वे क़ैद हैं
और उन्हें
अपने क़ैद का
अभास तक नहीं है।
.
जब कभी
उन्होने सूरज की ओर देखा;
जब कभी
उन्होनें आक्सीजन से
रूबरू होने की कोशिश की;
जब कभी
उन्होने आसमाँ के इस छोर से
उस छोर तक उड़ना चाहा;
जब कभी
उनमें अभिव्यक्ति की अकुलाहट मिली;
जब कभी
उनकी आँखों में
सपनों की आहट मिली;
जब कभी उनमें --
जब कभी --
.
खड़ी कर दी गयी
उनके इर्द-गिर्द
रोटियों की दीवारें
और अब वे क़ैद हैं
पर उन्हें
अपने क़ैद का
अभास तक नहीं है।
खड़ी कर दी गयी
ReplyDeleteउनके इर्द-गिर्द
रोटियों की दीवारें
और अब वे क़ैद हैं
पर उन्हें
अपने क़ैद का
अभास तक नहीं है।
वाह वर्मा जी बहुत ही सुंदर और शानदार रचना लिखा है आपने! हर एक पंक्तियाँ लाजवाब है ! आपने सच्चाई को बखूबी प्रस्तुत किया है !
अद्भुत!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दरता से आपने बात कही, वाह!
वे क़ैद हैं और उन्हें
ReplyDeleteअपने क़ैद का अभास तक नहीं है।.
कम शब्दों में
परिकल्पना और विडम्बनाओं को
उजागर करती हुई कविता सुन्दर बन पड़ी है।
वे कैद हैं और उन्हें आभास तक नहीं ....मगर आपकी दृष्टि और संवेदना से बच नहीं पाया यह सब कुछ ...प्रेरक कविता ...!!
ReplyDeleteइस कविता की व्याख्या नहीं की जा सकती । कोई टीका नहीं लिखी जा सकती । सिर्फ महसूस की जा सकती है । इस कविता को मस्तिस्क से न पढ़कर बोध के स्तर पर पढ़ना जरूरी है – तभी यह कविता खुलेगी ।
ReplyDeleteजब कभी --.
ReplyDeleteखड़ी कर दी गयी उनके इर्द-गिर्द रोटियों की दीवारें और अब वे क़ैद हैं पर उन्हें अपने क़ैद का अभास तक नहीं है।
sach.... aur unhe aabhaas hi nahi hai....
bahut hi prerak aur..... sunder....
इसका शीर्षक और कविता दोनो अनूठे हैं
ReplyDeletemanoj kumaar se sahmat.........
ReplyDeletesachmuch yah kavita aisee hi hai...
abhinandan aapka !
जब कभी.........
ReplyDeleteखडी कर दी गई, रोटियों की दीवारे .......
वाह ! लाजबाब वर्मा साहब, बहुत सुन्दर भाव उतारे !
bahut hi marmik kavita hai ye....
ReplyDeletepuri kavita apne aap mein ek gehra marm liye huye hai jo sidhha dil tak mehsus hota hai.bahut sunder.
ReplyDeleteअब वे क़ैद हैं
ReplyDeleteपर उन्हें
अपने क़ैद का
अभास तक नहीं है।
बहुत ही भावमय प्रस्तुति ।
good poem hai sir
ReplyDeleteरोटियों की दीवारों में घिरे एहसास......बहुत ही उत्कृष्ट लगे
ReplyDeleteलाजबाब वर्मा साहब, बहुत सुन्दर भाव उतारे
ReplyDeletefrom
sanjay bhaskar
manoj ji se sahmat.........is rachna ke bare mein kuch nhi kaha ja sakta........atyant gahan aur sukshm ..........aisa sirf aap hi likh sakte hain ..........sargarbhit.
ReplyDeleteखड़ी कर दी गयी
ReplyDeleteउनके इर्द-गिर्द
रोटियों की दीवारें
और अब वे क़ैद हैं
पर उन्हें
अपने क़ैद का
आभास तक नहीं है।
वाह वर्मा जी आप ने आज की सच्चाई को, आज की हम सब की मजबुरियो को अपनी इस कविता मै बहुत सुंदर शव्दो मै पिरो दिया
धन्यवाद
खड़ी कर दी गयी
ReplyDeleteउनके इर्द-गिर्द
रोटियों की दीवारें
और अब वे क़ैद हैं
पर उन्हें
अपने क़ैद का
अभास तक नहीं है।
बहुत ही गहरे अर्थो वाली बात कह दी है आपने वर्मा जी! वाकई इसपर कोई टीका टिपण्णी की ही नहीं जा सकती....
वे क़ैद हैं और उन्हें
ReplyDeleteअपने क़ैद का अभास तक नहीं है।.
bahut khoob kah diya shabdon ne aapki kalam se ,badhai is sundar rachna ke liye
JAISA KI AAPNE KI RACHANAA KA SHIRSHAK DIYAA HAI WAKAI RACHANAA USPE PURI TARAH SABIT HOTI HAI ... NIHSHABD KAR DIYAA HAI AAAPNE... SAPANO KI AAHAT...WAKAI NIHSHABD HO GAYAA ... BAHUT BAHUT BADHAAYEE KI UMDA RACHANAA KO PADHWAANE KE LIYE...
ReplyDeleteAAPKA
ARSH
JAISA KI AAPNE KI RACHANAA KA SHIRSHAK DIYAA HAI WAKAI RACHANAA USPE PURI TARAH SABIT HOTI HAI ... NIHSHABD KAR DIYAA HAI AAAPNE... SAPANO KI AAHAT...WAKAI NIHSHABD HO GAYAA ... BAHUT BAHUT BADHAAYEE KI UMDA RACHANAA KO PADHWAANE KE LIYE...
ReplyDeleteAAPKA
ARSH
खड़ी कर दी गयी
ReplyDeleteउनके इर्द-गिर्द
रोटियों की दीवारें
और अब वे क़ैद हैं
पर उन्हें
अपने क़ैद का
अभास तक नहीं है।
जीवन की विडंबनायों का स्जीव चित्रण बहुत सुन्दर कविता है बधाई
KAMAAL KI ABHIVYAKTI HAI .... AAJ KE HAALAAT KA SAHI CHTRAN .... GAREEB KI AANKHON MEIN SAPNE JAAGNE HI NAHI DETE KUCH LOG .....
ReplyDeleteKITNI SAHAJTA SE KAH DI AAPNE APNI BAAT .....
यह रोटी के प्रचलित अर्थ मे एक नया बिम्ब है ।
ReplyDeleteरोटियों की दीवारें --
ReplyDeleteएकदम नयापन लिए रचना।
बहुत बढ़िया वर्मा जी।
अच्छी कविता है भाई जी... साधुवाद.. साधुवाद.
ReplyDeleteवाकई दर्द के गांव से लाए हैं यह कविता आप
ReplyDeleteपिंजरे का पंछी उसी में रहना चाहता है।
ReplyDeleteसुना है लम्बी कैद के बाद आजाद होने पर कैदी तनावग्रस्त हो जाता है।
इस कविता की व्याख्या नहीं की जा सकती । कोई टीका नहीं लिखी जा सकती । सिर्फ महसूस की जा सकती है ।
ReplyDeleteसचमुच !
sachamuch ke alavaa baaki saari panktiyaa "" me rahegii.
ReplyDeleteबहुत खूब, साफ और सटीक बात ।
ReplyDeletevermaji,
ReplyDeleteRachna samasya pradhan hai magar is ka hal adhyayan ya swadhyayan hai. badhai!
... sundar rachanaa, prasanshaneey !!!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना है बधाई ....
ReplyDeleteवे क़ैद हैं
ReplyDeleteऔर उन्हें अपने क़ैद का
अभास तक नहीं है.
बहुत सुन्दर कविता और भाव
सच कितना गहराई से उभारा यह बिम्ब
ReplyDeleteबधाइयां
वाकई
ReplyDeleteरोटियों की दीवारें इतनी मजबूत होती हैं
कि आदमी को पता ही नहीं चलता
कि वह कैद है।
--कमाल की अभिव्यक्ति
बहुत खूबसूरत रचना है .
ReplyDeleteउन्हें
ReplyDeleteअपने क़ैद का
अभास तक नहीं है।
जिनके पास रोटियां, कपड़े और मकान हैं उन्हें भी।
जीवन की आधारभूत आवश्यकताएं ही अधिकतर को सहज नहीं है...
ReplyDeleteबेहतर अभिव्यक्ति...