संवादो की चुप्पी, अनुवादों का कुहराम
छद्म वेश में चोर-उचक्के देते है पैगाम
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नित-नूतन क्रन्दन रचते, गठबंधन के बंधन
मंसूबों की मौत देख, सिहर रहा कन-कन
बकरों की मंडी में लगते इंसानों के दाम
छद्म वेश में चोर-उचक्के देते है पैगाम.
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रोटी सा सिंक जायेगा, यूँ ही बिकता जायेगा
ग़र गला फाड़ बेबस ! तूँ जो ना चिल्लायेगा
सार्थक प्रश्न खुद के माथे लगा रहे बाम
छद्म वेश में चोर-उचक्के देते है पैगाम.
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भ्रम के वैयाकरण आड़े-तिरछे खड़े हुए हैं
विश्वासों की लाशें हर चौराहे पर पड़े हुए हैं
अनुबंधों को संबंधों का मिलता है नाम
छद्म वेश में चोर-उचक्के देते है पैगाम.
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लहू अबोधों का बहता है फिर भी चुप रहता है
अपने कद से पूछ लो ये कैसे सहता रहता है
मृतप्राय पड़े क्यूँ हैं जीजिविषा-संग्राम
छद्म वेश में चोर-उचक्के देते है पैगाम.
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चित्र : साभार गूगल सर्च
वाह वाह वर्मा जी बहुत सुंदर आपसे शब्दों की संपदा के लिए शागिर्दी की जाए तो बढिया रहेगा बताईये हमारी कक्षाएं कब लेंगे आप । बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteअजय कुमार झा
रोटी सा सिंक जायेगा, यूँ ही बिकता जायेगा ग़र गला फाड़ बेबस ! तूँ जो ना चिल्लायेगा सार्थक प्रश्न खुद के माथे लगा रहे बाम छद्म वेश में चोर-उचक्के देते है पैगाम. .
ReplyDeleteबहुत खूब....... सुंदर व सार्थक कविता.....उपरोक्त पंक्तियों ने दिल को छू लिया......
सार्थक प्रश्न खुद के माथे लगा रहे बाम
ReplyDeleteछद्म वेश में चोर-उचक्के देते है पैगाम.
....अच्छी कविता.
बहुत लाजवाब रचना, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
बकरों की मंडी में लगते इंसानों के दाम
ReplyDeleteछद्म वेश में चोर-उचक्के देते है पैगाम.
खूबसूरत अल्फाज़।
बहुत खूब वर्माजी। बढिया रचना है।
ReplyDeleteek hi shabd teen baar.........
ReplyDeleteadbhut !
adbhut !
adbhut !
क्षद्म वेश में चोर उचक्के देते हैं पैगाम ....
ReplyDeleteरोटी सा सिंक जाएगा ..तू जो ना चिल्लाएगा ...
आपकी कवितायेँ चिंतन के लिए बाध्य करती हैं ...!!
रोटी सा सिंक जायेगा, यूँ ही बिकता जायेगा
ReplyDeleteग़र गला फाड़ बेबस ! तूँ जो ना चिल्लायेगा
सार्थक प्रश्न खुद के माथे लगा रहे बाम
छद्म वेश में चोर-उचक्के देते है पैगाम. .
कविता की पंक्तियाँ मनन करने को बाध्य कर रही हैं..
आज के सन्दर्भ में बहुत ही ..सार्थक और सामयिक रचना..
बधाई..
इस कविता में बहुत बेहतर, बहुत गहरे स्तर पर एक बहुत ही छुपी हुई करुणा और गम्भीरता है।
ReplyDeleteशानदार वर्मा जी..छा गये.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पैगाम कविता के जरिये वर्मा साहब !
ReplyDelete.
ReplyDeleteरोटी सा सिंक जायेगा, यूँ ही बिकता जायेगा
ग़र गला फाड़ बेबस ! तूँ जो ना चिल्लायेगा
सार्थक प्रश्न खुद के माथे लगा रहे बाम
छद्म वेश में चोर-उचक्के देते है पैगाम.
kin lafzon mein tarif karoon........gazab ka likha hai.
तूँ जो ना चिल्लायेगा सार्थक प्रश्न खुद के माथे लगा रहे बाम छद्म वेश में चोर-उचक्के देते है पैगाम. . भ्रम के वैयाकरण आड़े-तिरछे खड़े हुए हैं विश्वासों की लाशें हर चौराहे पर पड़े हुए हैं अनुबंधों को संबंधों का मिलता है नाम छद्म वेश में चोर-उचक्के देते है पैगाम. .
ReplyDeleteबहुत इमानदारी से आज के साहित्यिक और चिट्ठों की दुनिया की असलियत रख दी है आपने हमारे सम्मुख...और यह हालात तो सभी कला के क्षेत्र में दिख रहा है आजकल....
मेरे ब्लॉग पर बार-बार आने और प्रोत्साहित करने के लिए शुक्रिया...
रोटी सा सिंक जायेगा,
ReplyDeleteयूँ ही बिकता जायेगा
ग़र गला फाड़ बेबस !
तूँ जो ना चिल्लायेगा ...
नमस्कार वर्मा जी ...
गहरे क्षोब से उपजी रचना है .... दिल में जमा क्रोध उबाल रहा है ...... बहुत अच्छा लिखा है .... सच लिखा है ... आज अपना हक माँगने के लिए ... चिलान पढ़ता है ... छीनना पड़ता है .... सार्थक ......
अप्रतिम रचना...
ReplyDeleteरचना और भाव सौन्दर्य में मन ग़ुम हो गया...क्या कहूँ...
बहुत बहुत बहुत ही सुन्दर सार्थक रचना..
आपको पढ़ना आन्दमय होता है
ReplyDeleteवाह, कुछ सिंक रहे हैं रोटियों जैसे और कुछ सेंक रहे हैं रोटियां!
ReplyDeleteयही दस्तूर है दुनियां का। ब्लॉगजगत अछूता नहीं!
रोटी सा सिंक जायेगा, यूँ ही बिकता जायेगा
ReplyDeleteग़र गला फाड़ बेबस ! तूँ जो ना चिल्लायेगा
....वर्तमान परिवेश मे यह "भाव" ही काम आयेंगे!!
bahut khoob verma ji, sunder samyik rachna badhaai.
ReplyDeletebahut khoob sir
ReplyDeletemaja aa gaya
har pankti jordar hain
बहुत सुंदर रचना...
ReplyDeleteBahut hi sarthak rachana hai ye aapki....!!
ReplyDeleteAaj se ye blog bhi hamara hi ho gaya :)
Saadar
RaniVishal
बहुत खूब....... सुंदर व सार्थक कविता.....
ReplyDeleteमहा-शिवरात्रि पर्व की बहुत बहुत बधाई .......
ReplyDeleteमहाशिवरात्रि की हार्दिक बधाइयाँ!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया और सठिक लिखा है आपने! बहुत ही सुन्दर शब्दों के साथ आपने बखूबी प्रस्तुत किया है! उम्दा रचना!
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ReplyDeleteलहू अबोधों का बहता है फिर भी चुप रहता है
ReplyDeleteअपने कद से पूछ लो ये कैसे सहता रहता है
मृतप्राय पड़े क्यूँ हैं जीजिविषा-संग्राम
छद्म वेश में चोर-उचक्के देते है पैगाम.
एक एक शब्द आज के सत्य को उजागर कर रहा है बहुत अच्छी लगी ये रचना धन्यवाद्
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ReplyDeleteवर्मा जी, ये गीत तो नुक्कड़ नाटक के लिए बिलकुल उपयुक्त है... बेहतरीन ढंग से आक्रोश पैदा करता हुआ.. सही कहा मैंने क्या? :)
ReplyDeleteजय हिंद... जय बुंदेलखंड...
verma ji...chintan ko mazboor kar alakh jagati rachna...aur ab dil karta hai ek baar jor se chilla hi padu...
ReplyDeletegehra asar chhodti ye rachna apni kamyabi pa rahi hai.
first of all
ReplyDeleteमहा-शिवरात्रि पर्व की बहुत बहुत बधाई
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteGreat post. Check my website on hindi stories at afsaana
ReplyDelete. Thanks!