आतुर सुलझाने को
उलझा धागा
वह जागा
उठकर भागा,
सूरज से टकराया
चकराया, गश खाया
जीवन को दे डाला
जीवन का वास्ता
रास्ते पर वह
या उसके अंदर रास्ता?
दो पल के सुकून के लाले
खोले उसने सात ताले,
तिलिस्मी मंजर
मकडी के जाले,
गुंजायमान अट्टहास
कृत्रिम अनुबंध,
रिश्तो की अस्थिया
लोहबानी गंध,
खुद ही से मिलने पर
सख्त प्रतिबंध
सुलझाया कम
ज्यादा उलझाया
सांझ ढले
लहुलुहान वह
फिर वही लौट आया.
चित्र साभार : Google
8 comments:
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 8.8.19 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3421 में दिया जाएगा
धन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ९ अगस्त २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
कश्मकश भरी जिंदगी की पटरी को बेहतरीन शब्दो मे पिरोया है।
जीवन की अजीब सी आपा धापी समझ से बाहर और पहिये सी वैसे ही घूमती ।
"...
रास्ते पर वह
या उसके अंदर रास्ता?"
बहुत ही बेहतरीन ढंग से रचना में शब्दों को पिरोया है
जीवन के उलझाव का सटीक चित्रण
Interpersonal Relationship
उहापोह भरी जिंदगी की उलझनों को बड़े ही सरल भाव पढ़ना अच्छा लगा
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