
बेहतरीन अभिव्यक्ति बहुत गहरी बातें
ReplyDeleteगज़ब की जादूगरी शब्दों से !!बहुत प्रभावशाली और नयी उर्जा देने वाली सशक्त रचना
is tapan mein nikhar gayi nazm!
ReplyDeleteis tapan mein nikhar gayi nazm!
ReplyDeleteharkirat ji ki baat se main bhi sahmat hoon ,chintan karne laayak baate hai , rachna sundar lagi .
ReplyDeleteक्या बात है वर्मा जी शब्दों से खेलना कोई आप सीखे और साथ ही साथ चंद बेहतरीन भावनाओं के साथ बेहतरीन प्रस्तुति ...धन्यवाद इस सुंदर क्षणिकाओं के लिए....आभार
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा आपने.... कहीं तो नवल क्षितिज होगा....
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता....
प्रेरित करती, आशा जगाती एक सुंदर रचना...
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