ज़मीत बेचने की सोची पर जमीर को ये गवारा न था ...... बहुत ही गहरी सोच ..... लाजवाब लिखा है वर्मा जी .. पर आज के जमाने में कितने लोग हैं जिनका जमीर बिकने से माना करता है ....
wah.. kamaal fir se.. :) इस बार रंग लगाना तो.. ऐसा रंग लगाना.. के ताउम्र ना छूटे.. ना हिन्दू पहिचाना जाये ना मुसलमाँ.. ऐसा रंग लगाना.. लहू का रंग तो अन्दर ही रह जाता है.. जब तक पहचाना जाये सड़कों पे बह जाता है.. कोई बाहर का पक्का रंग लगाना.. के बस इंसां पहचाना जाये.. ना हिन्दू पहचाना जाये.. ना मुसलमाँ पहचाना जाये.. बस इंसां पहचाना जाये.. इस बार.. ऐसा रंग लगाना... (और आज पहली बार ब्लॉग पर बुला रहा हूँ.. शायद आपकी भी टांग खींची हो मैंने होली में..)
होली की उतनी शुभ कामनाएं जितनी मैंने और आपने मिलके भी ना बांटी हों...
खबर मिली कि वह दरिया में डूब गया. nice
ReplyDeleteबहुत ही गहरी भवनाए लिये सुन्दर अभिव्यक्ति ...आभार!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव
ReplyDeleteसुंदर भाव और अभिव्यक्ति !!
ReplyDeleteजमीर के आगे मौत का सौदा..!
ReplyDeleteजमीर वाले को मंजूर नहीं होता....
..अच्छा सन्देश देती है यह कविता.
प्यास इतनी बढ़ी
ReplyDeleteकि वह जीवन से ऊब गया
अंततोगत्वा,
खबर मिली कि
वह दरिया में डूब गया.
गज़ब...
बेहतरीन। लाजवाब।
ReplyDeleteवाह बहुत ही लाजवाब, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
दोनों क्षणिकाएं बहुत गहरे अर्थ लिए हुए हैं...बहुत अच्छी
ReplyDeleteउसने भी
ReplyDeleteज़मीर बेचने को सोचा
पर उसके ज़मीर को
यह गंवारा न था.
बहुत सुंदर जज्बात जनाब
बहुत खूब , लाजवाब लगा ।
ReplyDeleteबहुत गहन रचना! वाह!
ReplyDeleteसुंदर भाव और अभिव्यक्ति !!
ReplyDeleteजमीर को जमीर बेचना गंवारा नहीं हुआ ....मतलब जमीर अभी भी जिन्दा था ...जो बेच पाते हैं जमीर तो उनमे भी होता है मगर मारा हुआ ....
ReplyDeleteभावपूर्ण ...!!
दोनों शब्द-चित्र सुन्दर हैं!
ReplyDeleteवाह ,गागर में सागर।
ReplyDeletewah pani hi pani.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ....
ReplyDeleteवाह वर्मा जी...लाज़वाब....खूबसूरत क्षणिकाएँ
ReplyDeleteदोनों बेहतरीन और लाजवाब क्षणिकाएं ..
ReplyDeleteSeedhe saral alfaaz aur samandar-si gahari baat!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने शानदार रचना लिखा है! बधाई!
ReplyDeleteज़मीत बेचने की सोची पर जमीर को ये गवारा न था ...... बहुत ही गहरी सोच ..... लाजवाब लिखा है वर्मा जी ..
ReplyDeleteपर आज के जमाने में कितने लोग हैं जिनका जमीर बिकने से माना करता है ....
जमीर के आगे मौत का सौदा..!
ReplyDeleteजमीर वाले को मंजूर नहीं होता..
बहुत सुन्दर और गहरे भाव लिये कविता। शुभकामनायें
gazab kar diya..............bahut hi gahan ..........aaj to tarif ke liye shabd nhi mil rahe.
ReplyDeleteगहरी और गूढ़ बात
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव और सटीक अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteउसने भी, ज़मीर बेचने को सोचा
ReplyDeleteपर उसके ज़मीर को, यह गंवारा न था.
....बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति,बधाई !!!!
बहुत बढ़िया लगी दोनों ही गहन भाव शुक्रिया
ReplyDeletesach kahte hain ........
ReplyDeletepata hai baimaani hi aage bad rahi hai magar kya zameer karne deta hai ........
baimaani chori bhi sabke bas ki baat nahi hai
dhaar tez hai aapki kalam ki
पीना न आये तो दरिया पाकर भी हम डूब हीं जाते हैं...
ReplyDeleteजमीर के आगे मौत का सौदा..!
ReplyDeleteजमीर वाले को मंजूर नहीं होता....
..अच्छा सन्देश देती है यह कविता
बहुत अचछी अभिव्यक्ति....
sundar bhav purn post
ReplyDeleteउफ़. क्या बात कही.
ReplyDeleteगहरे अर्थ लिए दोनों ही क्षणिकाएं बहुत बहुत सुन्दर !!! लाजवाब !!!
ReplyDeleteshuru ki panktiyon ne to kamaal kar diya...bahut sundar...
ReplyDeleteबहुत ही गहरे भावों को प्रस्तुति करती ये क्षणिकाएं ।
ReplyDeleteआपको और आपके समस्त परिवार को होली की शुभ-कामनाएँ ...
ReplyDeleteHoli mubarak ho!
ReplyDeleteverma ji, holi ki mangalkaamnayen, aapko aur aapke pariwar ko.
ReplyDeleteआज तो कुछ अलग सा मिला आपसे ! होली और मिलाद उन नबी की शुभकामनायें
ReplyDeleteएक एक क्षण में युगों की बात. बहुत खूब.
ReplyDeleteवर्मा जी, होली की अनेकों शुभकामनाये...और ह्रदय से आभार की आप मुझे प्रोत्साहित करते रहें हैं...
ReplyDeleteचंद शब्दों में बहुत कुछ
ReplyDeleteगहरा अहसास कराती दोनों क्षणिकाएं बे मिसाल हैं
बधाई,
होली के इस पावन पर्व पर भी आपको हार्दिक बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
रंग बिरंगे त्यौहार होली की रंगारंग शुभकामनाए
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeletewah.. kamaal fir se.. :)
ReplyDeleteइस बार रंग लगाना तो.. ऐसा रंग लगाना.. के ताउम्र ना छूटे..
ना हिन्दू पहिचाना जाये ना मुसलमाँ.. ऐसा रंग लगाना..
लहू का रंग तो अन्दर ही रह जाता है.. जब तक पहचाना जाये सड़कों पे बह जाता है..
कोई बाहर का पक्का रंग लगाना..
के बस इंसां पहचाना जाये.. ना हिन्दू पहचाना जाये..
ना मुसलमाँ पहचाना जाये.. बस इंसां पहचाना जाये..
इस बार.. ऐसा रंग लगाना...
(और आज पहली बार ब्लॉग पर बुला रहा हूँ.. शायद आपकी भी टांग खींची हो मैंने होली में..)
होली की उतनी शुभ कामनाएं जितनी मैंने और आपने मिलके भी ना बांटी हों...
दोनों क्षणिकाएं बहुत अच्छी लगीं !
ReplyDeleteमन मोरा झकझोरे छेड़े है कोई राग
ReplyDeleteरंग अल्हड़ लेकर आयो रे फिर से फाग
आपको होली की रंरंगीली बधाई.
होली की हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाई !!
ReplyDeleteहोली की बहुत-बहुत शुभकामनायें.
ReplyDeleteआपके आने से होली का आनंद दोगुना हुआ , आभारी हूँ ! स्नेह के लिए धन्यवाद ! ईश्वर से आपके लिए प्रार्थना होगी !
ReplyDeleteसादर
उसने सुना
ReplyDeleteज़मीर बेच कर लोग
सुकून से रहते हैं,
उसने भी
ज़मीर बेचने को सोचा
पर उसके ज़मीर को
यह गंवारा न था.
bahut hi badi baat kah di is nanhi rachna ne ,holi parv ki aapko haardik shubhkaamnaaye
बहुत ही गहरे भावों को प्रस्तुति करती ये क्षणिकाएं ।
ReplyDeleteGreat post. Check my website on hindi stories at afsaana
ReplyDelete. Thanks!