जब भी उसने
हक की बात की
जमाने ने कहा
ना री !
अंततोगत्वा
नाम पड़ गया उसका
नारी
****
निगाहों में
क्यों न उभरे निशान
सवालिया
देखते नहीं देकर ‘एक’
उन्होंने तो
सवा लिया
****
सुनते थे कि
प्यार से लबरेज होकर
मुस्कराती हैं
हसीना
लाख जतन किया पर
वो तो
हंसी ना
वाह क्या ख्याल है....अंतिम पंक्तियाँ कमाल कर गईं हैं
ReplyDelete....अदभुत,लाजवाब,बेमिसाल अभिव्यक्ति,बहुत बहुत बधाई !!!!
ReplyDeleteवाह शब्द से खेलना कोई आप से सीखे...बेहतरीन भावपिरोया आपने अपनी इन क्षणिकाओं से.....लाज़वाब पंक्तियाँ..धन्यवाद वर्मा जी...
ReplyDeleteकविता का भाव बहुत सुन्दर हैं . बढ़िया प्रस्तुति .... आभार.
ReplyDeleteयमक अलंकार की अनुपम छटा बिखेर दी आपने तो.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचनाएँ
ना री और हंसी ना ..दोनों शब्दों ने गज़ब का कमाल किया है.....सुन्दर रचनाएँ....
ReplyDeleteअद्भुत मुग्ध करने वाली, विस्मयकारी।
ReplyDeleteमन मोह लिया इन रचनाओ ने
ReplyDeleteअरे वाह. क्या शब्दों की हेराफेरी की है.
ReplyDeleteTeeno rachnaon ki aakhari panktine nishabd kar diya..kamal hai!
ReplyDeleteWah! Wah! Wah!
ReplyDeleteसभी काव्यों में अद्भुत प्रयोग किये हैं जी.......
ReplyDeleteख़ासकर नारी और हँसी ना तो गज़ब हैं
लगे रहो दादा !
shabdo ki hara-fairi aur usme bhari gahrayi...lajawaab hai.
ReplyDeleteवाह जी वाह कमाल कर दिया आप ने तो बहुत सुंदर भाव लिये है आप की यह कविता
ReplyDeleteबहुत शानदार प्रयोग!! आनन्द आया.
ReplyDeletenice
ReplyDeletewah. shabdon ki kalakari , behatareen.
ReplyDeleteहमेशा की तरह लीक से हट्कर शानदार भाव लिये उम्दा प्रस्तुति।
ReplyDeleteजब भी उसने
ReplyDeleteहक की बात की
जमाने ने कहा
ना री !
सुन्दर रचनाएँ..........
Bahut acghi soch lagi bahut2 badhai..
ReplyDeleteBahut khoob !
ReplyDeleteना, री!
ReplyDeleteसच में, जब बच्चे से नाम पूछा गया तो बोला - जॉनी डोण्ट!
जॉनी, ये न करो, जॉनी, वो न करो!
बहुत बढ़िया!
ReplyDeleteआप ना+री कह सकते है
मगर
हम तो
ना+अरि = नारि ही कहेंगे!
कमाल के शब्द प्रयोग हैं....बिलकुल नायाब :)
ReplyDeleteकमाल का शब्दांकन,अच्छा भाव, मज़ा आया पढकर!
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर पहली बार आया
ReplyDeleteअच्छा लगा कि आप जैसे शब्द शिल्पी ब्लॉग जगत को आबाद कर रहे हैं ... आप का ब्लॉग बुकमार्क आकर लिया है सदा पढता रहूँगा ... टिप्पणी भले न कर पाऊं ... क्योंकि मै गूगल रीडर का इस्तेमाल करता हूँ पढ़ने के लिए ... माफी चाहूँगा
सभी रचनाये स्तरीय और सुंदर
नए अंदाज़ के साथ एक बेहतरीन रचना! बेहद ख़ूबसूरत भाव लिए लाजवाब रचना! बढ़िया लगा!
ReplyDeleteशब्दों का सुन्दर प्रयोग ।
ReplyDeletebahut hi sundar abhivyakti sari ki sari ek se badh kar ek.
ReplyDeletepoonam
नारी सवालिया और हसीना .. सन्धि न होने के बावज़ूद कवि का जबरदस्त सन्धि विग्रह ।
ReplyDeleteसुंदर संधि विग्रह ,शानदार प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत बढ़िया !
ReplyDeleteवाह ..
ReplyDeleteवर्मा जी,
मैं ना री..भी नहीं समझ पाई थी अब तक
और हंसी ना....बनी घूमती रही...
बहुत ही सुन्दर प्रयोग शब्दों का....
यह बहुत ही गहन विषय-वस्तु है और आपने जो कहा है उसपर यकीन करने को दिल कर गया है..
समस्त नारियों की ओर से आपके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करती हूँ
चलते चलते एक हास्य के पुट की धृष्टता कर रही हूँ....(हंस बंद ..से कहीं हसबैंड तो नहीं बना है )
यह हास्य है अन्यथा मत लीजियेगा ....
आपका आभार...
जब भी उसने
ReplyDeleteहक की बात की
जमाने ने कहा
ना री !
अंततोगत्वा
नाम पड़ गया उसका
नारी
वाह बहुत सुन्दर.
जब भी उसने
ReplyDeleteहक की बात की
जमाने ने कहा
ना री !
शुरुआत में ही आपने सारांश दे दिया. बहुत खूब.
ये आपकी छोटी-छोटी नोंचियाँ बड़ी असरकारी होती हैं
ReplyDeleteगज़ब की जादूगरी शब्दों से !!!!!!!!!!!!!वाह.. वाह... वाह अब और क्या कहूँ. तस्वीर ने तो कमाल की छटा बिखेरी है नायब
ReplyDelete!!!वाह..!!!
ReplyDeleteवाह .. शब्दों की उलट फेर की श्रंखला लाजवाब है वर्मा जी ....
ReplyDeleteना री और हसी ना .... क्या ग़ज़ब का ख्याल है ...