Tuesday, February 9, 2010

अनुवादों का कुहराम ~~~

संवादो की चुप्पी, अनुवादों का कुहराम

छद्म वेश में चोर-उचक्के देते है पैगाम

.

नित-नूतन क्रन्दन रचते, गठबंधन के बंधन

मंसूबों की मौत देख, सिहर रहा कन-कन

बकरों की मंडी में लगते इंसानों के दाम

छद्म वेश में चोर-उचक्के देते है पैगाम.

.

रोटी सा सिंक जायेगा, यूँ ही बिकता जायेगा

ग़र गला फाड़ बेबस ! तूँ जो ना चिल्लायेगा

सार्थक प्रश्न खुद के माथे लगा रहे बाम

छद्म वेश में चोर-उचक्के देते है पैगाम.

.

भ्रम के वैयाकरण आड़े-तिरछे खड़े हुए हैं

विश्वासों की लाशें हर चौराहे पर पड़े हुए हैं

अनुबंधों को संबंधों का मिलता है नाम

छद्म वेश में चोर-उचक्के देते है पैगाम.

.

लहू अबोधों का बहता है फिर भी चुप रहता है

अपने कद से पूछ लो ये कैसे सहता रहता है

मृतप्राय पड़े क्यूँ हैं जीजिविषा-संग्राम

छद्म वेश में चोर-उचक्के देते है पैगाम.

~~

चित्र : साभार गूगल सर्च

34 comments:

  1. वाह वाह वर्मा जी बहुत सुंदर आपसे शब्दों की संपदा के लिए शागिर्दी की जाए तो बढिया रहेगा बताईये हमारी कक्षाएं कब लेंगे आप । बहुत सुंदर रचना
    अजय कुमार झा

    ReplyDelete
  2. रोटी सा सिंक जायेगा, यूँ ही बिकता जायेगा ग़र गला फाड़ बेबस ! तूँ जो ना चिल्लायेगा सार्थक प्रश्न खुद के माथे लगा रहे बाम छद्म वेश में चोर-उचक्के देते है पैगाम. .

    बहुत खूब....... सुंदर व सार्थक कविता.....उपरोक्त पंक्तियों ने दिल को छू लिया......

    ReplyDelete
  3. सार्थक प्रश्न खुद के माथे लगा रहे बाम

    छद्म वेश में चोर-उचक्के देते है पैगाम.

    ....अच्छी कविता.

    ReplyDelete
  4. बहुत लाजवाब रचना, शुभकामनाएं.

    रामराम.

    ReplyDelete
  5. बकरों की मंडी में लगते इंसानों के दाम
    छद्म वेश में चोर-उचक्के देते है पैगाम.
    खूबसूरत अल्फाज़।

    ReplyDelete
  6. बहुत खूब वर्माजी। बढिया रचना है।

    ReplyDelete
  7. ek hi shabd teen baar.........
    adbhut !
    adbhut !
    adbhut !

    ReplyDelete
  8. क्षद्म वेश में चोर उचक्के देते हैं पैगाम ....
    रोटी सा सिंक जाएगा ..तू जो ना चिल्लाएगा ...
    आपकी कवितायेँ चिंतन के लिए बाध्य करती हैं ...!!

    ReplyDelete
  9. रोटी सा सिंक जायेगा, यूँ ही बिकता जायेगा
    ग़र गला फाड़ बेबस ! तूँ जो ना चिल्लायेगा
    सार्थक प्रश्न खुद के माथे लगा रहे बाम
    छद्म वेश में चोर-उचक्के देते है पैगाम. .

    कविता की पंक्तियाँ मनन करने को बाध्य कर रही हैं..
    आज के सन्दर्भ में बहुत ही ..सार्थक और सामयिक रचना..
    बधाई..

    ReplyDelete
  10. इस कविता में बहुत बेहतर, बहुत गहरे स्तर पर एक बहुत ही छुपी हुई करुणा और गम्भीरता है।

    ReplyDelete
  11. शानदार वर्मा जी..छा गये.

    ReplyDelete
  12. बहुत सुन्दर पैगाम कविता के जरिये वर्मा साहब !

    ReplyDelete
  13. .

    रोटी सा सिंक जायेगा, यूँ ही बिकता जायेगा

    ग़र गला फाड़ बेबस ! तूँ जो ना चिल्लायेगा

    सार्थक प्रश्न खुद के माथे लगा रहे बाम

    छद्म वेश में चोर-उचक्के देते है पैगाम.

    kin lafzon mein tarif karoon........gazab ka likha hai.

    ReplyDelete
  14. तूँ जो ना चिल्लायेगा सार्थक प्रश्न खुद के माथे लगा रहे बाम छद्म वेश में चोर-उचक्के देते है पैगाम. . भ्रम के वैयाकरण आड़े-तिरछे खड़े हुए हैं विश्वासों की लाशें हर चौराहे पर पड़े हुए हैं अनुबंधों को संबंधों का मिलता है नाम छद्म वेश में चोर-उचक्के देते है पैगाम. .


    बहुत इमानदारी से आज के साहित्यिक और चिट्ठों की दुनिया की असलियत रख दी है आपने हमारे सम्मुख...और यह हालात तो सभी कला के क्षेत्र में दिख रहा है आजकल....
    मेरे ब्लॉग पर बार-बार आने और प्रोत्साहित करने के लिए शुक्रिया...

    ReplyDelete
  15. रोटी सा सिंक जायेगा,
    यूँ ही बिकता जायेगा
    ग़र गला फाड़ बेबस !
    तूँ जो ना चिल्लायेगा ...

    नमस्कार वर्मा जी ...
    गहरे क्षोब से उपजी रचना है .... दिल में जमा क्रोध उबाल रहा है ...... बहुत अच्छा लिखा है .... सच लिखा है ... आज अपना हक माँगने के लिए ... चिलान पढ़ता है ... छीनना पड़ता है .... सार्थक ......

    ReplyDelete
  16. अप्रतिम रचना...
    रचना और भाव सौन्दर्य में मन ग़ुम हो गया...क्या कहूँ...

    बहुत बहुत बहुत ही सुन्दर सार्थक रचना..

    ReplyDelete
  17. आपको पढ़ना आन्दमय होता है

    ReplyDelete
  18. वाह, कुछ सिंक रहे हैं रोटियों जैसे और कुछ सेंक रहे हैं रोटियां!
    यही दस्तूर है दुनियां का। ब्लॉगजगत अछूता नहीं!

    ReplyDelete
  19. रोटी सा सिंक जायेगा, यूँ ही बिकता जायेगा

    ग़र गला फाड़ बेबस ! तूँ जो ना चिल्लायेगा
    ....वर्तमान परिवेश मे यह "भाव" ही काम आयेंगे!!

    ReplyDelete
  20. bahut khoob verma ji, sunder samyik rachna badhaai.

    ReplyDelete
  21. bahut khoob sir
    maja aa gaya
    har pankti jordar hain

    ReplyDelete
  22. बहुत सुंदर रचना...

    ReplyDelete
  23. Bahut hi sarthak rachana hai ye aapki....!!
    Aaj se ye blog bhi hamara hi ho gaya :)
    Saadar
    RaniVishal

    ReplyDelete
  24. बहुत खूब....... सुंदर व सार्थक कविता.....

    ReplyDelete
  25. महा-शिवरात्रि पर्व की बहुत बहुत बधाई .......

    ReplyDelete
  26. महाशिवरात्रि की हार्दिक बधाइयाँ!
    बहुत बढ़िया और सठिक लिखा है आपने! बहुत ही सुन्दर शब्दों के साथ आपने बखूबी प्रस्तुत किया है! उम्दा रचना!

    ReplyDelete
  27. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  28. लहू अबोधों का बहता है फिर भी चुप रहता है

    अपने कद से पूछ लो ये कैसे सहता रहता है

    मृतप्राय पड़े क्यूँ हैं जीजिविषा-संग्राम

    छद्म वेश में चोर-उचक्के देते है पैगाम.
    एक एक शब्द आज के सत्य को उजागर कर रहा है बहुत अच्छी लगी ये रचना धन्यवाद्

    ReplyDelete
  29. वर्मा जी, ये गीत तो नुक्कड़ नाटक के लिए बिलकुल उपयुक्त है... बेहतरीन ढंग से आक्रोश पैदा करता हुआ.. सही कहा मैंने क्या? :)
    जय हिंद... जय बुंदेलखंड...

    ReplyDelete
  30. verma ji...chintan ko mazboor kar alakh jagati rachna...aur ab dil karta hai ek baar jor se chilla hi padu...

    gehra asar chhodti ye rachna apni kamyabi pa rahi hai.

    ReplyDelete
  31. first of all
    महा-शिवरात्रि पर्व की बहुत बहुत बधाई

    ReplyDelete
  32. Great post. Check my website on hindi stories at afsaana
    . Thanks!

    ReplyDelete