Thursday, March 11, 2010

हद है भाई!


बोया पेड़ बबूल का


फिर क्यूँ आम ढूढते हो


जीजिविषा मरी पड़ी है


और तुम संग्राम ढूढ़ते हो


खुद ही कहकर खुद ही सुन लो


कौओं से करते कान की बातें, हद है भाई!


*


चप्पे-चप्पे पर कामी देखो


रिश्तों की नीलामी देखो


वर्तमान का पता नहीं पर


तुम तो अब आगामी देखो


हैवानों की बस्ती में आकर


करते हो तुम इंसान की बातें, हद है भाई!


*


किससे कहे वो


अपने जीवन की परेशानी को


नदियाँ तलाशने निकली हैं


अपने-अपने पानी को


इस नगरी में करते हो


आँगन और दालान की बातें, हद है भाई!

45 comments:

  1. इतना सटीक भी कोई लिखता है....हद है भाई ..बेहतरीन अभिव्यक्ति

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  2. बोया पेड़ बबूल का

    फिर क्यूँ आम ढूढते हो

    जीजिविषा मरी पड़ी है

    और तुम संग्राम ढूढ़ते हो


    काम की बात । लेकिन लोग समझते ही कहाँ हैं।

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  3. किससे कहे वो

    अपने जीवन की परेशानी को

    नदियाँ तलाशने निकली हैं

    अपने-अपने पानी को

    इस नगरी में करते हो

    आँगन और दालान की बातें, हद है भाई!
    Isse behtar bhi koyi kah sakta hai?

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  4. सच में हद है भाई.....सटीक और सार्थक लेखन.

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  5. बिल्कुल सच बात है, कुछ ऐसे हालात है और सबके अपने अपने जज़्बात है...जैसा करेंगे वैसा ही तो मिलेगा...बहुत बढ़िया रचना...वर्मा जी बधाई

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  6. वाह !

    क्या बात है...!!!
    वर्मा जी अच्छा लिखा ...
    हद है भाई...

    ---- राकेश वर्मा

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  7. वाह!वाह!!! भाई
    बहुत बढ़िया...
    बधाई, बधाई

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  8. बहुत खूब .... अति सुन्दर रचना

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  9. sach mein hadd hai...
    kitni sacchi baatein likh din aapne..

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  10. Bahut hi satik aur sarthak baate likhi hai aapane .....Dhanywaad!

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  11. गज़ब भाई...वाकई हद है भाई लेखन की.

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  12. aadarniya sir aaj ke samya charitarth karati hai aapki lekhni .aakhir yah to had hai bhai, ki boya peda babul ka to aam kahan se khaye.
    poonam

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  13. हैवानों की बस्ती में इंसानों की बातें ...सही कहा ....नहीं करनी चाहिए
    अच्छी कविता ...!!

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  14. बहुत अच्छी कविता।

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  15. बोया पेड़ बबूल का

    फिर क्यूँ आम ढूढते हो
    बेहतरीन अभिव्‍यक्ति।................

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  16. बहोत मार्मिक रचना॥

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  17. बहुत ही मार्मिक व लाजवाब लगी रचना , बधाई ।

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  18. बोया पेड़ बबूल का

    फिर क्यूँ आम ढूढते हो

    जीजिविषा मरी पड़ी है

    और तुम संग्राम ढूढ़ते हो
    बहुत सुंदर भाव.

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  19. "हैवानों की बस्ती में आकर
    करते हो तुम इंसान की बातें ..."


    सच कहा! आज इन्सान हैं कहाँ?

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  20. संग्राम ढूढ़ते हो ।
    बहुत सुन्दर । जिन्दगी विरोधाभासों से पटी पड़ी है ।

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  21. बढया प्रस्तुति.भाव और विचार से सराबोर.कई पंक्तियाँ याद रह जायेंगी .

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  22. बोया पेड़ बबूल का

    फिर क्यूँ आम ढूढते हो

    जीजिविषा मरी पड़ी है

    और तुम संग्राम ढूढ़ते हो
    वर्मा बहुत खूब । सभी रचनायें सटीक और अच्छी लगी। शुभकामनायें

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  23. Bilkul sahi sir Had hai.. har cheej ki had hai. lekin ye had bhi to behad hai.. kiya kya jaye??
    :)

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  24. किससे कहे वो

    अपने जीवन की परेशानी को

    नदियाँ तलाशने निकली हैं

    अपने-अपने पानी को

    इस नगरी में करते हो

    आँगन और दालान की बातें, हद है भाई!


    बिल्कुल सही हद है भाई!

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  25. हद है भाई ! गजब ! कैसी है कविताई ! वर्मा जी आप का ब्लॉग पहली बार देखा !एक से बढ़कर एक कविताएँ ! बहुत बहुत बधाई ! आप बहुत अच्छा लिखते हैं ! मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है !

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  26. जीजिविषा मरी पड़ी है

    और तुम संग्राम ढूढ़ते हो

    ye to had hi hai...

    kamal ka lekhan.
    badhayi.

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  27. हैवानों की बस्ती जाकर

    करते तुम इंसानी बातें,

    इस नगरी में क्यों करते हो

    आँगन और दालान की बातें

    नफरत पाले जड़ें काटते फिरते यह दुर्योधन वंशज

    सूपर्णखा से व्रत रखवाते , क्या करते हो हद है भाई

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  28. बहुत ही ख़ूबसूरत भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने शानदार रचना लिखा है जो काबिले तारीफ है! बहुत बढ़िया लगा! इस बेहतरीन पोस्ट के लिए ढेर सारी बधाइयाँ!

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  29. सामयिक है सटीक है ,बधाई

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  30. हैवानों की बस्ती में आकर

    करते हो तुम इंसान की बातें
    वाह!!

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  31. हैवानों की बस्ती में आकर

    करते हो तुम इंसान की बातें, हद है भाई!...

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  32. वर्तमान का पता नहीं पर
    तुम तो अब आगामी देखो
    ....प्रभावशाली अभिव्यक्ति!!!

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  33. "हैवानों की बस्ती में आकर
    करते हो तुम इंसान की बातें "
    वाह! बहुत ही बढ़िया!
    तीनो लघु कवितायेँ बहुत अच्छी लगीं .

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  34. बहुत सुन्दर वाह ! हद है भाई...

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  35. शानदार रचना.....
    amitraghat.blogspot.com

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  36. sabhi hain sunder achhi rachna,
    \bhav anokhe sachchi rachna, had hai bhai.

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  37. इस नगरी में करते हो

    आँगन और दालान की बातें, हद है भाई!

    कितना सटीक हमेशा की तरह ।

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  38. vakai had hai ...badhiya prastuti!

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  39. वाह !

    क्या बात है...!!!
    वर्मा जी अच्छा लिखा ...
    हद है भाई...

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  40. 'हद है भाई' की टेक बड़ी मौजूं लगी !
    शुरुआत ही कितनी खूबसूरत है..
    "खुद ही कहकर खुद ही सुन लो
    कौओं से करते कान की बातें, हद है भाई!"
    आभार ।

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  41. आपकी रचनाओं ने सारी हदों को पार लिया है और बहुत ही यथार्थ के धरातल पर टिकी हैं ....
    ग़ज़ब वर्मा जी ....

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  42. बिल्कुल सच बात है, कुछ ऐसे हालात है और सबके अपने अपने जज़्बात है...जैसा करेंगे वैसा ही तो मिलेगा...बहुत बढ़िया रचना...वर्मा जी बधाई

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